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अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2018: महिला का पहला स्वरूप है ‘माँ’, सम्मान दें

पिछले वर्षों की तरह इस वर्ष भी 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस (International Women’s Day) में मनाया जायेगा। महिला दिवस पर अनेक कार्यक्रम होंगे, सेमीनार होगी, चर्चा और परिचर्चायें होंगी। महिलाओं को अबला कहकर उन पर तरस खाया जायेगा, उनके उत्थान के लिए लम्बी-चौड़ी बातें होगी, आरक्षण देने पर लम्बे भाषण होंगे, बस! इसी के साथ महिला दिवस सम्पन्न हो जायेगा।

लेकिन प्रश्न यह है कि क्या वास्तव में ही महिला अबला है? क्या वास्तव में ही नारी कमजोर है? नहीं नहीं, कदापि नहीं! पुरुष को जन्म देने वाली नारी, पुरुष को दूध पिलाकर खड़ा करने वाली नारी, दुधमुँहे व असहाय, निर्बल व कमजोर पुरुष को पाल पोस कर बड़ा करने वाली महिला ‘अबला’ कैसे हो सकती है? महिला तो पुरुष का वह सम्बल है, जिसके बिना पुरुष का कोई अस्तित्व ही नहीं है। चाहे महिला का स्वरूप माँ का हो या बहन का, पत्नी का स्वरूप हो या बेटी का, महिला के चारो स्वरूप ही पुरुष को सम्बल प्रदान करते हैं। यदि महिला के इन चारों स्वरूपों में से पुरुष के जीवन में किसी स्वरूप की कमी है तो वह पुरुष ‘पूर्ण’ पुरुष नहीं कहा जाता है अर्थात पुरुष को पूर्णता का दर्जा प्राप्त करने के लिए महिला के इन स्वरूपों का सम्बल आवश्यक है।

इतनी सबल व सशक्त महिला को अबला कहना नारी जाति का अपमान है। ‘महिला’ शब्द का शाब्दिक अर्थ है ‘मही’ (पृथ्वी) को हिला देने वाली महिला, नारी का शाब्दिक अर्थ ‘न अरी’ प्रत्येक कार्य को करने की क्षमता। फिर भी हम उस नारी को बेचारी कहकर अपमानित कर रहे हैं। क्यों? उत्तर है क्योंकि हम कमजोर हैं, हमारे मन में चोर है, हम बेईमान है, नारी से हम डरे हुए हैं! हमें डर है कि यदि नारी को अपनी ताकत व बल का अहसास हो गया तो हमारी प्रभुता, हमारी सम्प्रभुता का क्या होगा? हमारे पुरुषत्व का क्या होगा? लेकिन अब नहीं चलेगा यह सबकुछ।

महिला को इन बन्धनों से मुक्त करना होगा, कर्तव्यों के साथ उसको उसे अधिकार देने होंगे, उसके साथ भेदभाव समाप्त कर बराबरी का दर्जा देना होगा, पढ़ा-लिखाकर उसे योग्य बनाना होगा, आपको यह अहसास होगा कि महिला ‘अबला’ या ‘सबला’ नहीं, महिला आपसे दो चार कदम आगे नहीं! दस बीस कदम आगे है, बस उसको अवसर देने की बात है। आज आवश्यकता कोरी बातें, लम्बे भाषणों व सेमीनारों की नहीं, अपितु आवश्कता इस बात की है कि हम ईमानदारी से नारी को आगे बढ़ने का अवसर दें, अधिकार देने का संकल्प लें, तभी हमारा ‘महिला दिवस’ मनाना सार्थक है, अन्यथा नहीं। तो आइये आज महिला दिवस के अवसर पर महिला के चारों स्वरूपों के साथ न्याय करने का संकल्प लें।

