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महाभारत : अब ‘लाक्षागृह’ के रहस्य से उठेगा पर्दा

baghpat lakshagrih

महाभारत काल में लाक्षागृह ‘दाह’ की घटना से कौन परिचित नहीं होगा. लाक्षागृह एक भवन था जिसे दुर्योधन ने पांडवों के विरुद्ध एक षड्यंत्र के तहत उनके ठहरने के लिए बनाया था. इसे लाख से निर्मित किया गया था ताकि पांडव जब इस घर में रहने आएं तो चुपके से इसमें आग लगा कर उन्हें मारा जा सके.

पुरातत्व विभाग की टीम पहुंची

उत्खनन करने पुरात्व विभाग का दल बागपत के बरनावा पहुंचा है. आज से लाक्षाग्रह के रहस्य से पर्दा उठना शुरू होगा. उत्खनन करने बागपत के बरनावा में पुरातत्व विभाग की टीम पहुंची है. बरनावा के लाक्षाग्रह टीले पर महाभारत कालीन अवशेष मिल चुके है.आज भी यहां मौजूद है वह सुरंग जिससे पांडव बचकर निकले थे. पूर्व मंत्री नवाब कोकब हमीद कहते हैं कि खंडवारी की गुफा इतिहास में मिले प्रमाण और बुजुर्गों की कहानियां बताती हैं कि हस्तिानापुर, बरनावा और बागपत के खंडवारी क्षेत्र में ही महाभारत हुआ था. यह पूरा क्षेत्र एक-दूसरे से जुड़ता है. हकीकत जानने के लिए लंबे समय तक अध्ययन  की जरूरत है.इतिहास को सहेजने के लिए गंभीरता से प्रयास भी करने चाहिए.

लाक्षागृह दाह ‘एक साजिश’

महाभारत काल में इसका जिक्र एक साजिश के रूप में हुआ है. लाक्षागृह एक भवन था जिसे दुर्योधन ने पांडवों के विरुद्ध एक षड्यंत्र के तहत उनके ठहरने के लिए बनाया था. इसे लाख से निर्मित किया गया था ताकि पांडव जब इस घर में रहने आएं तो चुपके से इसमें आग लगा कर उन्हें मारा जा सके. यह वार्णावत (वर्तमान बरनावा) नामक स्थान में बनाया गया था.

रहस्यों से उठेगा पर्दा

पूर्व मंत्री नवाब कोकब हमीद कहते हैं कि खंडवारी की गुफा इतिहास में मिले प्रमाण और बुजुर्गों की कहानियां बताती हैं कि हस्तिानापुर, बरनावा और बागपत के खंडवारी क्षेत्र में ही महाभारत हुआ था. यह पूरा क्षेत्र एक-दूसरे से जुड़ता है. इतिहास को सहेजने के लिए गंभीरता से प्रयास भी करने चाहिए। बागपत के खंडवारी में रह रहे महाराज कंवर नाथ बताते हैं कि इस गुफा में जंगली जानवरों ने डेरा बना लिया था. करीब 60 साल पहले तेंदुए के गुफा में घुस जाने के कारण बाद में इसे बंद कराया गया.

बरनावा से बागपत तक आज भी गुफा

बरनावा से बागपत तक करीब 30 किमी लंबी गुफा वर्तमान समय में भी मौजूद है. स्थानीय लोगों का दावा है कि इसी गुफा के जरिये वार्णावृत्त से पांडव बच निकलते हुए बागपत तक पहुंचे थे. पर्यटन सर्किट में शामिल होने के बाद सुरंग का आगे का हिस्सा पक्का करा दिया गया. केंद्र द्वारा इसके विकास के लिए पैसा भी आया लेकिन फिर भी कुछ खास नहीं हुआ. बरनावा और बागपत की कश्यप कॉलोनी में यमुना किनारे स्थित खंडवारी में इसके प्रमाण आज भी मौजूद हैं.

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