उत्तर प्रदेश चुनाव में कुछ विशेष वर्ग को टिकट मिलने और उनके विधानसभा में पहुंचने पर खास चर्चा रहती है। इन्हीं कुछ एक विशेष वर्ग को राजनीतिक दलों की सत्ता की सीढ़ी चढ़ने और उतरने कारण माना जाता है। वैसे तो उत्तर प्रदेश का वोट कई वर्गों पर बटा हुआ है। लेकिन कुछ खास वर्गों का वोट और प्रत्याशी ही सरकारों को यूपी विधानसभा का रास्ता दिखाता नज़र आता है।

वर्तमान परिदृश्य यह है कि इस समय राजनीतिक दलों में मुस्लिम वर्ग को अपने विश्वास में लेना एक बड़ी चुनौती है। इसी के चलते राजनीतिक दलों ने 2017 यूपी विधानसभा चुनाव में मुस्लिम उम्मीदवारों को काफी टिकट दिए हैं। बसपा ने इस बार करीब 100 मुस्लिम प्रत्याशी घोषित किए हैं। वहीं सपा ने भी 50 से अधिक मुस्लिम प्रत्याशियों को टिकट दिए है। साथ ही कई अन्य राजनीतिक दलों ने मुस्लिम प्रत्याशियों को टिकट दिए हैं।

ऐसा नहीं है कि इस विशेष वर्ग के प्रत्याशियों पर दलों का विश्वास पहली बार जागा है। आजादी के बाद से ही इस वर्ग ने राजनीतिक गलियारों में अपनी स्थिति दर्ज कराई है। राजनीतिक दलों के लिए इस विशेष वर्ग ने 1951, 1957, 1967 में बड़ी भूमिका निभाई है। वहीं इमरजेंसी के बाद विधानसभा में मुस्लिम प्रतिनिधियों का प्रतिनिधित्व काफी तेजी से बढ़ा था। कुछ एक बार छोड़ दें तो इस वर्ग का यूपी विधानसभा में कद काफी बढ़ा है।

कुछ यूं बढ़ा विधानसभा में मुस्लिम प्रतिनिधियों का कद

  • आजादी के बाद मुस्लिम प्रतिनिधित्व 1951 और 1957 में 9 से 10 प्रतिशत के करीब रहा।
  • बीच के कुछ साल छोड़ दें तो इमरजेंसी के बाद मुस्लिम प्रतिनिधित्व का ग्राफ काफी तेजी से बढ़ा।
  • 1977 से 1985 तक यूपी में मुस्लिम प्रतिनिधित्व 11.53 प्रतिशत तक रहा।
  • हालांकि जब बीजेपी हिन्दुत्व के मुद्दे के साथ विधानसभा में 221 सीटों के साथ पहुंची,
  • तो यह आकड़ा अचानक घटकर 4.05 पर सीम गया।
  • हालांकि 2002 में यूपी विधानसभा में मुस्लिम प्रतिनिधित्व का आंकड़ा एक बार फिर 11.66 प्रतिशत के साथ तेजी से बढ़ा।
  • वहीं पिछले विधानसभा चुनाव (2012) यह आकड़ा सबसे शीर्ष पर रहा।
  • 2012 विधानसभा चुनाव में 17.12 प्रतिशत मुस्लिम प्रतिनिधी यूपी विधानसभा में पहुंचा।
  • हालांकि 2017 में यह आकाड़ा कितना घटता या बढ़ता है, यह देखने वाली बात होगी।
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