‘माँ’ को सम्मान दें: महिला का पहला स्वरूप है ‘माँ’। कल्पना कीजिए कि यदि माँ अपने आंचल का दूध यदि न पिलाती तो क्या आज हम इस दुनियाॅ में होते, हमारा कोई अस्तित्व होता? आज हम जो कुछ भी हैं, माँ की बदौलत है! अतः माँ को सम्मान दीजिए, उसके चरण रज को अपने मस्तक पर लगाइये, बड़े तन-मन से उसकी पूजा, अर्चना, इबादत, प्रेयर करिये, उसी को गुरू का सम्मान दीजिए। क्योंकि माँ ही गुरू है और माँ ही ईश्वर है।

बहन को प्यार, अवसर व अधिकार दें: महिला का दूसरा स्वरूप है ‘बहिन’। बहिन के त्याग, तपस्या, प्रेम की कहानी कौन नहीं जानता। बहिन का सम्बल भाई को वह ताकत प्रदान करता है जिसकी संसार में अन्य किसी से भी तुलना नहीं की जा सकती है। अतः आज हम महिला दिवस के अवसर पर प्रतिज्ञा करें कि हम बहिन को पूर्ण सम्मान, अवसर व अधिकार देंगे।

पत्नी के अधिकारों का हनन न करें: महिला का तीसरा स्वरूप वह है जिसे हम पत्नी कहते हैं। पत्नी के बिना पुरुष अपूर्ण है। जिन घरों में पत्नी का सम्मान व अधिकार प्रदान किये जाते हैं, उस घर में लक्ष्मी जी छप्पर फाड़कर आती हैं और जिन घरों में पत्नी का अपमान व उसके अधिकारों का हनन होता है। वह घर बर्बाद हो जाते हैं। अतः पत्नी को पूर्ण सम्मान दीजिए। याद रखिये! सम्मान व अधिकारों से लबालब पत्नी घर को स्वर्ग बना देती है। याद करिये जब आपकी ‘पत्नी’ नहीं थी तो आप क्या थे? और आज क्या हैं? आप जो भी हैं अपनी पत्नी की बदौलत हैं, पत्नी की बुद्धि व बल की बदौलत हैं, फिर भी पत्नी को अबला व बेचारी बता रहे हैं। अरे! पत्नी न होती तो आप भी न होते और आपके बच्चे भी नहीं होते। आपका और आपके बच्चों का बोझ हँसते-हँसते सभाँलने वाली महिला बेचारी कैसे हो सकती है? अबला कैसे हो सकती है?

‘बेटी’ को बोझ नहीं! वरदान समझें: बेटी बोझ नहीं है वह आपके लिए वरदान बनकर आई है। याद करिये जिस दिन से आपके घर में बेटी का जन्म हुआ है, उसी दिन से सुख समृद्धि आपके घर छप्पर फाड़कर आई है। अतः बेटी के साथ भेदभाव मत करिये, उसको खूब मन से पढ़ाइये, उसको पैरों पर खड़ा करिये, यह तो उसका अधिकार है। अतः बेटी को उसके अधिकारों से वंचित मत करिये! तो आइये! आज महिला दिवस पर संकल्प लें कि हम महिला के चारों स्वरूप को पहचानेंगे, उनका सम्मान करेंगे।

जेहन में सवाल उठता है कि इस परंपरा की शुरुआत कब से हुई? साथ ही महिला दिवस मनाने के पीछे मकसद क्या है? अगर महिला दिवस मनाया जाता है, तो फिर पुरुष दिवस क्यों नहीं? अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के इतिहास की बात करें तो सबसे पहले इसे साल 1909 में मनाया गया। इसके बाद इस दिवस को सन् 1975 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने मान्यता दी। फिर तो दुनियाभर के देशों में इसे समारोहपूर्वक मनाया जाने लगा। इस दिवस का मकसद महिलाओं के प्रति सम्मान, उनकी प्रशंसा और उनके प्रति अनुराग व्यक्त करना है। इस दिन खासकर उन महिलाओं के प्रति सम्मान प्रकट किया जाता है। जिन्होंने आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्रों में अहम उपलब्धियां हासिल की हैं। खासकर महिलाओं के संघर्ष का उल्लेख करते हुए उनकी सफलता की बानगी पेश की जाती है।

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Web Title : Happy International Women’s Day 2018 celebration in hindi
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