सीतापुर में जंगली जानवरों के हमले में कई मासूम मौत की गहरी नींद में सो गए। जिसके बाद गांव के कुत्तों को मारना शुरू कर दिया। जिसको लेकर एक सामाजिक संस्था के याचिका पर आज सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की। कोर्ट ने प्रदेश सरकार से मामले की विस्तृत रिपोर्ट मांगी थी, जिसमें ये आरोप लगाया गया था कि इन आदमखोर कुत्तों के काटने से कई मासूमों की मौत हो गई है।

रिपोर्ट में दावा हमला करने वाले कुत्ते नहीं

दायर याचिका में शीर्ष कोर्ट से अपील की गई कि वह यूपी सरकार को निर्देश दे कि गांव के अवारा कुत्तों को तक तक ना मारा जाए जब तक की इस बात की पुष्टि ना हो जाए। इसी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एक जून को सुनवाई की। इस दौरान इंडियन एनिमल प्रोटेक्शन ऑर्गेनाइजेशन फेडरेशन ने दावा किया कि भारतीय पशु चिकित्सा संस्थान की रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि कुत्तों ने बच्चों पर हमला नहीं किया है।
फेडरेशन ने कोर्ट से अपील की कि वह ये निर्देश दे कि कुत्तों को न मारा जाए। सबकी दलीलें सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने मामले की आगे की सुनवाई के लिए आठ जून की तिथि निर्धारित की है।

कुत्ते को मारने वाले को दिए जाते है 600 रूपये

याचिका के अनुसार, शुरुआती जांच में पाया गया है कि आवारा कुत्तों ने नहीं बल्कि जंगली जानवरों ने बच्चों पर हमला किया था। आशंका के आधार पर आवारा कुत्तों को अमानवीय तरीके से मारा जा रहा है। आरोप है कि जिला प्रशासन की ओर से कुत्तों को पकड़ने व मारने वाले व्यक्ति को 600 रुपये दिए जाते हैं। इस मामले पर वकील गार्गी श्रीवास्तव ने न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली अवकाशकालीन पीठ के समक्ष 28 मई को इस याचिका का उल्लेख करते हुए जल्द सुनवाई की गुहार लगाई थी।

सीतापुर में पिछले कई महीनों से हो रहे बच्चों पर हमले के कई और तथ्य सामने आये हैं, जिनसे ये कयास लगाया जाने लगा है कि ये आदमखोर कुत्ते नहीं बल्कि ये जंगली जानवर सियार या भेडिये (canis lupus) हैं, जो मासूमों को अपना शिकार बना रहे हैं.

 

भारतीय जीव जंतु कल्याण बोर्ड के सदस्य ने हमलावर जानवर को बताया भेड़िया:

सीतापुर में हो रहे हमले की जांच में कई टीमें अलग अलग जिलों से आईं जो पिछले कई महीनों से उन हमलों का विश्लेषण कर रही हैं. इसमें से भारतीय जीव जंतु कल्याण बोर्ड के भूतपूर्व को-ऑप्टेड सदस्य व मास्टर ट्रेनर विवेक शर्मा के मुताबिक, हमला करने वाले कोई कुत्ते नहीं है बल्कि भेड़िये प्रजाति के वन्य प्राणी है।

इसकी सूचना उन्होंने सभी संबंधित प्रशासनिक अधिकारियों को दी कि ये हमला कोई आम कुत्ता नहीं कर सकता बल्कि इन हमलों के पीछे वन्य प्राणी (भेड़िये प्रजाति) ही हैं, जो बच्चों को मार रहे है क्योंकि जिस पैटर्न से हमले हुए हैं, वह आम कुत्ते नहीं कर सकते हैं।

लेकिन उनकी बात को अन्य लोगों ने मानने से इन्कार कर दिया. बापू भवन के एक आला अफसर ने तो यहां तक कहा कि आप जाएं और जानवर मारकर सबूत लाकर दें।

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जिला प्रशासन ने एक प्रेस नोट जारी कर कुत्तों को ही सीतापुर में हो रहे हमलों का जिम्मेदार माना .

जिसके बाद एचएसआई इंडिया ने सीतापुर डीएम की प्रेस विज्ञप्ति का खंडन करते हुए इस बात को सिरे से खारिज किया और जिला अधिकारी से जवाब माँगा.

