इन्वेस्टर्स समिट को लेकर प्रदेश में जमकर तैयारियां की गई। लखनऊ को चमकाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी गई। मेहमानों को सुन्दर शहर दिखाने के लिए हर कदम उठाए गए। इस कदम से कुछ लोगों के पेट पर लात भी पड़ा। सड़क के किनारे ठेला लगाकर भरण-पोषण करने वालों की दुकानें हटवा दी गई।

एक-एक पाई जोड़कर अपनी जिंदगी गुजारने को मजबूर से लोगों को बंद किए जाने के दौरान खाने को लाले पड़ गए हैं। तो वहीं पढ़ाई के साथ साथ काम कर अपना और अपने परिवार का पेट भर रहे इन लोगों पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा है। ऐसे में उन सैकड़ों गरीबों को सिर्फ एक जून की रोटी ही नसीब हो रही है। एक तरफ जहां मोदी और योगी सरकार रोजगार के नए साधनों की बात करते हैं और पकौड़े बेचने को भी रोजगार के तौर पर देखने की बात करते हैं। तो वहीं ऐसे रोजगारों से अपनी जीविका चलाने वाले लोगों से उनका रोजगार छीन लिया गया है। आपको बता दें शहर में इन्वेस्टमेंट के साथ रोजगार की संभावनाओं को लेकर 21 व 22 फरवरी को एक बड़ा व ऐतिहासिक इन्वेस्टर्स समिट का आयोजन किया गया है। जिसमें देश, विदेश के सैकड़ों इन्वेस्टर्स ने हिस्सा लिया। वहीं इन सभी इन्वेस्टर्स को लुभाने के लिए शहर में बड़े इंतजाम किये गए हैं।

शहर की साफ सफाई व सजावट तो किसी होली, दीवाली के त्यौहार से कम नहीं है। इतना ही नहीं, इन्वेस्टर समिट के चलते शहर के छोटे-मोटे पटरी दुकानदारों और ठेला लगाकर चाय-बिस्किट बेचने वालों का भी सफाया कर दिया गया है। युवाओं के लिए रोजगार की तलाश में सैकड़ों लोगों का स्वरोजगार छीन लिया गया है। जिसके बाद कई दिनों से अब ऐसे गरीबों को एक जून की रोटी ही नसीब हो रही है। ऐसे में बड़ा सवाल है कि रोजगार की बात करने वाली सरकार गरीबों का रोजगार कैसे छीन सकती।

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