आदर्श कोतवाली में खांकी पर मौत का साया। घोड़ों पर चढकर सुरक्षा का जिम्मा संभालने वाले पुलिसकर्मी जयसिंहपुर थाने मे अस्तबल में रहने को मजबूर हो गए है ।

 

जरा गौर से देखिए इस वीडियो को जो सुरक्षाकर्मियों के दुर्दशा का दंश झेल रहे जवानों की व्यथा को दिखा रहे हैं । घोड़ों पर चढकर सुरक्षा का जिम्मा संभालने वाले पुलिसकर्मी जयसिंहपुर थाने मे अस्तबल में रहने को मजबूर हो गए है । आज जहां हाइटेक जमाने में डायल 112 व 1090 के तहत दस मिनट में प्रदेश के कोने में आम आदमी को सुरक्षा व्यवस्था मिलने का सरकार दावा कर रही है। वही जयसिंहपुर में सुरक्षाकर्मियों के रहन-सहन की यह व्यवस्था सरकार ही नही पुलिस के नियम कानून को भी हास्यास्पद साबित कर रही है।

जयसिंहपुर थाने का नाम उन आदर्श थानों में सुमार है , जब देश की आजादी के बाद सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद करने के लिए जनपद के गिने चुने स्थानों पर थाने निर्मित किए गए। भवन न होने के चलते शुरुआत में थाने का संचालन कुछ दिनों तक जयसिंहपुर बाजार के समीप स्थित कांजी हाउस से किया गया।

बाद में जमीन तलाशी गई और बरौंसा-बिरसिंहपुर रोड पर कस्बे में ही थाना भवन का निर्माण कार्य शुरू हो गया। 1957 में भवन निर्माण का कार्य पूरा हुआ तो तत्कालीन आई.पी. एस. इंस्पेक्टर जनरल पुलिस उत्तर प्रदेश महशेन्द्र शंकर माथुर ने 31 जनवरी को उद्धघाटन कर इसे जनता के लिए खोल दिया।

1957 के बाद से जयसिंहपुर क्षेत्र की समस्याओं को सुलझाने के लिए यहां पर जिसको भी तैनाती मिली उसने दिन रात मेहनत कर अमन चैन कायम रखने का भरसक प्रयास किया। समय के साथ साथ व्यवस्थाएं बदलीं लेकिन हमारी सुरक्षा में लगाए गए सुरक्षा कर्मियों की सहूलियतों की तरफ ध्यान नही दिया गया। तभी तो हमारी सुरक्षा में लगाए गए सुरक्षा कर्मी आज खुद असुरक्षित जीवन जीने को विवश हैं या यूं कहें हमें महफूज रखने के लिए खुद काल के गाल का निवाला बनने को तैयार है ।

बताते चलें कि थक हार कर ड्यूटी से वापस लौटने के बाद पुलिस के जवानों को उस भवन में रहना पड़ रहा है जिसमें कभी घोड़े बांधे जाते थे। पूर्व में बनाए गए 3 उपनिरीक्षक आवास, एक प्रभारी निरीक्षक आवास, 5 कमरों का आरक्षी भवन, दो छोटी बैरकें थाने में तैनात सुरक्षा कर्मियों की संख्या के हिसाब से बहुत ही कम हैं।

ऐसे में सुरक्षा कर्मी प्राइवेट कमरों या फिर जुगाड़ के सहारे अस्तबल में रहने को विवश हैं। बरसात में यहां की स्थिति और भी दयनीय हो जाती है। इतना ही नही बारिश के दिनों में छतों से पानी रिसने के कारण पुलिस कर्मियों का सामान भी भीग जाता है। टूटी दीवारें व जर्जर भवन देखकर बाहर के लोग कमरे के अन्दर जाने से कतराते हैं। जबकि सुरक्षा कर्मी ऐसे भवनों में रहने को विवश हैं।

फिलहाल आदर्श कोतवाली में सहूलियतों के नाम पर टोटा जयसिंहपुर थाने को आदर्श कोतवाली का दर्जा मिला है। लेकिन जनता की सुरक्षा में तैनात सुरक्षा कर्मियों की मूलभूत सुविधाओं पर ध्यान नही दिया गया। यहां तक की शुद्ध पेयजल की व्यवस्था न होने से पुलिस कर्मियों को पीने के पानी के लिए आरओ का पानी मंगाना पड़ता है।

मौजूदा समय में जयसिंहपुर कोतवाली में एक प्रभारी निरीक्षक, उपनिरीक्षक, हेड कांस्टेबल, कांस्टेबल, महिला कांस्टेबल समेत कुल लगभग 4 दर्जन स्टाफ हैं । फिलहाल जब इस बाबत एसपी शिवहरि मीणा से बात करनी चाही गई तो एसपी ने कैमरे पर बोलने से साफ इंकार कर दिया ।

UTTAR PRADESH NEWS की अन्य न्यूज पढऩे के लिए Facebook और Twitter पर फॉलो करें