साथ ही सीतापुर में स्थानीय कुत्तों को मारने वाले लोगों को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई, जिसके जवाब में कोर्ट ने कहा कि जब तक यह साबित न हो कि बच्चों पर किसके द्वारा हमला किया जा रहा है, तब तक कुत्तों को ना मरा जाये. इस मामले की सुनवाई अदालत शुक्रवार को करेगी.

प्रशासन करता रहा गुमराह:

इसके पहले प्रशासन ने यह भी बोला कि सीतापुर खैराबाद में कुछ फार्म हॉउस हैं जहाँ पर लोग बड़े कुत्ते पाले हुये थे, शायद वो कुत्ते ही हमला कर रहे हैं.
अब प्रशासन के इस बेबुनियाद जवाब पर एक सवाल और साफ उठता है कि अगर प्रशासन के पास ऐसी सूचना थी कि ये हमला फार्म हॉउस में पाले गए बड़े कुत्ते कर रहे हैं तो उन फार्म हाउस के खिलाफ FIR करके सर्च ऑपरेशन क्यूँ नहीं किया गया?
उन कुत्तों को क्यों नही पकड़ा गया,  क्यों उनके स्वाभाव का अध्ययन नही किया गया कि वो आम कुत्ते हैं या आदमखोर जानवर की प्रवत्ति के थे.
IVRI की टीम को वहां जांच के लिए क्यों नही ले जाया गया?
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अलावलपुर में सियार ने किया हमला:

हाल ही में अलावलपुर के लालापुरवा में सियार के बच्चे को खेत में घेर कर मार डाला गया और एक दिन बाद ही सिकरारा गांव में अरविंद यादव पर सियारों के झुंड ने हमला कर दिया.

जिस पर गांव वालों ने उन सियारों के झुण्ड को दौड़ाया और बाद में एक सियार मारा गया. बाकी सारे भाग गए। सियार द्वारा घायल अरविंद यादव जिला अस्पताल में भर्ती हैं।

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पुष्टि होने के बाद भी प्रशासन उसकी मौजूदगी मानने को तैयार नहीं हैं. अभी भी निर्दोष कुत्ते पकड़ने व मारे जाने का कार्य बदस्तूर जारी है.

वर्तमान की समस्या से विमुख प्रशासन भविष्य के पशु जन्म नियंत्रण कार्यक्रम और ए बी सी सेन्टर बनाने में तत्पर हैं और अपने गुडवर्क का श्रेय ले रहा है।

इतिहास में भी भेड़िये बना चुके इंसान को शिकार:

पूर्व की घटनाओं में भी वर्ष 1878 में उत्तर प्रदेश में 624 लोग और 14 लोग बंगाल में भेड़िए के शिकार हुए।

1900 में 285 लोग मध्य भारत में मारे गए व वर्ष 1910 से 1915 के बीच 115 बच्चे हजारीबाग में और पुनः इसी क्षेत्र में  वर्ष 1980 से 1986 के बीच 122 बच्चे  भेड़िए द्वारा मारे गए।

मार्च 1996 से जुलाई 1996 में  सुल्तानपुर, जौनपुर और प्रतापगढ़ में 21 बच्चे मारे गए।

बिहार में भी कई सालों पहले ऐसी कई वारदातें देखने को मिलीं थीं,  उनमे से सभी में भेड़िए प्रजाति के जंगली जानवर ही थे जो ठीक इसी तरह से ही हमला करते थे,  जैसे कि सीतापुर में हमले हो रहे हैं.

वन्य जीव की जगह आम कुत्ते मारे जा रहे:

पुराने मामले का आंकड़ा निकालने पर लगभग 1200 बच्चे अभी तक मारे जा चुके हैं।

बलरामपुर में भी ऐसी वारदात सामने आई थी उसमें भेड़िये बच्चे पर अटैक कर उसे घर से उठा ले जाते थे।

यहां सीतापुर में भी समान तरीके से हमला हो रहा है. जानवर सीधे गले पर हमला कर रहे हैं।

जिन्हें लोग आदमखोर कुत्ते कह रहे हैं, वे वास्तव में वन्य जीव हैं और वन विभाग और प्रशासन के लोग इनकी जगह पर आम कुत्तों को मार रहे हैं।

गांववालो की माने तो लगभग 125 से ज्यादा कुत्ते बेरहमी से लाठी डंडों व गोलियों से मार दिए गए, इनका जिम्मेदार कौन है?  यह पशु क्रूरता निवारण अधिनियम का सरासर उल्लंघन है।

