अभी 5 महीने पहले ही लखनऊ में हुए इन्वेस्टर्स समिट तो लखनऊ वासी भूले नही होंगे. उस 2 दिवसीय कार्यक्रम के लिए 650 करोड़ रूपए खर्च किये गये थे. खर्च क्या हुए थे बल्कि पानी की तरह बहा दिए गये थे. और बड़ी बात तो ये है की इस 650 करोड़ में कार्यक्रम का प्रचार शामिल नहीं था. आखिर सिर्फ एक कार्यक्रम में इतने कैसे खर्च हो गये?

किराया महंगा, मगर खरीद सस्ती:

इन्वेस्टर्स समिट में लगीं एलईडी स्ट्रिप किराये पर ली गयी थी. उनका किराया था 99 रूपए प्रति मीटर. पर अभी हाल ही में हुए स्मार्ट सिटी वर्कशॉप में वही लाइटे 26 रूपए प्रति मीटर में खरीदी गयीं  थी. इसका मतलब ये हुआ की उन लाइटो का किराया उनकी कीमत से भी ज्यादा था. ये तो वही बात हो गयी की ‘जितने की मुर्गी नहीं, उतने का मसाला.’ 

शासन ने दिए थे जांच के आदेश:

जब मामला सामने आया तब शासन ने जांच के आदेश दिए थे. उस समय विधानसभा में भी यह मामला गूंजा था. बता दें की जांच अभी भी चल ही रही है. नगर आयुक्त डॉ. इन्द्रमणि त्रिपाठी ने बताया था की इस बार के वर्कशॉप में पिछले कार्यक्रम से ज्यादा लाइट लगी हैं. खरीदने का यह फायदा हुआ की अब लाइटे नगर निगम की हो गयीं और कुल खर्च मात्र 13 लाख ही आया.

कैसे खेला गया था पूरा खेल?

वैसे तो ये एलईडी स्ट्रिप थोक  बाज़ार में 30 से 50 रूपए प्रति मीटर की मिलती हैं. मगर नगर निगम ने 99 रूपए प्रति मीटर दर पर किराये पर लगवाया था. 2,557 पोलों पर ये स्ट्रिप लगे थे. हर पोल पे करीब 15 मीटर स्ट्रिप का प्रयोग किया गया था.

यह काम एक ही ठेकेदार को दिया गया था. हाईड्रोलिक लिफ्ट और डीजल का खर्चा भी नगर निगम ने ही किया था. एक ही फ़र्म, खन्ना इलेक्ट्रिकल्स द्वारा किये गये इस सजावट के काम में कुछ 38  का खर्च हुआ था. और इस हेरा फेरी की पोल न खुले इसलिए फ़र्म को 4 से 5 लाख के 8 अलग अलग वर्क आर्डर दिए गये थे. मतलब चोरी की और चोरी से बचने का भी पूरा इंतजाम कर लिया गया था. 

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