प्रदेश में हीमोफीलिया के मरीजों को पर्याप्‍त इलाज नहीं मिल पा रहा है। हीमोफीलिया के मरीज को चोट लगने पर खून लगातार बहता रहता है। ऐसे में अगर इलाज न किया जाए तो समस्या गंभीर हो सकती है। सबसे खतरनाक हालत अंदरूनी ब्लीडिग के मामले में होती है। प्रदेश के विभिन्‍न अस्‍पतालों में उन्हें चदाये जाने वाले फैक्‍टर नौ की जबरदस्‍त किल्‍लत है। फैक्‍टर नौ केवल लखनऊ के पीजीआई और केजीएमयू के पास ही कुछ गिने चुने वायल उपलब्‍ध हैं।

प्रदेश के अन्‍य शहरों में भी अभाव

  • हीमोफीलिया मरीजों के इलाज में उपयोगी आठ व नौ फैक्‍टर का अक्‍सर ही अभाव बना रहता है।
  • हालांकि वर्तमान में फैक्‍टर नौ की किल्‍लत आम है।
  • भारत में ही हीमोफीलिया मरीजों की संख्या डेढ़ लाख से ऊपर है।
  • वहीं प्रदेश में ऐसे कुल 22 हजार मरीज हैं, लेकिन यह केवल सरकारी आंकड़े हैं।
  • जानकारी के अनुसार बीएचयू में भी कुछ समय पहले ही फैक्‍टर आठ व नौ का अभाव हुआ था।
  • इसके अलावा प्रदेश के बरेली, झांसी, मुरादाबाद, कानपुर आदि जगहों पर भी यह खत्‍म हो चुका है।
  • जिसके चलते मरीजों को फैक्‍टर नहीं मिल रहा है।
  • सूत्रों की माने तो इसका बजट 2014 में दिया गया था।
  • आपको बता दें की एक ही मरीज में कई कई वायल लगाए जाते हैं।
  • हीमोफीलिया मरीजों के लिए प्रदेश सरकार ने बज़ट देना हे बंद कर दिया है.
  • नेशनल हेल्‍थ मिशन से वर्ष 2014 में 18.80 करोड़ का बजट पीजीआई को मिला  था।
  • इसके बाद से अभी तक दोबारा बजट नहीं मिला है।
  • इसे हीमोफीलिया मरीजों में एक वर्ष में खर्च करना था जो,कि दो वर्ष तक खर्च नहीं किया गया।
  • वर्तमान में बजट खत्‍म हो चुका है। अब मरीजों को इलाज के लिए इंतजार करना होगा।
  • हीमोफीलिया इलाज के अधिकारी का कहना है फैक्‍टर आठ व नौ की खरीद के लिए इंतजार करना होगा।
  • केजीएमयू के हीमोटोलॉजी विभाग के डॉक्टर्स का कहना है कि अभी तो फैक्‍टर उपलब्‍ध हैं न होने की स्थिति में उन्‍हें बाहर से खरीदकर फैक्‍टर चढ़वाना पड़ता है।
UTTAR PRADESH NEWS की अन्य न्यूज पढऩे के लिए Facebook और Twitter पर फॉलो करें