गुजरात के कच्छ जिले के मुंद्रा के पास वायुसेना का लड़ाकू जेट जगुआर क्रैश हो गया। इस दुर्घटना में लखनऊ के इंदिरानगर निवासी पायलट एयर कमोडोर संजय चौहान शहीद हो गए। चौहान जामनगर एयर बेस में एयर ऑफीसर कमांडिंग के पद पर तैनात थे। अगस्त 2017 में वह यहां स्थानांतरित होकर आए थे। घटना मंगलवार सुबह करीब साढ़े दस बजे कच्छ मुंद्रा के पास बारेजा गांव के फ्लाइंग एरिया में हुई। यह विमान जामनगर एयर बेस से अपनी नियमित उड़ान पर निकला था। दुर्घटना की जांच के लिए कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी बिठा दी गई है।

वायुसेना के प्रवक्ता लेफ्टीनेंट कर्नल मनीष ओझा ने बताया कि पायलट चौहान अपनी नियमित प्रशिक्षण उड़ान पर थे। एयर फोर्स की ओर से हादसे की कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी के आदेश दे दिए गए हैं। यह दुर्घटना चरागाह इलाके में हुई जिससे करीब एक दर्जन गायों की मौत हो गई तथा कई गायें व दूसरे पशु जख्मी हो गए। घटना की सूचना मिलते ही एक टीम तुरंत मौके पर पहुंची और अपना काम शुरू कर दिया। पिता कर्नल एनएस चौहान भारतीय सेना की सिग्नल रेजिमेंट में तैनात थे। सेना की गौरवशाली परंपरा को पिता से लेकर बेटे ने आगे बढ़ाया। जबकि जांबाज बेटा भारतीय वायुसेना में उच्च कोटि का फाइटर पायलट। पिता को अपने एकलौते बेटे की शहादत पर गर्व है।

दिल्ली में हुआ था संजय चौहान का जन्म

एयर कमोडोर संजय चौहान का जन्म तो दिल्ली में हुआ था, लेकिन पिता सेना में अधिकारी थे, लिहाजा उनकी पढ़ाई देश के अलग अलग हिस्सों में हुई। सबसे अधिक सात साल तक की पढ़ाई उन्होंने मेरठ से की और फिर 1986 में वह एनडीए में शामिल हो गए। एयर कमोडोर तीन बहनों के बीच अकेले भाई थे। उनसे बड़ी बहन के पति भी सेना में कर्नल थे। जब कि दो छोटी बहने अमेरिका में हैं। एयर कमोडोर संजय चौहान का भी एक ही बेटा यशवीर सिंह चौहान है। वह भी एमटेक की पढ़ाई करने के लिए इसी महीने अमेरिका जा रहा है। लखनऊ के इंदिरानगर स्थित घर पर पिता कर्नल एनएस चौहान के साथ मां सरला चौहान रहती हैं।

पत्नी अंजलि सिंह बेटे के साथ जामनगर में थी

पायलट एयर कमोडोर संजय चौहान की पत्नी अंजलि सिंह बेटे के साथ इन दिनों जामनगर में ही रहती थी। पिता कर्नल एनएस चौहान ने बताया कि संजय एक दिन के लिए अकेले ही उनसे मिलने के लिए लखनऊ आया था। वह रविवार को जामनगर वापस रवाना हुआ था। आखिरी बार सोमवार को उससे फोन पर बात हुई। घरवालों के बारे में हालचाल लिया। एयर कमोडोर संजय चौहान का अंतिम संस्कार जामनगर में ही गुरुवार को हुआ। पिता कर्नल एनएस चौहान और मां सरला वहां पहुंच चुकी थी। उनकी अमेरिका में रह रहीं दो बहनें भी आ गईं हैं। सभी परिचित भी लखनऊ से विमान से रवाना हो गए थे। रिश्तेदार मुकेश बहादुर सिंह ने बताया कि इस दुखद समाचार को सुनने के बाद सभी का बुरा हाल है।

