2 अप्रैल को भारत बंद के दौरान हुई हिंसा का दंश बड़ी तादात में बच्चों को झेलना पड़ा है। मेरठ पुलिस ने ऐसे ही दर्जनों बेकसूर बच्चों को लाठी के जोर पर फर्जी मुकदमें लगाकर जेल में ठूँस दिया। जिला जेल में अभी भी ऐसे आठ बच्चे बंद है जिनका पुरसाहाल लेने वाला कोई नहीं। जिला प्रशासन और पुलिस अपनी कुर्सी बचाने में जुटी है। 

8 बच्चे जिला जेल में बंद :

मेरठ के कालियागढ़ी का रहने वाला सचिन इस साल अगस्त में 15 साल का होगा. लेकिन वह तीन महीनों से मेरठ की जिला जेल में बंद है। 2 अप्रैल को भारत बंद के दौरान हुई हिंसा के वक्त वह अपने घर के पास ट्यूटर के घर से लौट रहा था। पुलिस ने उसकी जाति पूँछी और थाने में डाल दिया।
पुलिस ने उसके ऊपर हिंसा के फर्जी मुकदमें लगाये और अगले दिन जिला जेल में डाल दिया। सचिन नाबालिग है, यह जानते हुए भी पुलिस के अधिकारी उसे जिला जेल से बाल संप्रेक्षण गृह नहीं भेज रहे है। पुलिस के कागजों में उसकी उम्र 19 साल लिख दी गयी है। वहीं गार्ड की नौकरी करने वाले उसके पिता महीनों से कोर्ट-कचहरी के चक्कर काट रहे है। 

नहीं भेजा बाल संप्रेक्षण गृह:

बता दें कि मेरठ जिले में भारत बंद हिंसा के दौरान पुलिस ने कार्रवाई के नाम पर बड़ी तादात में बेकसूर बच्चों को जेल में डाला है.इस बात को दबी जुबान से पुलिस और प्रशासन दोनो ही स्वीकार करते हैं। कई बच्चों को जिला जेल से बाल संप्रेक्षण गृह भी भेजा गया। मगर अब भी जिला जेल में आठ बच्चे बंद है।
राष्ट्रीय अनुसूचित जाति, जनजाति आयोग ने जब राज्य सरकार से इस मामले में रिपोर्ट मांगी तो पुलिस-प्रशासन ने फर्जी रिपोर्ट दाखिल करके कह दिया कि कोई बच्चा जिला जेल में नहीं है। मगर, राष्ट्रीय मानवाधिकारी आयोग और राष्ट्रीय बाल अधिकार आयोग को मिली शिकायत के बाद हरकत में आये जिला प्रशासन ने इन बच्चों की पहचान की है और रिपोर्ट शासन को दाखिल कर दी है।

नाबालिगों की उम्र लिखी गलत:

पुलिस और प्रशासन अब आयोग और हाईकोर्ट की कार्रवाई से बचने के लिए बच्चों को बाल संप्रेक्षण गृह भेजने की फिराक में है। 
वहीं मेरठ की तत्कालीन एसएसपी मंजिल सैनी हिंसा के बाद हुई बेगुनाहों और बच्चों की गिरफ्तारी के मामलों में फँसी है। बच्चों के अलावा ऐसे बहुत से छात्रों की भी जबरन गिरफ्तारी की गयी जो दूर शहरों के है और उनका हिंसा से लेना-देना नही था।
हिंसा से जुड़े सैकड़ो मामलों में से ज्यादातर में पुलिस चार्जशीट फाइल कर चुकी है इसलिए बच्चों की रिहाई या उन्हें संप्रेषण गृह में भेजा जाना आसान नहीं है। इसीलिए जिला प्रशासन के अफसर न तो जेल में बंद बच्चों का आंकड़ा बता रहे हैं और न ही अब यह स्वीकार कर रहे हैं कि जिला जेल में अभी भी बच्चे बंद है। 
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