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प्रशासन की कार्यविधि पर सवाल:

सीतापुर में हो रहे हमले के चलते कुछ सवाल हैं जो सामने आते हैं,  जिनमे कुछ बाते साफ हैं,  जैसे-
1 – IVRI की टीम ने कहां से और किन जगह से सैम्पल लिए ?
2 – किनके ऊपर और कितने दिन किया गया अध्ययन ?
3 – कहाँ कहाँ पर Behaviour study की गई?
इस पर एक चौंकाने वाला बयान वन विभाग और प्रशासन द्वारा सामने आया. जिसमे उन्होंने कहा कि बूचड़खाने बंद होने की वजह से ही ये हमले हो रहे हैं और अब उन कुत्तों को मांस नहीं मिल रहा तो अब वो आदमखोर हो गए हैं. इसी का फायदा उठा के प्रशासन ने आम कुत्तों को ही आदमखोर हमला करने वाले जानवर बता दिया.
अब एक सवाल और उठता है इन हमलों को लेकर कि, अगर ये आदमखोर हुए थे तो इन्होंने बच्चों को खाया क्यों नही सिर्फ मारा ही क्यों? अगर ये आम कुत्ते आदमखोर थे तो इतने कुत्ते मारे जाने के बाद भी किसी भी कुत्ते का पोस्टमार्टम क्यों नहीं हुआ था?

किस बैंक में हैं भेड़िये का DNA?

एक सवाल यह भी उठता है कि क्या भारत की किसी भी DNA बैंक में किसी भेड़िया का DNA है या नही?  इसका जवाब प्रशासन और वन विभाग देने से बचता आ रहा है। जबकि IVRI के पास वुल्फ का DNA किसी भी बैंक में अमूमन नहीं है. जब DNA का सैम्पल ही नहीं हैं तो कैसे किसी आदमखोर जानवर से DNA मैच होता.

भेड़िया की प्रवृत्ति:

 कैनिस लुपस (Canis lupus) ये अपने परिवार का अकेला वुल्फ है, जिसमें हमले की बेहतरीन कला है, जो अपने शिकार को चुनता है और हमला करता है. ये 10  से 12 साल के बच्चो पर हमला करता है और उन्हें अपना शिकार बनाता है. अमूमन ये महिलाओं या बच्चों पर ही हमला करते हैं, उसके बाद बुजुर्गों और कमज़ोर लोगों पर हमला कर उन्हें अपना शिकार बनाते हैं.

कैनिस लुपस (Canis lupus)

ये भेड़िया एक कुत्ते के रूप का जंगली जानवर है. वैज्ञानिक नज़रिए से भेड़िया कैनिडाए (canidae) पशु परिवार का सबसे बड़े शरीर वाला सदस्य है.
किसी ज़माने में भेड़िये पूरे यूरेशिया, उत्तर अफ्रीका और उत्तर अमेरिका में पाए जाते थे लेकिन मनुष्यों की आबादी में बढ़ौतरी के साथ अब इनका क्ष्रेत्र पहले से बहुत कम हो गया है।
जब भेड़ियों और कुत्तों पर अनुवांशिकी अध्ययन किया गया तो पाया गया के कुत्तों की नस्ल भेड़ियों से ही निकली हुई है, यानि दसियों हज़ार वर्ष पहले प्राचीन मनुष्यों ने कुछ भेड़ियों को पालतू बना लिया था जिनसे कुत्तों के वंश की शुरुआत हुई. भेड़िये एक नर और एक मादा के परिवारों में रहते हैं जिसमें उनके बच्चे भी पलते हैं.
यह भी देखा गया है कि कभी-कभी भेड़ियों के किसी परिवार के नर-मादा किसी अन्य भेड़ियों के अनाथ बच्चों को भी शरण देकर उन्हें पालने लगते हैं.
भेड़ियों का शिकार करने का तरीक़ा सामाजिक होता है – यह अकेले शिकार नहीं करते, बल्कि गिरोह (झुण्ड) बनाकर हिरण-गाय जैसे चरने वाले जानवरों का शिकार करते हैं।
साथ ही बच्चों को घर से उठा ले जाने वाली कहानियां भी इन्ही भेडियों पर दर्शायी गई हैं जो कहीं कहीं सच साबित भी हुई हैं. भेड़िये अपने क्षेत्र में उच्चस्तरीय शिकारी होते हैं.
अमूमन ये गर्दन (जगुलर वेन) पर हमला करते है ताकि शिकार आवाज़ न कर सके. फिर उसे पीठ पर लाड के वहां से निकल जाते हैं.
इसके हमला करने का तरीका होता है कि पहले अल्फा मेल जो होता है वो गर्दन पर अटैक करता है और बाकी का झुंड शिकार के शरीर के कई अन्य जगहों पर हमला करना शुरू कर देते हैं

