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हेमंत शर्मा की किताब ‘युद्ध में अयोध्या’ भ्रम को दूर करेगी: गायिका मालिनी अवस्थी

अयोध्या में राम मंदिर- बाबरी मस्जिद विवाद से जुड़े ऐसे तो कई किस्से और कहानियाँ सुनने और पढ़ने को मिल ही जाती हैं. लेकिन हेमंत शर्मा की अयोध्या विवाद पर लिखी किताब “अयोध्या का चश्मदीद” सच में एक गवाह की तरह उस दौर को निष्पक्षता के साथ बयाँ करती है. 

हेमंत शर्मा ने अयोध्या मसलें पर लिखी दो किताब:

उत्तर प्रदेश की प्रसिद्ध लोक गीत गायिका पद्म श्री मालिनी अवस्थी ने भी हेमंत शर्मा की अयोध्या पर आधारित किताबों के बारें में अपनी राय रखी.

देश की प्रख्यात गायिका मालिनी अवस्थी खुद अयोध्या में रही हैं. वहां के माहौल की अच्छी जानकार हैं और अपने इसी ज्ञान के आधार पर उन्होंने हेमंत शर्मा की किताब को पढ़ कर अपनी जानकारी और उनकी किताब की सच्चाई को सत्यापित किया.

मालिनी अवस्थी ने की किताब की सराहना:

उन्होंने कहा कि उन्हें पढ़ने में रूचि है और उन्होंने हेमंत शर्मा की किताबें पढ़ी है. उन्हें ख़ुशी है कि अयोध्या मसले पर एक नहीं बल्कि दो दो किताबों के साथ हेमंत शर्मा तैयार हैं.

[penci_blockquote style=”style-3″ align=”none” author=””]बता दें कि लेखक की इस मसलें में दो किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं, इनमें से एक ‘अयोध्या का चश्मदीद’ और ‘युध्य में अयोध्या’ है. [/penci_blockquote]

जहाँ भारतीय संस्कृति वहां राम का नाम:

गायिका मालिनी अवस्थी ने कहा कि ये देखना बहुत रोचक है, कि अयोध्या को लोग अलग अलग तरीके से देखते हैं. लेकिन विश्व में जहाँ भी भारतीय संस्कृति है, जिनके भी मन में राम बसे हैं, उन सब के हृदय में अयोध्या बसी है.

अयोध्या के बारे में बताते हुए मालिनी अवस्थी ने कहा कि अयोध्या वो स्थान है, जिसे कहा जाता है कि वहां कभी युद्ध नहीं हुआ. जहाँ हमेशा राम राज्य रहा, शांति की धरती रही अयोध्या, लेकिन आज उसी को लेकर के कोतुहल, विचार और भ्रम की स्थिति है.

हेमंत शर्मा की किताब बढ़ाएंगी उत्सुकता:

कई सारे लोग अयोध्या को लेकर बिना जानकारी हुए चर्चा करते हैं,बातें करते हैं. मैं तो अयोध्या में रही हूँ. ऐसे में हेमंत शर्मा जी जो कि एक बहुत सजग पत्रकार रहे हैं, की किताब लोगों की उत्सुकता को बढ़ाएंगी.

एक ऐसा दस्तावेज, आँखों देखा हाल लोगों के भ्रम को दूर करेंगा. इसके लिए मैं हेमंत जी को शुभकामनाएं देती हूँ. मैंने उनकी दोनों किताबें पढ़ी हैं. यहाँ तक कि मैंने “युद्ध में अयोध्या” तो एक बार में ही पढ़ कर खत्म कर दी थी.

मुझे लगता है कि कला और लेखनी विरासत में नहीं मिलती. लेकिन हेमंत जी की किताब पढ़ने के बाद लगता है कि उन्होंने पिता की लेखनी विरासत में पाई हैं.

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