लड़ाकू विमानों की थी टेस्टिंग

एयर कमोडोर संजय चौहान ने कई देशों में जाकर वहां के लड़ाकू विमानों की टेस्टिंग भी की थी। जिससे भारतीय वायुसेना को आधुनिक लड़ाकू विमान मिल सके। इन दिनों जिस राफेल विमान को फ्रांस से लेने की कार्रवाई चल रही है, उसे भी एयर कमोडोर संजय चौहान ने उड़ाया था। इसके अलावा उन्होंने मध्यम मल्टी रोल लड़ाकू विमान ग्रिपन और यूरो फाइटर से भी उड़ान भरी थी।

सोशल मीडिया पर भी लोगों ने वीर को किया नमन

सोशल मीडिया पर एयर कमोडोर संजय चौहान की वीरता को सभी ने नमन किया। मेजर सुरेंद्र पुनिया ने कहा कि वह विमान से नहीं कूदे क्योंकि वह उस समय गांव के ऊपर था। वह विमान के साथ खुद खाली जगह देख नीचे आ गए। मेजर सेवानिवृत्त आशीष चतुर्वेदी ने कहा कि एयर कमोडोर ने अपनी जांबाजी का परिचय दिया। मौत सामने देखकर भी उन्होंने अपने कदम पीछे नहीं खींचे और कई जान बचाने के लिए खुद अपने प्राणों की आहूति दे दी। मेजर सेवानिवृत्त एके सिंह का कहना है कि ऐसे वीरों को नमन करना चाहिए। उन्होंने एक सच्चे सैनिक का कर्तव्य निभाया। एक सच्चे सैनिक की तरह देश की रक्षा और देशवासियों की जान बचाने के लिए खुद ही कूद गए।

रविवार को ही लखनऊ से जामनगर गए थे एयर कमोडोर संजय

लखनऊ शहर के एक और वीर सपूत ने अपनी जांबाजी से न केवल कई जान बचायी, बल्कि वह खुद ही न्यौछावर हो गए। जामनगर से लड़ाकू विमान जगुआर में आयी गड़बड़ी के बाद भी वह अपनी जान बचाने के लिए उससे नहीं कूदे। विमान को खाली भूमि पर उतारने की कोशिश की और अंत तक वह स्थितियों से लड़ते रहे। एयर कमोडोर संजय चौहान कई जान को बचाते हुए शहीद हो गए।

1989 में प्राप्त किया था भारतीय वायुसेना में कमीशंड

एयर कमोडोर ने 16 दिसंबर 1989 में भारतीय वायुसेना में कमीशंड प्राप्त किया था। उनके पिता कर्नल एनएस चौहान भी एक सैन्य अधिकारी थे। वह एक योग्य फ्लाइंग इंस्ट्रक्टर भी थे। एयर कमोडोर को उनके करियर में 3800 घंटों की लड़ाकू विमान के उड़ान का अनुभव हासिल था। एयर कमोडोर संजय चौहान भारतीय वायुसेना के योग्य अधिकारियों में से एक थे। लड़ाकू पायलट के रूप में उनकी क्षमता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वह टेस्ट पायलट स्कूल के कमांडिंग अधिकारी भी रह चुके थे।

उन्होंने एक फाइटर स्क्वाड्रन को भी कमान किया था। उनकी बहादुरी और योग्यता को देखते हुए ही वर्ष 2010 में उनको वायुसेना मेडल प्रदान किया गया था। एयर कमोडोर संजय चौहान को भारतीय वायुसेना के 17 विमानों को उड़ाने का अनुभव था। वह हर विमान पर अपना शानदार नियंत्रण रखते थे। अपने करियर में उन्होंने मिग 21, हंटर, जगुआर, एचपीटी-32, किरन, एवीआरओ-748 और एएन-32 से भी उड़ान भरी थी।

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