गरीबी के कारण झुग्गियों में रहने वाला परिवार भी हमेशा अपने आशियाने का सपना देखता है। चाहे कैसे भी, अगर यह उन्हें नसीब हो जाए तो वह उनके लिए वह मकान बेशकीमती होता है। ऐसे में झुग्गी से निकल मकान में रहने की खुशी उनके लिए बेहद सुखद हो जाती है लेकिन कई साल मकान में रहने के बाद एक बार फिर से उन्हें मकान से बाहर कर झुग्गियों में रहना पड़े तो…? जाहिर है ये दुख किसी के लिए भी सह पाना आसान न होगा। कुछ ऐेसे ही दर्द को झेल रहे हैं आश्रयहीन योजना के मकान पाने व उसके छिन जाने के वाले 80 परिवार…।

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आवंटित किए गए थे भवन

  • लखनऊ विकास प्राधिकरण की ओर से वर्ष 2001-02 में आश्रयहीन योजना का खाका खींचा गया था।
  • योजना के अंतर्गत श्रम विहार नगर झोपड़ पट्टी पोस्ट राजेंद्रनगर के लोगों के लिए ईडब्ल्यूएस आवास देवपुरा पारा में आवंटित थे।
  • आवासों का कब्जा भी उन्हें दे दिया गया था।
  • इसके बाद झुग्गी झोपड़ीवासी उक्त स्थल को छोड़ अपने आवंटित आवास में निवास कर रहे थे।
  • करीब वर्ष 2013-14 में प्राधिकरण की ओर से योजना को समाप्त कर दिया गया।
  • और आवंटियों से आवास खाली करा लिये गए।
  • इसके बाद प्राधिकरण की ओर से आवासों को ध्वस्त करा दिया गया।
  • जानकारी के अनुसार, योजना लॉप होने व मकान की बिक्री न होने के चलते आवासों को ध्वस्त कराया गया था।
  • इसके बाद वहां रह रहे झोपड़ पट्टी में रहने वाले करीब 80 परिवार फिर से झोपड़ पट्टी में आ गए।
  • इस पर आश्रयहीन झुग्गी-झोपड़ी संघर्ष समिति ने लखनऊ विकास प्राधिकरण के अधिकारियों के सामने यह मामला उठाया।
  • साथ ही, उन्हें पुन: आवास दिए जाने की मांग रखी है।
  • उधर, प्राधिकरण के अधिकारियों की ओर से नए सिरे से जांच शुरू कर दी गई है।

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दोबारा किसी को नहीं किया जाता विस्थापित

  • सरकार का निर्देश हैं जिसके तहत एक बार विस्थापित करने के बाद किसी भी परिवार को दोबारा विस्थापित नहीं किया जा सकता।
  • यानी उससे मकान नहीं छीना जा सकता लेकिन इस मामले में ऐसा हुआ है।
  • लिहाजा इसमें पूर्णतया एलडीए की लापरवाही है।
  • ऐसे में एलडीए को बिना देरी किये उक्त परिवारों को बसाना चाहिए।
  • एलडीए सचिव जयशंकर दुबे का कहना है संघर्ष समिति की ओर से मामला संज्ञान में लाया गया है।
  • इस बाबत परीक्षण कराया जाएगा। वास्तविक स्थिति सामने आने के बाद कदम उठाए जाएंगे।

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