काम्बिंग के नाम पर शुरू हुआ एनकाउंटर:

खैराबाद में हो रहे हमले की जब ख़बरें तेजी से आने लगी थीं तो प्रशासन ने गाँव वालों में एक बात फैला दी थी की जो भी कुत्ते दिखे जो आक्रामक हो उन्हें देखते ही मार दिया जाए.
इसके बाद प्रशासन की टीम ने कॉम्बिंग के नाम पर कुत्तों का एनकाउंटर करना शुरू कर दिया.
पहले तो वो आम कुत्तों को गोली मारते थे उसके बाद अपनी फसी गर्दन बचने के लिए गांव वालों से उन मरे हुए कुत्तों पर लाठियां चलवाते थे और उसका वीडियो बना के ये बात फैलाते थे कि इन सभी कुत्तों को गॉंव वाले ही मार रहे हैं जबकि टीम सिर्फ आदमखोर कुत्तों को ही ढूंढ रही थी.

सीतापुर में कुत्ते खत्म:

फ़िलहाल सीतापुर के खैराबाद इलाके में 3 गाँव जो है वो लगभग कुत्ता विहीन हो गए हैं जिनमें से रहीमाबाद, गुरपालिया, टिकरिया सभी खैराबाद के अंतर्गत ही आते है।

वहां पर खतरा कम होने बजाए, बढ़ गया है क्योंकि गांव के प्राकृतिक पहरेदार ही नष्ट कर दिए गए है और शवो का निस्तारण भी सही ढंग से नहीं हो रहा है। जिससे वहां महामारी भी फैलने का अंदेशा है।

जिलाधिकारी ने जागरूकता अभियान चलाकर गांव के कुत्तों को गले में पट्टा पहनाने के लिए कहा तो किन्तु गोली द्वारा मारे गए ठकुर जितेंद्र सिंह के पालतू व पट्टा पहने कुत्ते की हत्या करने बाद भी पुलिस ने कोई कार्यवाही नहीं की न ही कोई रिपोर्ट दर्ज की गई।

सोशल मीडिया पर भी शुरू हुईं अफवाह:

सोशल मीडिया पर इन वीडियो को खूब वाइरल किया गया, कुत्तों को क्रूर दिखाया गया, जो सरासर गलत है। साथ ही कई सालों पुराने वीडियो को भी लोगों ने youtube से उठा कर सोशल मीडिया पर पोस्ट किया और उन्हें सीतापुर का नाम लगाकर कुत्तों के प्रति लोगों को बरगलाने का काम शुरू कर दिया.

नवम्बर 2017 से लगातार हो रहे हमले:

2017 नवम्बर से लेकर 23 मई 2018 तक सिर्फ दिसंबर और अप्रैल को छोड़ कर हर महीने में बच्चों के मरने की खबर सामने आई जिसमें मई महीने में बच्चों के मरने की संख्या ज्यादा थी.

नवम्बर से शुरू हुये हमले में नवम्बर 2017 में 2 बच्चों की इन आदमखोर हमले में जान गई, फिर दिसंबर में भी हमले हुये मगर किसी की मौत नहीं हुई.

फिर जनवरी में 1 फ़रवरी में 1 और मार्च में 2 बच्चों की जान गई. उसके बाद अप्रैल में भी छुटपुट हमले हुये लेकिन किसी की मौत नहीं हुई उसके बाद मई में कुल 8 मासूम बच्चों को इन आदमखोरों ने अपना निशाना बनाया.

कुल मिलाकर नवम्बर से लेकर 23 मई तक 14 मासूमों को इन जानवरों ने अपना शिकार बनाया. इनमें से मात्र सात बच्चों का ही पीएम जिला प्रशासन ने करवाया मई महीने में मारे गए थे.

इतना ही नहीं मुख्यमंत्री के दौरे के ठीक 1 दिन बाद ही 13 मई को आदमखोर कुत्तों ने खैराबाद के महेशपुर गांव के छन्गा की पुत्री रीना को अपना निवाला बनाया, फिर 14 मई को कुत्तों ने 6 बकरियों पर हमला बोला.

