लखनऊ विकास प्राधिकरण के इतिहास में शायद यह पहला मामला होगा जिसमें उसने किसी व्यक्ति को मकान आवंटन के लिए जमा की गई राशि की सात गुना रकम बतौर हर्जाने के रूप में चुकाई हो और अभी उसे उक्त रकम का 67 गुना चुकाना बाकी है। एलडीए के अधिकारियों की लापरवाही से उत्पन्न हुई यह स्थिति आलाधिकारियों के कान खड़े कर देेने वाली है।

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चुकाएगा 4 लाख रुपए

  • यही नहीं, एलडीए अभी भी एक भवन को उक्त व्यक्ति को आवंटन करने के प्रति उत्तरदायी है।
  • उपभोक्ता फोरम के आदेश की अवेहलना से ऐसा हुआ है।
  • इस मामले में एलडीए वर्ष 1992 से अब तक उक्त व्यक्ति को एक मकान मुहैया नहीं करा सका है।
  • जबकि इस 25वर्षों के बीच एलडीए की न जाने कितनी योजनाएं आकर चली गईं।
  • हजरतगंज निवासी के एफन्डी ने लविप्रा में एक फार्म दिनांक 29-11-1982  को जमा किया था।
  • छह हजार के बैंक ड्राफ्ट सहित एलडीए कार्यालय में जमा किया था।
  • यह फार्म बी टाइप भवन के आवंटन के लिए किया गया था।
  • भवन की अनुमानित मूल्य 50 हजार रुपए विवरण पुस्तिका में छपी थी लेकिन उन्हें मकान नहीं मिल सका।
  • बाद में कुछ कारणवश एफन्डी का नाम लॉटरी में सम्मिलित नहीं किया गया।
  • लिहाजा उन्हें कई वर्षों बाद भी मकान नहीं मिला।

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जिला उपभोक्ता फोरम में पंहुचा विवाद

  • बाद में लखनऊ विकास प्राधिकरण ने मकान की कीमत 50 हजार से बढ़ाकर 1.50 लाख कर दी।
  • जबकि इस बीच उनकी छह हजार रुपए की राशि एलडीए में जमा रही।
  • इस पर के एफन्डी ने जिला उपभोक्ता फोरम में विवाद दाखिल किया।
  • इस दौरान उनकी ओर से फोरम के समक्ष अपना पक्ष रखा गया।
  • जिसके जवाब में एलडीए ने कहा कि हमारे यहां भवन का आवंटन लॉटरी से होता है।
  • 1983 में इनका नाम शामिल किया लेकिन इनका नाम उसमें नहीं निकला।
  • बाद में नाम शामिल नहीं हो सका। इसके अलावा, एलडीए ने अपने पक्ष में और कई तर्क दिए।
  • दोनों पक्ष सुनने के बाद फोरम ने कहा कि किसी भी व्यक्ति का धन कई वर्षों तक अपने पास रखना उचित नहीं।

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  • विपक्षी ने 1986 से 1992 तक परिवादिनी को लॉटरी ड्रा में शामिल नहीं किया। लिहाजा उनकी ओर से सेवाओं में कमी बरती गई।
  • वहीं, जहां तक मूल्य की बात है इसमें फोरम हस्ताक्षेप नहीं करेगा।
  • क्योंकि मूल्य कितना व कैसे बढ़ाया यह उसके अधिकार क्षेत्र में नहीं।
  • इसलिए फोरम भवन के बजाय भूखंड के आवंटन के लिए कोई राहत नहीं दे सकता।

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देना होगा भवन

  • कहा गया कि परिवादिनी को विपक्षी के कारण दस साल तक मानसिक कष्ट हुआ।
  • लिहाजा, विपक्षी शर्तों के साथ भवन देने के लिए बाध्य है।
  • एलडीए चार माह में एफन्डी को एक भवन क्रय विक्रय पद्धति पर गोमती नगर निर्माण योजना के तहत आवंटित करे।
  • भवन की बढ़ी हुई कीमत परिवादिनी शर्तों के आधार पर भुगतान करने के लिए उत्तरदायी होगी।
  • चार माह के अंदर अगर भवन का आवंटन किया जाता है।
  • तो ऐसी दशा में विपक्षी परिवादिनी को 50 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से आवंटन की तिथि तक हर्जाना दे।
  • इस आदेश के बाद भी एलडीए ने एफन्डी को मकान आवंटित नहीं किया न ही उच्च फोरम में मामले को ले गए।
  • लिहाजा, आदेश के चलते वर्ष 1995  की 25 जून को एलडीए ने बतौर हर्जाना 43,650 रुपए की चेक दी।
  • यह रकम एफन्डी द्वारा मकान आवंटन के लिए लगाये गए छह हजार रुपए के ड्राफ्ट करीब सात गुना थी।
  • इसके बाद एलडीए फिर सो गया। लिहाजा अब यह रकम 22 साल बाद करीब चार लाख से अधिक हो गई है।
  • जो जमा रकम की 67 गुना है।एलडीए जिसे चुकाने के लिए बाध्य है।
  • वहीं, एलडीए को अभी उन्हें मकान भी देना है जो वह आदेश के 25 सालों के बाद भी नहीं दे सका है।
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