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आदिवासी बच्चों का भविष्य गढ़ रहा सेवा कुंज आश्रम

Free education for tribal children in sewa kunj ashram

Free education for tribal children in sewa kunj ashram

छतीसगढ़ की सीमा से सटा उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिला का एक छोटा सा सालेनाग गांव है। यहां घनघोर आदिवासी इलाके में नक्सली गतिविधियों का हाल के बरसों तक बोल-बाला था। जंगली इलाका, संसाधनों का टोटा और मुख्य मार्गों तक पहुंचने के लिए मीलों का पैदल सफर तय करना पड़ता है। ऐसे कठिन हालात में यदि इस गांव के बच्चे इंजीनियर और कुशल पेशेवर बन रहे हैं, तो सुखद आश्चर्य होना स्वाभाविक है। इन आदिवासी युवकों को इस मुकाम तक पहुंचाने में सेतु का काम किया क्षेत्र के ही सेवा कुंज आश्रम ने। सर्वाधिक आदिवासी जनसंख्या वाले उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिला के आंचल में कुछ साल पहले एक शिक्षित क्या साक्षर भी खोजने से नहीं मिलते थे।

लेकिन अब यहां सालेनाग गांव के कृष्ण बिहारी, कोटवा गांव के रामलाल, नगवा के अमरनाथ जैसे युवाओं की नई पौध तैयार हो रही है। यह सभी आज इंजीनियरिंग बनकर जीवन संवार चुके हैं। इस पौध को तैयार करने में कारीडाड़ चपकी स्थित सेवा कुंज आश्रम का समर्पित योगदान रहा है। बीते दो दशक से इस आश्रम ने वनवासियों को जागरुक कर समग्र विकास के लिए प्रेरित किया। अब यहां आदिवासी की सोच बदल रही है। वह शिक्षा का महत्व जानते हैं। आश्रम में इस समय 150 आदिवासी बच्चे पढ़ रहे हैं। सेवा कुंज आश्रम करीब 40 एकड़ में फैला हुआ है।

यहां आदिवासी बच्चों के रहने और पढ़ने के अलावा कंप्यूटर लैब और खेल के मैदान जैसी सुविधाएं निशुल्क उपलब्ध हैं। बच्चों को शिक्षा, संस्कार की कसौटी पर कसने के लिए कक्षा 8 तक की शिक्षा आश्रम में ही दी जाती है। जबकि आगे की शिक्षा के लिए उन्हें बड़े स्कूलों में भेजा जाता है। यह कार्य बिना किसी सरकारी मदद के केवल जन सहयोग के बूते किया जा रहा है। आश्रम प्रभारी आनंद जी कहते हैं कि पहले आश्रम पहले हमारा उद्देश्य आदिवासी बच्चों को साक्षर बनाना था। लेकिन समय के साथ जब आदिवासी आदिवासियों की सोच बदली तो हमने शिक्षित बनाने का संकल्प लिया।

यही वजह है कि हम कक्षा 3 से लेकर उच्च शिक्षा दिलाने तक का इंतजाम करते हैं। काफी समय से सेवा समर्पण संस्थान (सेवा कुंज आश्रम) से जुड़े वीरेंद्र नारायण शुक्ला बताते हैं कि आदिवासी क्षेत्र के ऐसे परिवार जिनके यहां साक्षर व्यक्ति खोजे नहीं मिलते थे। उन्हें शिक्षित कर सोच बदलने का काम सेवा समर्पण संस्थान ने किया है। वह भी निशुल्क बच्चे सामूहिक रूप में पढ़ाई करते हैं। उन्हें शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत बनाने के लिए एक दिनचर्या बनाई गई है। सुबह 4:00 बजे जागने से लेकर रात 10:00 बजे तक सोने तक का एक-एक कार्य निर्धारित है। इसमें साफ सफाई, भोजन, अध्ययन, खेलकूद, ध्यान, अध्यात्म सभी का समावेश है। इनको परंपरागत खेलों का भी प्रशिक्षण दिया जाता है।

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