उत्तर प्रदेश के कैराना लोकसभा और नूरपुर विधानसभा उपचुनाव के लिए मतदान सोमवार सुबह 7:00 बजे से शुरू हो गया। इस बार शाम 6 बजे तक वोट डाले जाएंगे। दोनों सीटों पर बीजेपी और सपा-कांग्रेस व बसपा गठबंधन के बीच कांटे का मुकाबला है। उत्तर प्रदेश का कैराना लोकसभा सीट पर हो रहा उपचुनाव अहम माना जा रहा है। बीजेपी सांसद हुकूम सिंह की मौत हो जाने के चलते इस सीट पर चुनाव कराना आवश्यक हो गया था। उनकी बेटी मृगांका सिंह उपचुनाव में बीजेपी की उम्मीदवार हैं। उनका सीधा मुकाबला राष्ट्रीय लोक दल की तबस्सुम हसन से है। कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी तबस्सुम का समर्थन कर रही हैं।

कैराना लोकसभा सीट और नूरपुर विधानसभा सीट का उपचुनाव उत्तर प्रदेश में भाजपा विरोधी गठबंधन की तस्वीर भी तय करेगा। चुनाव नतीजे तय करेंगे कि राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष अजित सिंह की सपा बसपा के संभावित गठबंधन में कोई जगह होगी या नहीं। कैराना अजित सिंह का गढ़ मानी जाने वाली सीटों में से एक है और इसीलिए भले ही 2014 में भाजपा ने रालोद के इस गढ़ को तोड़ दिया था, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और बसपा अध्यक्ष मायावती ने कैराना और नूरपुर दोनों सीटों पर रालोद के उम्मीदवारों के पक्ष में अपने उम्मीदवार नहीं उतारे।

बीजेपी की योगी आदित्यनाथ सरकार ने चुनाव प्रचार में कोई कसर नहीं छोड़ी। योगी के साथ ही उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने भी सहारनपुर और शामली में प्रचार किया। इनके अलावा बीजेपी ने कम से कम पांच मंत्रियों को चुनावी रण में प्रचार के लिए उतारा। इनमें आयुष राज्यमंत्री धर्म सिंह सैनी, गन्ना विकास मंत्री सुरेश राणा, बेसिक शिक्षा मंत्री अनुपमा जायसवाल, कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही और धार्मिक मामले, संस्कृति, अल्पसंख्यक कल्याण, वक्फ और हज मंत्री लक्ष्मी नारायण शामिल हैं। सैनी और राणा क्रमश: नकुड़ और थानाभवन से विधायक हैं।

सपा ने रालोद उम्मीदवार का समर्थन किया जबकि मायावती ने भले ही प्रकट रूप से कोई एलान नहीं किया लेकिन रालोद ने बसपा में रही पूर्व सांसद मुनव्वर हसन की पत्नी को ही अपना उम्मीदार बनाया है। जबकि मुकाबले में भाजपा ने दिवंगत सांसद हुकम सिंह की बेटी को मैदान में उतारा है। कैराना में सबसे ज्यादा मुस्लिम मतदाता हैं। उसके बाद जाट, गूजर और दलित मतदाताओं की तादाद है। फिर वैश्य ब्राह्रण पिछड़े वर्ग के मतदाता हैं। रालोद, सपा गठजोड़ और बसपा के मौन समर्थन से रालोद को उम्मीद है कि उसके उम्मीदवार के पक्ष में मुस्लिम, दलित, जाट मतदाताओं का समर्थन एकमुश्त रहेगा और हुकुम सिंह परिवार के राजनीतिक विरोधी गूजरों का भी साथ मिलेगा। जबकि भाजपा को अपने पक्ष में गूजरों, जाटों और अन्य वर्गों के एक मुश्त वोट पडने का भरोसा है।

2013 में सांप्रदायिक दंगो का केंद्र रहे इस क्षेत्र में भाजपा की कोशिश पुराने जख्मों को हरा करके और मुस्लिम अपराधियों के डर से हिंदुओं के कथित पलायन का भय दिखाकर हिंदुत्व का ध्रुवीकरण करने की रही, जबकि रालोद ने फिर अपने जाट मुस्लिम के पुराने समीकरण को जीवंत करके उसमें दलित वोट जोडने की है। रालोद अध्यक्ष अजित सिंह और उनके बेटे जयंत चौधरी ने इसके लिए गांव-गांव घूमकर लोगों को किसान, गन्ना राजनीति और चौधरी चरण सिंह के प्रति उनकी वफादारी का वास्ता दिया। गन्ना बनाम जिन्ना का नारा भी उछला।

भाजपा नेताओं को प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता और मुख्यमंत्री योगी के दबदबे का भरोसा है। लेकिन बगल के सहारनपुर जिले में पिछले साल हुए दलित राजपूत संघर्ष का असर कैराना के दलितों पर भी देखा गया है। यह भाजपा के लिए चिंता का सबब है। लेकिन भाजपा नेताओं को भरोसा है कि बागपत में मोदी योगी की सभा का संदेश कैराना भी जाएगा, जिसके पार्टी को फायदा मिलेगा। लेकिन रालोद नेताओं कहना है कि प्रधानमंत्री का बागपात कार्यक्रम रालोद के लिए फायदेमंद साबित होगा, क्योंकि पिछले एक सप्ताह से भाजपा नेता इस जनसभा को सफल बनाने के लिए भीड़ जुटाने की तैयारी में लगे थे, जबकि रालोद उम्मीदवार और कार्यकर्ता चुनाव और जन संपर्क में जुटे रहे।

2019 के लिए अहम है कैराना का उपचुनाव

उत्तर प्रदेश के लिए कैराना लोकसभा सीट राजनीतिक तौर पर अहम है क्योंकि यह माना जा रहा है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में यह रणनीतिक भूमिका निभाएगा। राजधानी लखनऊ से करीब 630 किलोमीटर दूर स्थित कैराना लोकसभा सीट के तहत शामली जिले की थानाभवन, कैराना और शामली विधानसभा सीटों के अलावा सहारनपुर जिले की गंगोह और नकुड़ विधानसभा सीटें आती हैं। क्षेत्र में करीब 17 लाख मतदाता हैं जिनमें मुस्लिम, जाट और दलितों की संख्या अहम है। लोक दल के उम्मीदवार कंवर हसन के नाम वापस लेने और आरएलडी में शामिल होने से विपक्ष का आत्मविश्वास बढ़ा है। वहीं दूसरी ओर बीजेपी सीट पर कब्जा बनाए रखने के लिए मतदाताओं, पार्टी कार्यकर्ताओं और विपक्ष को कड़ा संदेश दे रही है कि गोरखपुर और फूलपुर उपचुनाव एक भ्रम था और वह अब भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मजबूत है।

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