गोरखपुर स्थित बीआरडी मेडिकल कॉलेज (japanese encephalitis) में इन्सेफ़ेलाइटीस बीमारी हमेशा ही गम्भीर विषय रही है। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि यह यूपी का के इस अस्पताल में इस जटिल बीमारी से लड़ने के लिए तैनात डॉक्टर्स काफी अनुभवी होते हैं।

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अस्पताल से जुड़े भयावह आंकड़ों के बारे में जानते हैं…

  • नवजात शिशुओं के लिए इन्सेफ़ेलाइटीस हमेशा ही एक जानलेवा बीमारी साबित होती आई है।
  • डायरेक्टर ऑफ़ नेशनल वेक्टर बोर्न डिजीज कंट्रोल प्रोग्राम (NVBDCP) के मुताबिक़ वर्ष 2010 से अगस्त 2017 तक यूपी में इन्सेफ़ेलाइटीस के 26,686 मामले सामने आये थे।

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  • इनमें से 24,668 मामले एक्यूट इन्सेफ़ेलाइटीस सिंड्रोम (AES) के और 2,018 मामले जापानी इन्सेफ़ेलाइटीस (JE) के थे।
  • इनमें से एक्यूट इन्सेफ़ेलाइटीस सिंड्रोम के 4,093 मरीजों की उसी दौरान मौत हो गई थी।
  • वहीं दूसरी ओर 308 मरीजों की मौत जापानी इन्सेफ़ेलाइटीस की वजह से हो गई थी।

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  • इन्सेफ़ेलाइटीस की भयावहता को देखते हुए वर्ष 2006 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने इसे घटक बीमारी की श्रेणी में दर्ज किया था।
  • एक आंकड़े के मुताबिक, बीआरडी मेडिकल कॉलेज में इलाज की आस में आने वाले बच्चों में से करीब 80 फीसदी में इन्सेफ़ेलाइटीस की समस्या होती है।
  • वर्ष 1978 में जब इस बीमारी के वायरस के बारे में पता चला था तब तक सिर्फ गोरखपुर में ही करीब छह गजार बच्चों की मौत हो गई थी।

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  • बीआरडी मेडिकल कॉलेज में पूर्व में किये गये एक सर्वे के मुताबिक, वहां भर्ती ग्रामीण क्षेत्रों से आये मरीजों में तीन माह की उम्र से लेकर 15 बरस की आयु के बच्चों की संख्या अधिक थी।
  • वे सभी उस समय इन्सेफ़ेलाइटीस रोग से ही ग्रसित थे।
  • एक अन्य सर्वे में पाया गया था कि प्रतिवर्ष 2000 एक्यूट इन्सेफ़ेलाइटीस सिंड्रोम के मरीज बीआरडी अस्पताल में भर्ती होते हैं।
  • इनमें से 20-25 (japanese encephalitis) प्रतिशत मरीजों की मौत हो जाती है।

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