दीपों का महापर्व दीपावली जैसे-जैसे करीब आ रहा है वैसे ही लोगों का घर रोशन करने की तैयारी में कुम्हार जुट गए हैं। छोटे-बड़े दिए, मिट्टी के घरौंदे, रंग-बिरंगे खिलौने समेत तमाम आकर्षक वस्तुएं बनाने में कुम्हारों के परिवार व्यस्त हैं। (Diwali 2017 festival celebration)

kumhar business Diwali 2017

  • लेकिन इन सब के बीच उनके चेहरे पर चिंता की झलक साफ़-साफ़ नजर आ जाती है।
  • चिंता इस बात की, कि बाज़ार में उनका माल सही दाम पर बिकेगा कि नहीं?
  • कहीं विदेशी माल के आगे मिट्टी से बनी चीजों की मांग कम न हो जाए?

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हाशिये पर आये कुम्हार व्यापार

  • सस्ती और चमक-दमक से भरपूर चीनी झालर, बल्ब और साज-सज्जा की अन्य वस्तुओं ने बाज़ार को पूरी तरह से जकड़ रखा है।
  • ऐसे में मिट्टी के पार परिक दिए कहीं न कहीं अपना अस्तित्व खोते जा रहे हैं।
  • साल दर साल घटती मांग से कुम्हार लंबे समय से मिट्टी के उत्पादों का व्यापार कर रहे व्यापारी भी अब हाशिये पर हैं। (Diwali 2017 festival celebration)
  • बीते कई वर्षों से मिट्टी की वस्तुएं बनाने वाले मोश इबरार अहमद बताते हैं कि पहले घर-घर जाकर हम लोग सैकड़ों दिए लोगों को बेंचते थे।

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  • इनकी उचित कीमत भी हमें मिल जाती थी लेकिन अब लोग बाज़ार से शगुन करने भर के दिए ले आते हैं।
  • अब लोग ज्यादातर तो मोमबत्ती व झालरों से काम चला लेते हैं।
  • इससे मांग में काफ़ी असर पड़ा है।

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  • वहीं अर्जुनगंज निवासी कुम्हार रामप्रसाद कहते हैं कि अब न तो पहले जैसी बिक्री रही और न ही लोग मिट्टी के उत्पादों में रूचि लेते हैं।
  • ऐसे में हमारे सामने रोजी-रोटी चलाने का संकट भी खड़ा हो गया है।
  • इस खत्म होती पर परा कि ओर सरकारें भी ध्यान नहीं दे रहीं।
  • इससे यह धंधा खत्म होने कि कगार पर पहुँच चुका है।

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चाईनीज़ झालरों के आगे फ़ीकी पड़ी दिए की चमक

  • बाज़ार में उपलब्ध सस्ती चाईनीज़ झालरों के आगे दिए की चमक फ़ीकी पड़ती जा रही है।
  • वहीं चीनी मिट्टी से बने उत्पाद भी बाज़ारों में देसी मिट्टी के उत्पादों की मांग घटा रहे हैं।

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धंधा बदलने को मजबूर हैं कुम्हार

  • बाज़ार में घटती मांग और सरकार की उपेक्षा झेल रहे कुम्हार अपना धंधा बदलने को मजबूर हैं।
  • उनका कहना है कि इस धंधे में जितनी मेहनत है उतना फायदा नहीं है।
  • कई बार लागत वसूल पाना भी मुश्किल हो जाता है।

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  • इस से बेहतर मजदूरी है।
  • जहां दिन भर कि मेहनत के बाद, शाम को परिवार की भूख मिटाने लायक दिहाड़ी तो मिल जाती है।
  • ज्यादा मेहनत और कम मुनाफ़ा होने के कारण नई पीढ़ी भी इस धंधे में नहीं आना चाहती।

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सरकार से सहयोग की आस

  • हाशिये पर पहुँच चुका कुम्हार वर्ग सरकार से सहयोग की आस लगाए हुए है।
  • अगर सरकार इनकी ओर ध्यान दे तो डूबती हुई परंपरा को एक बार फिर बाज़ार में नई पहचान मिलने की उम्मीद है।

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इस दीवाली मिट्टी के दिए से रोशन करें अपना आशियाना

  • क्यों न इस दीवाली विदेशी, खासतौर से चीनी उत्पादों को दरकिनार कर मिट्टी के दिए से अपना आशियाना रोशन किया जाए।
  • धार्मिक दृष्टि से भी सरसों के तेल और घी से जलाए जाने वाले यह दिए हमेशा से शांति, समृद्धि एवं वैभव का प्रतीक माने जाते हैं। (Diwali 2017 festival celebration)

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