गणतंत्र दिवस के समापन के बाद समाप्ति का सूचक ‘बीटिंग द रिट्रीट’ का कार्यक्रम में रविवार को रिजर्व पुलिस लाइंस लखनऊ में मुख्य अतिथि के रूप में राज्यपाल रामनाईक पहुंचे। उन्होंने यहां परेड की सलामी ली। यह प्रथा पुरातन काल से चली आ रही है.

देखिये बीटिंग द रिट्रीट की तस्वीरें:

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29 जनवरी को आयोजित किया जाता कार्यक्रम

  • बता दें कि यह कार्यक्रम गणतंत्र दिवस के समाप्ति के बाद हर साल 29 जनवरी को आयोजित किया जाता है।
  • ‘बीटिंग द रिट्रीट’ कार्यक्रम में पुलिस बैंड के साथ सेना के जवान मार्च पास्ट करते हैं।
  • यह कार्यक्रम गणतंत्र दिवस समारोह की समाप्ति का सूचक और सेना की बैरक वापसी का प्रतीक है।
  • इसमें नौसेना, वायु सेना और थल सेना के बैंड पारंपरिक धुन के साथ मार्च करते हैं।
  • इस दिन सभी महत्‍वपूर्ण सरकारी भवनों को तिरंगी रोशनी से सुंदरता पूर्वक सजाया जाता है।
  • हर साल यह कार्यक्रम 29 जनवरी की शाम को गणतंत्र दिवस के तीसरे आयोजित किया जाता है।
  • इस कार्यक्रम में खास करके महात्मा गांधी की प्रिय धुनों में से एक ‘एबाइडिड विद मी’ धुन बजाई जाती है।
  • इसके अलावा ट्युबुलर घंटियों द्वारा चाइम्‍स बजाई भी जाती हैं।
  • यह काफी दूरी पर रखी होती है, इसके बाद रिट्रीट का बिगुल वादन किया जाता है।
  • ठीक शाम के 6:00 बजे बगलर्स रिट्रीट की धुन बजाई जाती है।
  • इसके बाद राष्‍ट्रीय ध्‍वज तिरंगे को उतार लिया जाता है और राष्‍ट्रगान गाया जाता है।
  • इस दौरान इस भव्य समारोह को देखने के लिए हजारों की तादात में लोग उपस्थित रहे।

पुरातन काल से चली आ रही प्रथा

  • परिसमाप्ति समारोह की प्रथा उस पुरातन काल से चली आ रही है।
  • जब सूर्यास्त होने पर युद्ध बंद कर दिया जाता था।
  • बिगुल पर रिट्रीट की धुन सुनते ही योद्धा युद्ध बंद कर देते थे और अपने शस्त्र समेट कर रणस्थल से अपने शिविरों को चले जाते थे।
  • इसी कारण रिट्रीट वादन के समय स्थिर खड़े रहने की प्रथा आज तक चली आ रही है।
  • रिट्रीट के समय सेनाओं के झंडे और निशान उतार कर रख दिये जाते थे।
  • नगाड़ा बजाना (ड्रम बीट्स) उस काल का प्रतीक है जब कस्बों तथा शहरों में रहने वाले सैनिकों को सायंकाल निश्चित समय पर अपने शिविरों में वापस बुला लिया जाता था।
  • इन्हीं प्राचीन प्रथाओं के मेलजोल से वर्तमान परिसमाप्ति समारोह का जन्म हुआ है।
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