उत्तर प्रदेश के वाराणसी में स्थित पुराना दुर्गा बाणी में एक ऐसी दुर्गा प्रतिमा है, जिसको 251 सालों से अब तक विसर्जित नहीं किया गया है। बंगाली परिवार की एक सदस्य ने UttarPradesh.Org को बताया कि साल 1767 में उनके पूर्वजों ने नवरात्र के समय बर्वाड़ी दुर्गा पूजा के लिए मां की एक प्रतिमा को स्थापित किया था।

1767 में स्थापित की गयी थी प्रतिमा:

बता दे कि दुर्गा पूजा के आखिरी दिन पूजन-अर्चन के बाद सभी दुर्गा प्रतिमाओं का विसर्जन किया जाता है। पर एक ऐसी दुर्गा प्रतिमा भी है जो साल 1767 में स्थापित तो हुई लेकिन विसर्जित अब तक नहीं हुई.

इस बारे में जब UttarPradesh.Org के संवाददाता ने पड़ताल की तो मूर्ति स्थापित करने वाले परिवार से इस बारे में जाना.

यहां रहने वाले बंगाली परिवार ने बताया कि परिवार के मुखिया के सपने में दुर्गा मां आई थी। उन्होंने कहा था कि उन्हें विसर्जित मत करना। वे वहीं रहना चाहती हैं। इसके बाद से मां की प्रतिमा उस बंगाली परिवार में सालों से विराजमान हैं।

बंगाली परिवार सालों से माँ की कर रहा पूजा अर्चना:

इसी बंगाली मुखर्जी परिवार के एक पुरुष सदस्य ने बताया कि साल 1767 में उनके पूर्वजों ने नवरात्र के समय बर्वाड़ी दुर्गा पूजा के लिए मां की एक प्रतिमा को स्थापित किया था।

जब माँ दुर्गा की प्रतिमा को दशहरे की दिन विसर्जन के लिए उठाने का प्रयास किया गया तो माँ की प्रतिमा अपने स्थान से हिली तक नहीं। इस बात को सुनकर मौके पर काफी लोग जमा हो गए थे।

सभी लोगो ने मिलकर माँ की मूर्ति को उठाने का काफी प्रयास किया लेकिन पांच फीट की यह मूर्ति हिली तक नहीं।

माँ दुर्गा नहीं चाहती थीं विसर्जित होना:

बंगाली परिवार के सदस्य एचके मुखर्जी ने बताया कि उसी रात परिवार के मुखिया मुखर्जी दादा को माँ दुर्गा ने दिव्य स्वप्न में दर्शन दिया और माँ ने कहा कि वह यहां से जाना नहीं चाहती हैं। उन्हें केवल गुड और चने का रोज शाम को भोग लगा दिया करें। वे यहीं पर रहेंगी।

खास बात यह है कि मिट्टी, पुआल, बांस, सुतली से बनी ये प्रतिमा इतने सालों बाद भी वैसी ही आज भी विराजमान है। नवरात्र में माँ की महिमा को सुनकर लोग दूर-दूर से दर्शन करने आते है।

यहाँ आने वाले भक्तों का कहना है कि उन्होंने माँ दुर्गा की ऐसी प्रतिमा आज तक नहीं देखी है। माँ दुर्गा की मूर्ति की महिमा के बारे में उन्होंने अपने पूर्वजों के बारे में सुना है। देश में यह अद्भुत प्रतिमा है। यह आज तक विसर्जित नहीं हुई है।

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