15 मई को शहर कोतवाली क्षेत्र के ग्राम बिहारी गंज निवासी याकूब की की पुत्री सहरीन को घायल कर दिया.

16 मई को शहर के टेडवा चिलौला गांव में तालगांव के उदयभानपुर निवासी विनीत व खैराबाद के बारा भारी निवासी पल्लवी को घायल कर दिया.

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17 मई को मानपुर में खैरमपुर निवासी छोटेलाल की पुत्री सोनम पर जानलेवा हमला कर दिया जिसके चलते एक दिन बाद ही सोनम की मौत हो गई.

19 मई को आदमखोरों ने खैराबाद के सुजावलपुर में शिवरानी, बन्नीशाहपुर के सुएब के पुत्र कैफ, शाहपुर के बबरापुर के सर्वेश, और रणजीत को घायल कर दिया.

इसके बाद 20 मई को तालगांव के रमपुरवा निवासी सुरेश के पुत्र सुनील, लहरपुर के शेख टोला निवासी छोटू, घनश्याम व उनके पिता लोकई पर आदमखोर जानवर ने हमला बोल दिया.

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प्रशासन के मुताबिक जानवर के पैरों के निशान WII ने लिए है, मगर वहां पर WII से कोई आया ही नहीं पग मार्क लेने. उसके बाद जब पशुपालन विभाग ने पग मार्क लिए तो जिला प्रशासन ने उन रिपोर्ट्स को नहीं माना और उन रिपोर्ट्स को नज़रंदाज़ कर दिया. साथ ही रिपोर्ट को बेबुनियाद बताया।

प्रशासन कर रहा गुमराह:

सीतापुर प्रशासन व वहां के डी.एफ.ओ लगातार कभी एच एस आई (HIS) व आई वी आर आई (IVRI) जैसी संस्थाओं रिपोर्ट को घुमा फिरा कर पेश करते रहे और भ्रामक प्रेस नोट देकर मीडिया को भी भर्मित करते रहे जिससे पूरे देश में मनुष्य के सबसे वाफादार पशु कुत्ते के प्रति आम जन मानस में कड़वाहट आ गई।

परिणाम स्वरुप विभिन्न जगहों से कुत्तों के मारे जाने व उनके साथ क्रूरता की खबरें आने लगी।

इसी कड़ी में सीतापुर की जिला अधिकारी शीतल वर्मा की एक प्रेस विज्ञप्ति जारी हुई हैं.

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इस के अनुसार, सीतापुर जिला अधिकारी ने कही भी कुत्तों को हमला करने वाला जानवर नहीं कहा.

उनके अनुसार इंडियन वैटनरी रिसर्च इंस्टिट्यूट ने सीतापुर के मरे हुए कुत्तों की जाँच की और इस जाँच से पाया गया कि ये मरे हुए कुत्ते पालतू थे.

प्रशासन कुत्ता कहता रहा मगर निकला भेड़िया जैसी नस्ल का जानवर

उन्होंने इंडियन वैटनरी रिसर्च इंस्टिट्यूट की लैबोट्री रिपोर्ट का परिणाम भी बताया, जिसके मुताबिक़ मृत जानवरों की प्रजातियों का जीनोमिक विश्लेष्ण करने से यह पता चला कि मृत कुत्तों की प्रजाति घेरेलु कुत्तों से मेल खाती हैं.

हालाँकि मीडिया में सीतापुर में हो रहे हमले को लेकर कुत्तों पर खबर आ रही हैं जिसके पीछे का कारण सीतापुर की डीएम का मौखिक संबोधन रहा.

कुत्तों की मौत का कारण गहरी चोट और रक्त स्राव:

कुत्तों की मौत का क्या कारण है, इस सवाल के जवाब में भारतीय पशु चिक्तिसा और अनुसन्धान केंद्र (IVRI) ने बताया कि कुत्तों को आंतरिक रक्तस्राव और अंग टूटने से हुए भयानक दर्द की वजह से मौत हुई.

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IVRI की टीम ने जब उसका पोस्टमार्टम किया तो उनके पेट से सिर्फ मुर्गी के पंजे और उनके पंख वगैरह ही मिले इंसानी मांस का कुछ भी नही मिला. ये पोस्टमार्टम ये इंगित करता है कि ये वो कुत्ते नही थे जो हमला करते थे ये वो आम कुत्ते थे जो गांव वालों के गुस्से का शिकार हुए.

