वैसे तो भारत में अंग्रेजों के पैर उखड़ने की शुरुआत साल 1857 की क्रांति से ही हो गयी थी, लेकिन भारत को पूर्णतयः आजादी साल 1947 में ही आकर मिली थी। इस दौरान भारत को आजाद कराने के लिए क्रांतिकारियों ने भी अपने स्तर पर अंग्रेजी हुकूमत को बड़े-बड़े झटके दिए थे। जिसमें से एक किस्सा ऐसा है जिसके बाद अंग्रेजों ने अपनी पूरी ताकत सिर्फ क्रांतिकारियों को ढूँढने में लगा दी थी। बुधवार को इस मशहूर किस्से(kakori kand) ने इतिहास में अपने 92 साल पूरे कर लिए हैं।

आज ही के दिन हुआ था मशहूर ‘काकोरी ट्रेन लूटकांड'(kakori kand):

  • देश के इतिहास में उस वक़्त दो मानसिकताएं पनपी थीं,
  • जब भारत को आजाद कराने के लिए अलग-अलग तरीके से आजाद कराने की योजनायें बन रही थीं।
  • इस बीच क्रांतिकारियों को यह मालूम हो चुका था कि, देश को आजाद कराने के लिए हथियारों की जरुरत है।
  • 9 अगस्त 1925 को वही दिन था,
  • जब क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों के खिलाफ हथियार खरीदने के लिए सबसे बड़ी डकैती को अंजाम दिया था।
  • क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों के खजाने को लूटकर हथियार खरीदने की योजना बनायी थी।
  • आज काकोरी कांड को पूरा हुए 92 साल हो चुके हैं, लेकिन आज भी काकोरी कांड लोगों के दिलों और इतिहास में जिन्दा है।

जब क्रांतिकारियों को लूट में मिले थे 4601 रुपये(kakori kand):

  • काकोरी कांड ने देश के इतिहास में अपने 92 साल पूरे कर लिए हैं।
  • इस लूट की FIR स्टेशन मास्टर जोन्स ने लिखवाई थी।
  • जोन्स ने बताया था कि, सेफ में काटघर से काकोरी के बीच के उन सभी स्टेशनों के टिकट के पैसे थे।
  • जिन स्टेशन पर सरकारी खजाने की व्यवस्था नहीं थी।
  • जोन्स ने बताया था कि, लूटकांड की सूचना सबसे पहले ट्रेन के गार्ड जगन्नाथ प्रसाद ने उन्हें दी थी।
  • गार्ड जगन्नाथ ने आलम नगर से ट्रेन में डकैती की सूचना हजरतगंज स्थित कंट्रोलर को दी थी।
  • कंट्रोलर ने सूचना को आगे बढ़ाते हुए स्टेशन मास्टर को दी थी।
  • लूट की FIR में यह भी लिखाया गया था कि, क्रांतिकारियों ने लूट के दौरान फायरिंग भी की थी।

5 क्रांतिकारियों के नाम दर्ज हुई थी FIR(kakori kand):

  • 9 अगस्त 1925 को क्रांतिकारियों ने काकोरी कांड को अंजाम दिया था।
  • जिसके दो साल बाद लूटकांड में शामिल 5 क्रांतिकारियों को फांसी की सजा सुनाई गयी थी।
  • जिनमें रामप्रसाद बिस्मिल, रोशन सिंह, राजेन्द्र प्रसाद लाहिड़ी, अशफाक उल्ला खां और चंद्रशेखर आजाद के नाम शामिल थे।
  • लेकिन ब्रिटिश हुकूमत सिर्फ 4 क्रांतिकारियों को ही फांसी दे पायी थी।
  • चंद्रशेखर आजाद को ब्रिटिश हुकूमत कभी पकड़ ही नहीं पायी थी।
  • आजाद ने साल 1931, 27 फरवरी को इलाहाबाद के अल्फ्रेड नोबल पार्क में अंग्रेजों से मुठभेड़ के बाद खुद को गोली मार ली थी।

घटनास्थल पर भेजी गयी थी स्पेशल ट्रेन(kakori kand):

  • काकोरी कांड की सूचना के बाद ब्रिटिश अफसरों ने घटनास्थल पर एक स्पेशल ट्रेन भेजी थी।
  • ट्रेन में दो सब-इंस्पेक्टर सज्जाद अली और खुर्शीद अली खान के साथ कांस्टेबल भी भेजे गए थे।
  • लूट की जगह से करीब 200 मीटर दूर सेफ टूट हुआ पड़ा था।
  • सेफ में से पैसे गायब थे और साथ ही काकोरी स्टेशन के पास ही एक सिपाही की डेडबॉडी भी पड़ी हुई थी।

मिस्टर हर्टन को सौंपी गयी थी जांच की कमान(kakori kand):

  • घटनास्थल के मुआयने के बाद इन्वेस्टीगेशन असिस्टेंट डिप्टी इंस्पेक्टर जनरल आर.ए. हर्टन को मामले की जाँच सौंपी गयी थी।
  • जिसके बाद हर्टन ने उन यात्रियों से बात की जो उस दिन ट्रेन में सफ़र कर रहे थे।
  • सवाल-जवाब में मिले ब्यौरे और वेशभूषा की जानकारी के बाद उन्होंने बताया कि, ट्रेन क्रांतिकारियों ने लूटी है।

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