राजधानी लखनऊ स्थित छावनी में आठ की जगह 12 घंटे तक अपने कर्मचारियों से काम कराने वाले ठेकेदारों ने उनको दिए जाने वाले पीएफ और ईएसआई की रकम पर डाका डाल दिया है। इन ठेकेदारों ने छावनी परिषद कर्मचारियों की मिलीभगत से पिछले दो साल के दौरान बड़ा खेल कर दिया। पिछले दिनों जब छावनी परिषद ने ऑडिट किया तो इसका पता चला।

परिषद ने नोटिस जारी की, लेकिन तीन महीने बीत जाने के बाद भी ठेकेदार उसका जवाब और दस्तावेज उपलब्ध नहीं करा सके। इस संबंध में छावनी परिषद के मुख्य अधिशासी अधिकारी अमित कुमार मिश्र ने बताया कि कई एजेंसियों ने अपने कर्मचारियों के पीएफ और ईएसआई की डिटेल नहीं दी है। यह राशि उनके टेंडर की 12 प्रतिशत होती है, लेकिन छावनी परिषद ने 20 प्रतिशत के भुगतान को रोक लिया है। अब सभी दस्तावेज उपलब्ध कराने के बाद ही 20 प्रतिशत भुगतान होगा।

छावनी परिषद में आउटसोर्सिग के कर्मचारी निजी एजेंसियों के माध्यम से काम करते हैं। इसमें अस्पताल, स्कूलों, कार्यालय, निजी सुरक्षा गार्डो के अलावा सफाई करने वाले कर्मचारी शामिल हैं। नियमानुसार एजेंसियों के कर्मचारियों का वेतन बैंक खातों में जाना चाहिए। उनको न्यूनतम वेतन देने के साथ पीएफ और ईएसआई की सुविधा भी एजेंसी को देनी होती है। कर्मचारियों की हाजिरी भी बायोमीटिक के जरिए लगायी जानी चाहिए।

कर्मचारियों की संख्या और उनको दिए जाने वाले वेतन व पीएफ के साथ ईएसआई की कटौती को जोड़कर ही एजेंसियां अपना बिल छावनी परिषद के वित्त अनुभाग को जमा करती हैं। वित्त अनुभाग में कर्मचारियों की मिलीभगत से पिछले दो साल के दौरान इन निजी एजेंसियों को करीब 40 लाख बिना पूर्ण दस्तावेजों के ही जारी कर दिया गया। एजेंसियों ने अपने यहां तैनात कर्मचारियों की संख्या जितनी बताई, उतने बैंक अकाउंट की डिटेल नहीं दे सके।

ईएसआई और पीएफ में रुपये जमा करने का बिल तो लगा दिया, लेकिन कितने कर्मचारियों ने जमा किया गया इसकी डिटेल ही नहीं दी गयी। दो साल में कर्मचारियों के पीएफ और ईएसआई को लेकर करीब 40 लाख रुपये का खेल हो गया। इतना ही नहीं परिषद प्रशासन की ओर से जो भी सामान उपलब्ध कराया गया उसके बिल तक नहीं लगाए गए।

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