मकर संक्रांति से एक दिन पहले सूर्यास्त के बाद लोहड़ी पर्व विशेष रूप से रुड़की रामनगर व अन्य क्षेत्रों में रीति-रिवाज के अनुसार मनाया जाता है। लोहड़ी में समाहित शब्द ‘ल’-को लकड़ी, ‘ओह’-को सूखे उपले (गोह) तथा ‘ड़ी’-को रेवड़ी का प्रतीक माना गया है। पंजाब में लोहड़ी पर खासतौर से धूम रहती है। बाजारों में खूब रौनक और चहल-पहल के साथ मूंगफली, रेवड़ी, गच्चक व मक्की के भुने दानों से सभी दुकानें सज जाती हैं। पंजाबी दिल खोलकर अपनों और दोस्तों-रिश्तेदारों को गिफ्ट्स देने के लिए इन सब चीजों पर खर्च करते हैं। अति व्यस्तता के बीच जब लोग अपने लिए भी समय नहीं निकाल पाते तो यह समय होता है- अपने  मोहल्ले और परिवार वालों के साथ जलते हुए अलाव के चारों ओर बैठ कर खाते-पीते हुए हंसी-मजाक करने और गाने-नाचने का। आग की मीठी-सी गर्माहट में अपने सुख-दुख बांटते भाईचारे को मजबूत करता यह पर्व रिश्तों में भी प्यार की गर्माहट को भर देता है।

गन्ने के रस की खीर, सरसों का साग को माना जाता है शगुन

घरों से बाहर एक खुले स्थान पर खूब सारी लकडिय़ों और उपलों से एक बहुत बड़ा ढेर बनाया जाता है जिसमें अग्नि प्रज्वलित करके तिल, गुड़, मक्की व पके हुए चावल अर्पित किए जाते हैं। ऊंची उठती आग की लपटों के चारों ओर परिक्रमा करते हुए ईश्वर से सुख-समृद्धि की कामना की जाती है। इसके बाद सब एक-दूसरे को लोहड़ी( Lohri )की शुभकामनाएं देते हैं और प्रसाद के रूप में मूंगफली, रेवड़ी, मक्की के दानों व गच्चक का आनंद उठाते हैं। इस दिन पंजाब के अधिकतर घरों में गन्ने के रस की खीर, सरसों का साग व मक्की की रोटी बनाना शगुन के तौर पर अच्छा समझा जाता है।

लोहड़ी से संबंधित लोक-कथा

वैसे तो लोहड़ी के दिन के साथ अनेक लोक-कथाएं जुड़ी हैं लेकिन दुल्ला-भट्टी की कथा खास महत्व रखती है। कहते हैं कि दुल्ला-भट्टी नाम का गरीबों का मददगार था। कहा जाता है कि पंजाब में संदलवार में लड़कियों को गुलामी के लिए अमीरों को बेचा जाता था। जब दुल्ला को इस बारे में पता चला तो उसने एक योजना के तहत लड़कियों को आजाद कराया व उनकी शादी भी करवाई। इसी वजह से उसे पंजाब के नायक की उपाधि भी दी गई थी। इसी दौरान उसने एक गांव की दो अनाथ लड़कियों सुंदरी व मुंदरी को अपनी बेटियां बनाकर उनका विवाह कराके उनका कन्यादान किया था। उनके विवाह के समय दुल्ले के पास शक्कर के अलावा कुछ भी नहीं था तो उसने सेर भर शक्कर दोनों की चुनरी में डालकर उन्हें विदा किया था।

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