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गंगा दशहरा: पाप को धोने क्यों आईं धरती पर गंगा माँ, जाने रोचक बातें

आज गंगा दशहरा है. गंगा दशहरा के दिन गंगा नदी में स्‍नान का बड़ा महत्‍व है. मान्‍यता है कि इस दिन गंगा का अवतार हुआ था. माना जाता है कि आज के दिन गंगा में स्‍नान करने के बाद दान-दक्षिण करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और पापों का नाश होता है.

आज गंगा स्नान के लिए तटों पर लगा जमावड़ा:

ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की दशमी को गंगा दशहरा का पर्व मनाया जाता है। माना जाता है कि आज कके दिन गंगा धरती पर आई थीं. आमतौर पर यह त्यौहार अंग्रेजी कैलेंडर के मुताबिक मई या जून में आता है.

इस बार यह 24 मई यानी कि आज मनाया जा रहा है. आज के इस ख़ास दिन के मौके पर हजारोंं श्रद्धालुओं ने हरिद्वार और वाराणसी में गंगा जी में डुबकी लगाई.

पुराणों के अनुसार इस दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व होता है। साथ ही इस दिन गंगा की विशेष पूजा अर्चना और भगवान शिव का जलाभिषेक किया जाता है। गंगा दशहरा पर दान और उपवास का बड़ा महत्व होता है। दस तरह के पापों को हरने के कारण इसे दशहरा कहते हैं।

शुभ मुहूर्त:

धार्मिक महत्व के अनुसार, हर त्यौहार का एक शुभ मुहूर्त होता है. गंगा स्नान की तिथि बुधवार को शाम 7 बजकर 12 मिनट से शुरू हुई। लेकिन गंगा दशहरा 24 तारीक यानी आज मनाया जा रहा है। आज शाम 6 बजकर 18 मिनट तक यह शुभ तिथि रहेगी।

गंगा दशहरा की पूजन विधि और मंत्र:

 गंगा दशहरा के दिन गंगा नदी या पास के किसी भी जलाशय या घर के शुद्ध जल से स्नान करके किसी साक्षात् मूर्ति के पास बैठ जाएं.
 फिर ‘ऊँ नमः शिवायै नारायण्यै दशहरायै गंगायै नमः’ का जाप करें.
 इसके बाद  ‘ऊँ नमः शिवायै नारायण्यै दशहरायै गंगायै स्वाहा’ करके हवन करे.
 फिर ‘ ऊँ नमो भगवति ऐं ह्रीं श्रीं( वाक्-काम-मायामयि) हिलि हिलि मिलि मिलि गंगे मां पावय पावय स्वाहा.’ इस मंत्र से ;
 पांच पुष्पाञ्जलि अर्पण करके भगीरथ हिमालय के नाम- मंत्र से पूजन करें.
 फिर 10 फल, 10 दीपक और 10 सेर तिल का ‘गंगायै नमः’ कहकर दान करें. साथ ही घी मिले हुए सत्तू और गुड़ के पिण्ड जल में डालें.
 इसके अलावा 10 सेर तिल, 10 सेर जौ, 10 सेर गेहूं 10 ब्राह्मण को दें.

गंगा की उत्पत्ति की कहानी:

एक बार महाराज सगर ने यज्ञ किया. उस यज्ञ की रक्षा का भार उनके पौत्र अंशुमान ने संभाला. इंद्र ने सगर के यज्ञीय अश्व का अपहरण कर लिया. यह यज्ञ के लिए विघ्न था. परिणामतः अंशुमान ने सगर की 60 हजार प्रजा लेकर अश्व को खोजना शुरू कर दिया.

सारा भूमंडल खोज लिया पर अश्व नहीं मिला. फिर अश्व को पाताल लोक में खोजने के लिए पृथ्वी को खोदा गया. खुदाई पर उन्होंने देखा कि साक्षात्‌ भगवान ‘महर्षि कपिल’ के रूप में तपस्या कर रहे हैं.

उन्हीं के पास महाराज सगर का अश्व घास चर रहा है. प्रजा उन्हें देखकर ‘चोर-चोर’ चिल्लाने लगी.

महर्षि कपिल की समाधि टूट गई. ज्यों ही महर्षि ने अपने आग्नेय नेत्र खोले, त्यों ही सारी प्रजा भस्म हो गई.

राजा भागीरथी लाये थे गंगा को धरती पर:

इन मृत लोगों के उद्धार के लिए ही महाराज दिलीप के पुत्र भगीरथ ने कठोर तप किया था. भगीरथ के तप से प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने उनसे वर मांगने को कहा तो भगीरथ ने ‘गंगा’ की मांग की.

इस पर ब्रह्मा ने कहा- ‘राजन! तुम गंगा का पृथ्वी पर अवतरण तो चाहते हो? परंतु क्या तुमने पृथ्वी से पूछा है कि वह गंगा के भार तथा वेग को संभाल पाएगी? मेरा विचार है कि गंगा के वेग को संभालने की शक्ति केवल भगवान शंकर में है.

इसलिए उचित यह होगा कि गंगा का भार एवं वेग संभालने के लिए भगवान शिव का अनुग्रह प्राप्त कर लिया जाए.’ महाराज भगीरथ ने वैसे ही किया.

उनकी कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने गंगा की धारा को अपने कमंडल से छोड़ा. तब भगवान शिव ने गंगा की धारा को अपनी जटाओं में समेटकर जटाएं बांध लीं.

इसका परिणाम यह हुआ कि गंगा को जटाओं से बाहर निकलने का पथ नहीं मिल सका.

अब महाराज भगीरथ को और भी अधिक चिंता हुई. उन्होंने एक बार फिर भगवान शिव की आराधना में घोर तप शुरू किया. तब कहीं भगवान शिव ने गंगा की धारा को मुक्त करने का वरदान दिया.

इस प्रकार शिवजी की जटाओं से छूट कर गंगाजी हिमालय की घाटियों में कल-कल निनाद करके मैदान की ओर मुड़ी. इस प्रकार भगीरथ पृथ्वी पर गंगा का वरण करके बड़े भाग्यशाली हुए.

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