उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ समेत पूरे यूपी में ठंड ने कुछ ही दिनों में लोगों के हाड़ कंपा दिए हैं। (Homeless people sleeping ) बेघरों को शाम ढलते ही रैनबसेरा का ही आसरा नजर आता है। मगर पहचान पत्र की कमी के चलते गरीबों को रैनबसेरा भी सहारा नहीं दे पा रहा है। अभी हाल ही में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने लखनऊ में बने रैनबसेरों का औचक निरीक्षण किया था. जिसमें उन्होंने रैनबसेरों में मिली कमियों पर ज़िम्मेदार अधिकारियों को फटकार भी लगाई थी.

ठंड से ठिठुरने पर मजबूर (Homeless people sleeping ):-

रविवार की रात 10 बजे के करीब हजरतगंज से मेडिकल कॉलेज मार्ग पर ठंड में ठिठुरते सीतापुर के मुन्‍नीलाल को देख हर किसी को तरस आ रहा था। ऐसे में रैनबसेरे में आसरा न लेने के सवाल पर जवाब देते हुए उन्‍होंने कहा कि रैनबसेरे में घुसते ही पहचान पत्र मांगा जाता है। जगह की कमी के चलते वहां मौजूद दबंग मारपीट पर उतारू हो जाते हैं। गुटबाजी करके वहां से भगा दिया जाता है। ऐसे में रैनबसेरे की ओर जाने का क्‍या मतलब। वह कहते हैं कि गर्मी के दिनों में तो रात आसानी से कट जाती है मगर ठंड में रात का एक-एक पल भारी पड़ता रहता है। रुपया न होने के चलते यहां कहीं झोपड़ी भी नहीं बनवा सकता। ऐसे में रैनबसेरे में भी आसरा न मिला तो क्‍या करें।

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रैनबसेरों में भी हो रही है गुटबाजी :-

कुछ ऐसा ही दर्द केसरबाग चौराहे के पास गत्‍ते और प्‍लास्‍टिक के टुकड़े जलाकर गर्मी पाते चंद भिखारियों ने भी बताया। उन्‍होंने कहा कि वहां आस-पास बने रैनबसेरों में छोटे-छोटे गुट से बन चुके हैं। बाहरी को देखते ही वे सब झगड़ा और मारपीट करने पर उतारू हो जाते हैं। पुलिस से सहयोग मांगो तो वह भी टालने लगते हैं। ऐसे में खुले आसमान के नीचे रात गुजारने को मजबूर होना पड़ता है।

ठंड के कारण बेघर बुजुर्ग महिलाएं भी हुई बेबस :-

डालीगंज पुल के पास बुजुर्ग महिलाओं का एक जत्था बोरी पर रात गुजारने पर मजबूर था, तन पर एक पतली सी चादर डाले ठिठुरती बूढ़ी दादी को देख कर मन पसीजना स्वाभाविक था। रैनबसेरे में चोर उच्चके और स्मैकियों के डर की वजह से नहीं जाती है क्योंकि अगर वहां गए तो बेवजह का लड़ाई झगड़ा कौन मोल ले।

मुख्यमंत्री की फटकार के बाद भी नही सुधरा नगर निगम :-

हालांकि, गोमतीनगर में हुसड़िया चौराहे पर झाड़ जलाकर खुद को गर्म कर रहे रिक्‍शा चालकों में से एक फैजाबाद के मोहम्‍मद सलाहुद्दीन बताते हैं कि नगर निगम की ओर से समय रहते कभी भी लकड़ियां नहीं दी जाती हैं। कभी-कभी खानापूर्ति करने के लिए लकड़ियों की खेप मुहैया करा दी जाती है। मगर ठंड तो शाम ढलते ही रोजाना कहर ढाने लगती है। ऐसे में हम लोग यदि मदद की गुहार लगाएं भी तो उसे सुनने वाला कोई नहीं है। पता ही नहीं चलता कि हम जीने का अधिकार कब मिलेगा।

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वह अपना दुख बताते हुए कहते हैं कि अक्‍सर देखता हूं कि बड़ी-बड़ी दुकानों के सामने नगर निगम वाले अपनी गाड़ी से लकड़ियां उतार देते हैं। जो आम आदमी के लिए कम और उन अमीरों के लिए ज्‍यादा फायदेमंद होती है। ठंड में भी गरीबों का हक़ छीना जा रहा है।

रैनबसेरा की सच्चाई बयां करता ठंड से ठिठुरता इन्सान:-

रैनबसेरे के सवाल के जवाब में वहीं पर ठिठुर रहे उन्‍नाव के अमित गौतम बताते हैं कि रैनबसेरों में ऐसी चादर लगाई जाती है जो दस जगहों से फटी होती है। ठंड से बचना तो दूर उसमें से रिसने वाली शीतलहर क़हर ढाती रहती है। किसी से कुछ कहो तो बुरा-भला सुनाने लगते हैं। ऐसे में रैनबसेरों का होना और न होना एक समान है।

सवालों के जवाब देने में कतराते दिखे ज़िम्मेदार अधिकारी:-

इन सवालों को लेकर जब नगर निगम के जिम्‍मेदार अधिकारियों से बात करने की कोशिश की गई तो वह खुद को काम में व्‍यस्‍त बताने लगे। फोन पर सवाल सुनने के बाद जवाब देने से कतराने लगे। वहीं, दोबारा फोन लगाया गया तो वह उठाने से भी तौबा कर बैठे। ऐसे में गरीबों को इस ठंड में सहारा कैसे मिलेगा, यह सोचना ही पड़ेगा।

Reported By :- Ashish Pandey (uttarpradesh.org)

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