बस में कुछ सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित कर देना या गुलाबी ऑटो, ट्रेन में एक अलग बोगी जैसे प्रयास क्या महिलाओं को सुरक्षित करने का स्थायी समाधान है? क्या हमें ऐसे समाज बनाने की ज़रूरत नही है जहाँ सभी जेंडर के लोग सुरक्षित महसूस करें जहाँ सिर्फ़ स्त्री पुरूष के अलावा तीसरे जेंडर की भी बात हो। ये वो सवाल थे जो कैफ़े टॉक में लोगों के जहन से निकल कर ज़ुबान पर आ गए थे, मौक़ा था मानवाधिकार और महिला मुद्दों पर काम करने वाली संस्था ब्रेकथ्रू द्वारा आयोजित कैफ़े टॉक का जिसमें चर्चा का मुद्दा था ‘जेंडर इनक्लूजिव सेफर स्पेस’।जिसमें पैनल के रूप में शामिल रहे पेशे से शिक्षक व थियेटर कलाकार सदफ जाफ़र और ब्रेकथ्रू के सुनील। समन्वय की ज़िम्मेदारी निभाई नदीम ने।कार्यक्रम में काफ़ी संख्या में युवा शामिल रहे।

कार्यक्रम की शुरूआत करते हुए सुनील ने कहा कि चर्चा शुरू करने से पहले हमें समझना होगा कि जेंडर क्या हैं और जेंडर इन्क्लूजिव स्पेस क्या होता और इस पर चर्चा करने की ज़रूरत क्यों है? उन्होंने कहा कि हर रोज़ हमें महिलाओं के साथ तरह-तरह कि हिंसा की ख़बरें सुनने और पढ़ने को मिलती न वो घर में सुरक्षित है न बाहर, आख़िर सभी के लिए जिसमें महिलाएँ-पुरुष और थर्ड जेंडर भी शामिल है, सेफर स्पेस हम कैसे बना सकते यह हम सब को सोचना होगा और इसके लिए क़दम उठाने होंगे।

सदफ जाफ़र ने कहा कि जब महिलाओं की सुरक्षा की बात आती है तो सभी को सबसे आसान लगता है कि इन्हें औरों से अलग कर दो पिंक ऑटो चला दो, ट्रेन में बोगी अलग कर दो और क्लास में भी अलग बैठा दो शायद इसके पीछे की असल वजह को हम सब देखना नहीं चाहते। ज़रूरी यह है कि अलगाव करके हम तमाम नई सामाजिक विकारों को जन्म देते हैं लड़का और लड़की और स्त्री और पूरूष के बीच एक रेखा बना कर हम एक तरह अलगाव पैदा कर देते हैं।

ज़रूरी है कि हम केवल लड़कियों के लिए सुरक्षित जगह की बात न करे बल्कि हम सभी जेंडर के लिए सुरक्षित जगह बनाने पर काम करें और बचपन से हमारी जो कंडीशनिंग हुई है जिसमें जेंडर के आधार सब कुछ देखा और सुना गया है उससे अलग हट कर जेंडर न्यूट्रल समाज बनाने पर ज़ोर दे जिसमे सभी के लिए सेफर स्पेस हो। उन्होंने कहा कि हमें अपने बच्चों को घर से ही इसके बारे में जागरूक करने की ज़रूरत है जिससे आने वाली पीढ़ी को इसकी बेहतर समझ रहे और वो इसे बनाने में अपनी ज़िम्मेदारी निभा सके साथ ही पुरुष,महिलाओं के साथ-साथ थर्ड जेंडर को भी बराबरी का दर्जा देना होग ।

इस अवसर पर मैनेजमेंट के छात्र सैफ़ ने कहा कि नर्सरी से 12 तक हमें बच्चों को समझाने की ज़रूरत है कि कैसे सेफ स्पेस बनाए जाएँ। दिविता सिंह ने बताया कि लोग जेंडर को सूरज और चाँद से जोड़ते हैं क्योंकि सूरज को पुरूष और चाँद को स्त्री का रूप मानते हैं। क्योंकि स्त्री करूणा और ममता से परिपूर्ण होती है इसलिए चन्द्रमा की तरह शांत होती है जबकि और पुरूष क्रोध और शक्ति से जुड़े होते हैं जो सूरज के गर्म स्वभाव से जुड़े होते हैं। हमें इन चीज़ों से बाहर निकल जेंडर को बेहतर तरीक़े से समझने की ज़रूरत है। कार्यक्रम में ब्रेकथ्रू से अभिषेक,श्वेता सहित काफ़ी संख्या में विभिन्न कॉलेजों के स्टूडेंट शामिल रहे।

बता दें कि ब्रेकथ्रू एक मानवाधिकार संस्था है जो महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ होने वाली हिंसा और भेदभाव को समाप्त करने के लिए काम करती है। कला, मीडिया, लोकप्रिय संस्कृति और सामुदायिक भागेदारी से हम लोगों को एक ऐसी दुनिया बनाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं, जिसमें हर कोई सम्मान, समानता और न्याय के साथ रह सके। ये मल्टीमीडिया अभियानों के माध्यम से मानवाधिकार से जुडें मुद्दों को मुख्य धारा में ला रहे हैं। इसे देश भर के समुदाय और व्यक्तियों के लिए प्रासंगिक बना रहे हैं। इसके साथ ही हम युवाओं, सरकारी अधिकारियों और सामुदायिक समूहों को प्रशिक्षण भी देते हैं, जिससे एक नई ब्रेकथ्रू जेनरेशन सामने आए जो अपने आस-पास की दुनिया में बदलाव ला सके।

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