जैसे-जैसे 2019 का चुनाव नज़दीक आ रहा है, बसपा प्रमुख मायावती के तेवर बदलते हुए नज़र आ रहे हैं। उपचुनावों में सपा के साथ अप्रत्याशित गठबंधन करके मायावती ने जैसे राजनीतिक दलों की परेशानी बढ़ा दी थी, ठीक उसी तरह 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले बहनजी कुछ अप्रत्यक्ष एवं अप्रत्याशित निर्णय लेती हुई देखी जा सकती हैं।

दलित आंदोलन के बाद बदला समीकरण

राजनीतिक जानकारों के अनुसार बसपा अपने अस्तित्व के लिए लड़ रही है लेकिन मायावती के तेवर और बदलते राजनीतिक समीकरण ने यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि बिना मायावती के समर्थन के इस बार नैया पार नहीं लगने वाली है। दलित आंदोलन के बाद बसपा निर्णायक हो चली है। कम से कम उत्तरप्रदेश में तो यह साफ़ देखा जा सकता है।

हाल ही में मायावती ने प्रेस कांफ़्रेस से ज़रिये जहां ख़ुद को भीम आर्मी से अलग कर लिया वहीं यह भी कहा कि दलितों की सच्ची हितैषी सिर्फ बसपा पार्टी है। उन्होंने आगे कहा कि बसपा सम्मानजनक सीट मिलने पर ही गठबंधन करेगी।

मध्यप्रदेश में अकेले चुनाव लड़ेगी बसपा

इसी क्रम में मायावती का सबसे अहम निर्णय मध्यप्रदेश में अकेले चुनाव लड़ना है। जिस गठबंधन की बात उत्तरप्रदेश के राजनीतिक गलियारों में की जा रही है, वही दल मध्यप्रदेश में भी चुनाव लड़ रहे हैं। मायावती ने सपा और कांग्रेस से किनारा कर लिया है।

छत्तीसगढ़ में लगभग 40% सीट पर समझौता

छत्तीसगढ़ विधानसभा सीट पर अजित जोगी की पार्टी के साथ गठबंधन करके मायावती ने राजनीतिक पंडितों को चौंका दिया। सबसे अहम संकेत यह है कि छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में मायावती ने 40% विधानसभा सीट पर समझौता किया है।

अब देखना यह है कि उत्तरप्रदेश में बसपा किस तरफ़ जाएगी। या फिर मायावती अकेले चुनाव लड़ेंगी। अभी तक बसपा ने अपने पत्ते नहीं खोले है।

इसके साथ ही हर बूथ और लोकसभा सीटों पर मायावती ने बसपा को मजबूत करने का आदेश दिया है। पार्टी कार्यकर्ताओं ने इसके लिए तैयारी भी शुरू कर दी है।

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