टायलट एक प्रेम कथा फिल्म जो कि गाँवों में खुले में शौच जाने वाली महिलाओं के दर्द को बयान करती है। गाँवों में आज भी शौचालयों का क्या स्थिति है उसे बताती है, वैसे तो यह एक फिल्म है पर बिल्कुल हकीकत को दर्शाती है। केन्द्र और राज्य के तमाम अधिकारियो ने ये फिल्म अपने स्टाफ से साथ देखी ताकि इससे कुछ सीख ली जा सके पर हकीकत ये है कि यही अधिकारी इस योजना का बेड़ा गर्क कर रहे हैं। और शौचालय की तमाम योजनाओं भ्रष्टाचार की शिकार हो रहीं हैं। आज भी कई ऐसे गाँव हैं। जहाँ कि महिलायें और लड़कियां सूर्य डूबने के बाद और सूर्योदय से पूर्व शौच के लिये गाँव से बाहर सड़कों के किनारे शौच करने को मजबूर हैं।

इतना ही नहीं आये दिन इस दौरान आने जाने वाले बोली बालने से भी परहेज नहीं करते। अगर इन सबके पीछे देखें तो इसके लिये ग्राम प्रधान और जिला प्रशासन के अधिकारी सीधे तौर पर जिम्मेदार हैं। ऐसा ही एक गाँव कासिमाबाद ब्लाक का महेशपुर कला गाँव है।  जहाँ लोहिया ग्राम योजना के अन्तर्गत करीब 500 शौचालय बनने के लिये स्वीकृत हुये थे और उनका बजट भी आ गया था। लेकिन विभागीय अधिकारी और ग्राम प्रधान की मिलीभगत से आज एक भी शौचालय लोगों के प्रयोग करने योग्य नहीं है।

लोहिया गांव में आज तक नहीं बन पाये शौचालय

पूरे प्रदेश के साथ ही जनपद गाजीपुर को खुले में शौच से मुक्त करने की सरकार की योजना है और इसके लिये तमाम गाँवों सहित पूरे जनपद में ओडीएफ के साथ ही कई अन्य योजनायें भी चल रहीं हैं, पर हकीकत में कुछ और ही देखने को मिल रहा है क्योंकि पूर्व सपा सरकार में चयनित लोहिया गाँवों में भी आजतक शौचालय पूरे नहीं बन पाये और जो बने वो भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गये और कई गाँवों में ऐसा एक भी शौचालय नहीं है जो प्रयोज्य हो।ऐसा ही एक गाँव कासिमाबाद ब्लाक का महेशपुर कला गाँव है।

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जहाँ का ग्राम प्रधान योगेन्द्र प्रजापति जो कि ग्राम पंचायत के चुनाव के पूर्व एक पेट्रोल पंप पर 3000 रूपये महीने पर वाहनों में तेल भरने का काम करता था पर चुनाव आया और प्रजापति जी की किस्मत चमकी और वो ग्राम प्रधान बन गये और फिर तत्कालीन महिला कल्याण मंत्री शादाब फातिमा के करीबियों में शुमार हो गये और अपने गाँव को लोहिया गाँव घोषित करा लिया और फिर प्रधान जी का खेल शुरू हुआ। लोहिया गाँव घोषित होने पर गाँव की गलियों को सीसी,खड़ंजा आदि कराने के नाम पर जहाँ लाखों रूपये का बजट लाया और उन कामों को आधा से अधिक कागजों में बनाकर अपनी मंत्री सहित विभागीय अधिकारियों से मिलीभगत कर सभी के संतृप्त कर दिया।

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इतना ही नहीं इस गाँव में प्रत्येक घर को स्वच्छता से जोड़ने के लिये करीब 500 शौचालय भी सरकार द्वारा स्वीकृत हुआ और बजट भी ग्राम निधि में आ गया।अब इन पैसों से इस गाँव में कितना शौचालय बना यह आप खुद देख सकते हैं।लोगों के घरों के सामने पड़ी ये टंकियां उन्हीं शौचालयों की हैं जो स्वच्छता मिशन के तहत आया था और इसके एवज में ग्राम प्रधान ने प्रत्येक से 1000-1000 रूपया भी लिया लेकिन ये टंकी तो लगी पर शौचालय का आज तक पता नहीं है।

मानक के अनुसार नहीं हो रहा कार्य

इसके बाद जब हम आगे बढ़े तो सैकडों की संख्या में शौचालय देखने को मिले पर उसकी हकीकत यह थी कि किसी शौचालय का छत नहीं तो कोई गिरा हुआ मिला।सबसे खास बात ये दिखी कि किसी भी शौचालय में उपयुक्त गड्ढा नहीं दिखा अर्थात किसी तरह से इस शौचालय का आप प्रयोग कर भी लेते हैं तो उसकी बदबू से आपका रहना मुश्किल हो जायेगा।

इतना ही नहीं अब गाँव वाले इन शौचालयों को अपनी बकरी और उपला रखने के काम में ले रहे हैं। जब इन शौचालयों के बारे में गाँव की महिलाओं और युवतियों से जानना चाहा तो उनका कहना था कि उनके घर शौचालय तो बना है लेकिन वो किसी काम का नहीं। ये लोग शाम ढलने के बाद गाँव के बाहर सड़क के किनारे जाती हैं।इस दौरान लोग उन्हें दूसरी दृष्टि से देखते हैं, और बोली भी बोलते हैं।वे सुनने के अलावा कुछ भी नहीं कर पातीं क्योंकि उनकी ये मजबूरी है।

इस महाघोटाले के बारे में जिला पंचायत राज अधिकारी से जब जानने का प्रयास किया तो उन्हें इसके बारे में कुछ भी जानकारी नहीं होने की बात कही। वही उन्होंने मीडिया की बातो का संज्ञान लेते हुए कहा की वे स्वयं इस गांव की जाँच करेंगे।

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