नेहरू इनक्लेव में साफ-सफाई व मरमतीकरण को लेकर 11 मई को धर्मेन्द्र कुमार की ओर से एक पत्र एलडीए के शिकायत प्रकोष्ठ में दिया गया। लगभग दो माह बाद भी उक्त पत्र पर जब कोई कार्रवाई नहीं हुई तो शिकायतकर्ता ने पत्र का हाल लिया तो उनसे कहा गया कि उनके पत्र को संबंधित अधिकारी के पास भेज दिया गया है लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई होगी। इसलिए हमारे यहां भी जवाब नहीं आया। भरोसा रखिए कुछ होगा।

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नहीं होती कोई कार्यवाही

  • दरअसल, धर्मेन्द्र कुमार तो महज उदाहरण मात्र हैं।
  • असलियत यह है ऐसी ढेरों शिकायतें एलडीए के शिकायत प्रकोष्ठ में आए दिन दर्ज होती रहती हैं।
  • कोई फोन कर अपनी तकलीफ बताता है तो कोई ट्विटर हैंडल पर टैग कर…।
  • कोई एलडीए की वेबसाइट पर लिखकर अपनी शिकायत दर्ज करता है तो कोई पत्र देकर..
  • लेकिन, किसी शिकायत पर कार्रवाई हो, ये कम ही दिखता है।
  • दिलचस्प यह कि किसी शिकायत पर कितने दिन में कार्रवाई होगी।
  • ऐसा भी यहाँ कोई नियम मायने नहीं रखता।लिहाजा आवंटी इंतजार किया करते हैं।
  • यह स्थिति तब है लखनऊ विकास प्राधिकरण में इंजीनियरों से लेकर कर्मचारियों की लंबी फौज है।
  • कोई नयी योजना न चलने की वजह से अधिकतर के पास कोई विशेष काम भी नहीं।
  • बावजूद इसके जनसामान्य की समस्याओं का निराकरण करने में भी रुचि नहीं दिखायी जाती।

अधिकारों से मिले लो तो समझो हो गया काम

  • वर्तमान वीसी ने कार्यभार ग्रहण करने के बाद ही जनसामान्य की शिकायतों को प्राथमिकता देते हुए निराकरण करने की बात कही थी।
  • साथ ही उनका यह भी कहना था कि अगर कोई काम नहीं हो सकता है तो मामले में स्पष्ट उत्तर दें।
  • शिकायतकर्ता को सूचित किया जाए लेकिन इसका भी अनुपालन नहीं हो रहा।
  • ऐसे में शिकायतकर्ता एलडीए के चक्कर काटकर निराश लौट जाते हैं।
  • शिकायत प्रकोष्ठ प्रभारी ने बताया कि हमारा काम संबंधित विभाग में शिकायत को पहुंचा देना है।
  • शिकायत के आधार पर प्रस्ताव बनता है। फिर वरिष्ठ अधिकारी उसे स्वीकृति प्रदान करते हैं।
  • उसके बाद ही उस मामले में कार्रवाई होती है।
  • यह भी सुनने में आया, अगर कोई व्यक्ति सीधे अधिकारी से मिलकर सिफारिश कर ले तो उस शिकायत पर तुरंत सुनवाई हो जाती है।

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