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इसके अलावा जाँच रिपोर्ट में इस बात की भी पुष्टि नहीं हुई कि मरे हुए कुत्ते ही वे हत्यारें कुत्ते थे जिन्होंने बच्चों पर हमला किया.

इस लिहाज से आम कुत्ते जो मारे गये या अन्य, कैसे आदमखोर कुत्ते हो सकते है, जबकि डीएम कर्य्य्ली से इस बात की पुष्टि हुई ही नहीं कि किसी कुत्ते को मारा गया हैं.

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जंगली जानवरों का मासूमों पर हमला जारी: डीएम को गुमराह कर रही NGO की टीम

वहीं दूसरी ओर आदमखोर जानवरों के हमले कम नहीं हो रहे हैं. प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि हमला करने वालें जानवरों की संख्या उतनी ही हैं जितनी पहले थी.

इससे यह स्पष्ट है कि प्रशासन ने अभी तक इन आदमखोर जानवरों पर लगाम लगाने में असक्षम है. लेकिन क्षेत्र के कुत्ते जरुर बलि का बकरा बन गये.

सीतापुर में आम सड़क के कुत्तों की संख्या कम होती जा रही है. इससे यह भी स्पष्ट है कि अधिकारियों की कार्रवाई गलत दिशा में हैं.

सभी हमलों में घटनाओं के पैटर्न एक ही थे लेकिन किसी भी बच्चों की डेड बॉडी को अभी तक फोरेंसिक जाँच के लिए नही भेजा गया ताकि ये पता लगाया जा सके कि किस तरीके से हमला किया गया, कितनी गहराई से हमला किया गया और ये कौन हमला कर रहा.

शुरू के 6 मासूम बच्चे जो इन जानवरों के द्वारा मारे गए उनका पुलिस ने पोस्टमार्टम ही नही करवाया। जो बच्चे गांव में मरे उन्हें वहीं दाह संस्कार कर दिया गया और जो अस्पताल में दम तोड़े उनका पोस्टमार्टम करवा के उन्हें 2 लाख रुपये की आर्थिक सहायता प्रशासन द्वारा की गई.

लेकिन नवम्बर में मारे गए बच्चों के परिजनों से जब बात की गई तो उन्होंने कहा कि हमें सरकार की तरफ से कोई सहायता राशी नहीं दी गई जिसकी वजह जिला प्रशासन और उसके अधिकारी है.

उन्होंने बताया की प्रशासन ने उनसे कहा कि इसमें आपको कुछ मिलेगा नहीं तो बॉडी की खराबी न कराओ. लेकिन मई में जब योगी आदित्यनाथ ने खुद मामले का संज्ञान लिया तो उन्होंने मृतक बच्चों के परिजनों को 2 लाख रुपये और घायलों को 25 हज़ार रुपये की आर्थिक सहायता की राशि देने की घोषणा कर डाली.

जिसके बाद जिन बच्चो का पोस्टमार्टम नही हुआ जिन्हें पैसे नही मिले तब उन लोगों ने आर्थिक मदद न मिलने की वजह से NH 24 हाइवे जाम किया ताकि हरजाना मिल सके।

लोगों ने अपनी जेब भरने का भी काम शुरू कर दिया:

HSI और  जीवाश्रय का DPR (डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट) सीतापुर पहुँच चुका है ताकि ये प्रोजेक्ट के तहत नसबंदी के प्रोग्राम गाँव गाँव चलाएं और लोगों को जानवरों कुत्तों के प्रति जागरूक कर सकें.
ये प्रोग्राम चलाने के लिए लोग अपनी दुकान खोल कर बैठ गए हैं। 200 करोड़ सेंट्रल का बजट है WHO का एंटी रैबीज वैक्सिनेशन का था, जिसमें से 80 करोड़ रुपये अर्बन डेवलेपमेंट ने मांगा है जिसमें से कितना आता है ये देखना दिलचस्प होगा।
साथ ही लखनऊ से लेकर सभी जिलों के NGO भी अपनी जेब भरने और पेपर में छपने के चलन शुरू कर चुके हैं ताकि बहती गंगा में वो भी हांथ धो सकें.

IVRI की रिपोर्ट: घरेलु नस्ल के निकले सीतापुर में मारे गये कुत्ते

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