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सावधान! एशिया का मैनचेस्टर एक बार फिर खतरे में

leather production kanpur

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 3 लाख से ज़्यादा इंसानों के पेट से निकली भूखी आह चीख चीख कर रहम की भीख मांग रही है, पर हुक्मरान भी क्या करें? क्योंकि इस बार इन आहों का कारण वह पतित पावनी माँ गंगा बनी हैं, जो मोक्षदायिनी है। जी हाँ हम बात कर रहे हैं माघ में गंगा स्नान की और कानपुर के 3 लाख से ज़्यादा उन गरीब बेबस इंसानों की, जिनके पेट हैं पर केवल अकड़ने के लिए, जुबान है, पर केवल सूखे होंठों पर फिराने के लिए, घरों में चूल्हे हैं पर ठन्डे रहने के लिए और बच्चे हैं तो केवल और केवल भूखों मरने के लिए। 

महाकुम्भ में गंगा स्नान के चलते कानपुर की सभी 402 टेनरी बंद:

यह दास्ताँ है कानपुर के उन 60 हज़ार से ज़्यादा टेनरी मजदूरों की, जिनके पेट पर ताले जड़ गये हैं। महाकुम्भ में गंगा स्नान का हवाला देकर कानपुर की सभी 402 टेनरियां बंद कर दी गयी हैं, यानि कि उस चमड़ा उद्योग को ग्रहण लग गया जिसकी बदौलत कानपुर ने अपना नाम एशिया के मैनचेस्टर के रूप में दर्ज करवाया है। कानपुर के इस बचे खुचे उद्योग पर खतरे के बादल मंडराने के बाद इन टेनरियों में काम करने वाले हज़ारों मजदूरों के परिवारों के लाखों लोगों की आँखे बस केवल एक सवाल पूछ रही हैं “क्या मोक्षदायिनी गंगा अब मृत्युदायिनी हो गयी हैं?” 

कोर्ट के आदेश पर बंद हुई टेनरी:

कोर्ट के आदेश के बाद कानपुर जिला प्रशासन ने कानपुर की सभी 402 चमड़ा मिलों यानि टेनरियों को बंद करवा दिया है। इन टेनरियों द्वारा प्रदूषित जल गंगा में गिराए जाने और माघ महीने में गंगा को उस प्रदूषण से बचाए रखने की जुगत में इन टेनरियों पर बंदी की तलवार तो लटक गयी पर इस बंदी से इन टेनरियों में काम करने वाले करीब 60 हज़ार मजदूरों और उनके करीब 3 लाख परिवार वालों के सामने भुखमरी की समस्या पैदा हो गयी है घर के चूल्हे ठंडे पड़े हैं, खाने को लाले हैं, बच्चों की फीस तक नहीं जमा हो रही, कुछ बाहरी मजदूर तो पलायन तक कर गये और जो बचे हैं उन्हें कोई दूसरा काम तक नहीं मिल रहा। हालात यह हैं कि, पेट मुंह को आ गया है। टेनरी मालिकों की हालत भी कम बदतर नहीं है, एक तो टेनरियां बंद हैं ऊपर से उनपर 15 से 20 लाख का अतिरिक्त बोझ भी लदा है। तमाम देशों के आर्डर लटके पड़े हैं, करोड़ों रुपयों का नुकसान रातों की नींद हराम किये है। सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि, अगर इन टेनरियों पर कोई कार्रवाई करनी ही थी तो जिला प्रशासन को इन्हें इतना तो मौक़ा देना चाहिए था कि, गरीब मजदूर अपनी रोजी रोटी की कोई जुगत बना लेते। सवाल यह भी बहुत बड़ा है कि, क्या केवल टेनरियां बंद होने भर से “गंगा प्रदूषण” ख़त्म हो गया वह भी तब जब कन्नौज से लेकर कानपुर तक 80 बड़े गंदे नाले सीधे गंगा में गिर रहे हैं 18 तो केवल कानपुर में हैं

750 MLD प्रदूषण का वाहक है कानपुर:

दूसरे अगर देखा जाए तो केवल कानपुर से रोजाना 750 MLD प्रदूषित और गंदा जल निकल कर गंगा में मिलता है। इन 750 MLD में करीब 200 MLD गंदा जल टेनरियों से निकले केमिकल युक्त प्रदूषित पानी का होता है, तो करीब 550 MLD गन्दा जल कानपुर की करीब 28000 फैक्ट्रियों और घरेलू नालों से रोजाना गंगा में बहाया जाता है। कानपुर में फैक्ट्रियों और टेनरियों से निकले गंदे जल को शोधित करने के लिए “ट्रीटमेंट प्लांट” भी है पर उसकी क्षमता केवल 171 MLD की ही है। सवाल यह है कि, टेनरियों को बंद करने और 550 में से 171 MLD गंदे पानी को “ट्रीट” करने के बावजूद बचे हुए 379 MLD गंदे और प्रदूषित पानी का क्या होगा? जाहिर है बचा हुआ यह 379 MLD गन्दा पानी हर रोज़ सीधे गंगा में ही जाएगा। क्या इससे गंगा मैली और प्रदूषित नहीं हो रही? इस सवाल का जबाब न तो शासन के पास है और न ही उसके नुमाईंदे प्रशासन के पास। कुल मिलाकर सच्चाई केवल इतनी है कि गंगा को प्रदूषित करने की अकेले जिम्मेदार केवल टेनरियां ही नहीं है क्योंकि कानपुर की सभी टेनरियां इस वक़्त बंद हैं और उनके नालों और नालियों के मुहाने तक बंद हैं फिर भी गंगा मैली हो रही है और हर रोज़ हो रही है, ऐसे में 3 लाख से ज़्यादा इंसानों को भूखों मारना कहाँ तक सही है? इस गंभीर सवाल का जबाब शासन और प्रशासन को तलाशना ही होगा नहीं तो मोक्षदायिनी कहलाने वाली माँ गंगा मृत्युदायिनी साबित हो जायेगी

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