सरहदों पर हमारी सुरक्षा के लिए दुश्मनो की गोलियां खाने वाले जवानों के लिए हम भले ही कुछ न कर पा रहे हो. लेकिन, रायपुर के मनोज दुबे हर दिन हमारे देश के जवानों का पेट भरते है. इसके लिए वह  ‘ नीलकंठ’ नाम से एक रेस्तरॉ चलते हैं.इस रेस्तरॉ में एक तिरंगे पर ‘राष्ट्रहित सर्वप्रथम’ लिखा हुआ है. इस रेस्तरॉ से वह बहुत ही कम पैसों में जवानों और उनके परिवार को नियमित तौर पर खाना खिलते है.जवानों को बुरा न लगे इसके लिए वह लागत से भी बहुत कम पैसा उनसे लेते है.उनके इस जज्बे को देखकर हरिवंश राइ बच्चे की कविता याद आ जाती है-

कुछ किये बिना ही जय जय कार नहीं होती,

कोशिश करने वालों कि कभी हार नहीं होती.

सेना में जाने का था सपना

  •  देश में जवानों के जज्बों को सलाम करने वालों की भी कमी नहीं है.
  • उन्ही में से एक हैं  छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में रहने वाले मनोज दुबे.
  • जिनकी ज़िन्दगी का मकसद ही जवानों के लिए कुछ करना है.
  • मनोज दुबे खुद भी सेना में जाना चाहते थे. लेकिन उनका ये सपना पूरा नहीं हो सका.
  • लिहाजा उन्होंने अपने इस सपने को अलग तरीके से साकार करने का रास्ता खोज निकाला है.
  • दूबे रायपुर में एक रेस्तरॉ चलाते हैं, जिसमें जवानों और उनके परिवार के सदस्यों का पेट भरते है.
  • नीलकंठ नाम से चलने वाले इस रेस्तरॉ में रियायती भोजन मुहैया कराया जाता है .
  • दूबे कहते हैं,मैं और मेरा छोटा भाई सेना में जाकर देश की सेवा करना चाहते थे, लेकिन हमारा सपना पूरा नहीं हो पाया.
  • आज हम अपने रेस्तरॉ के जरिए जवानों और उनके परिजनों के लिए भोजन की व्यवस्था करते है.

जवानों को 50 प्रतिशत की मिलती है छूट

  • दूबे के नीलकंठ नामक रेस्तरॉ के सामने तिरंगे में सजे एक बैनर पर लिखा है ‘राष्ट्रहित सर्वप्रथम’.
  • यहाँ बिना वर्दी, लेकिन पहचान पत्र के साथ आने वाले जवानों को 25 प्रतिशत की छूट दी जाती है.
  • वहीं वर्दी पहने और पहचान पत्र के साथ आने वाले जवानों को 50 प्रतिशत की छूट दी जाती है.
  • वही देश की रक्षा के लिए शहीद हुए जवानों के माता-पिता से भोजन का कोई पैसा नहीं लिया जाता.
  • दूबे बताते है कि “यूं तो मुख्यतौर पर हमारा व्यवसाय बोरवेल ड्रिलिंग का है.
  • लेकिन हमारे पिता भी सेना में जाना चाहते थे और वह एनसीसी से जुड़े हुए थे.
  • साथ ही हम दोनों भाई भी एनसीसी से जुड़े थे.
  • इसलिए सेना के साथ शुरू से ही हमारे मन में खास लगाव था.
  • इसी लगाव के चलते मन में जवानों के लिए कुछ करने की इच्छा हुई.
  • इस इलाके में सीआरपीएफ और बीएसएफ की मूवमेंट ज्यादा है.
  • उनके लिए भोजन मुफ्त होना  चाहिए.
  • लेकिन साथ ही उनके आत्मसम्मान को भी ठेस न पहुंचे इसलिए हम थोडा पैसा ले लेते है.
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