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राजनीतिक उथल-पुथल की दृष्टि से महत्वपूर्ण रहा वर्ष 2018

लखनऊ: राजनीतिक उथल-पुथल की दृष्टि से महत्वपूर्ण रहा वर्ष 2018

यूपी की राजनैतिक में सियासी घटनाओं के लिहाज से अगर देखा जाये तो वर्ष 2018  बेहद दिलचस्प व महत्वपूर्ण रहा। पहले माना जा रहा था कि देश में किसी एक विशेष दल का बहुमत दौर चल रहा हो। पर वर्ष 2018 के अंत यानि इन दिनों साल के आखिर तक आते-आते कई छोटी पार्टियां प्रासंगिक बनकर उभरीं। वही तिन राज्यों में नही बीजेपी को हराने में किसी भी पार्टी ने कोई कोर कसर नही छोड़ी।

कर गया वर्ष 2019 की राजनैतिक भूमिका को तैयार

यह साल राजनीतिक उथल-पुथल की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण रहा और आने वाले वर्ष की भूमिका तैयार कर गया। इस दौरान सबसे बड़े बदलाव विपक्षी राजनीति में आए। फूलपुर और गोरखपुर से शुरू हुई विपक्षी एकता की मुहिम ने इतना जोर पकड़ा कि साल का अंत होते-होते उसने एनडीए की घेराबंदी का ताना-बाना बुन लिया।

भाजपा को है अग़र हराना तो हो जाए सारा विपक्ष एक

साल के शुरू में फूलपुर और गोरखपुर लोकसभा सीटों पर उपचुनाव में सपा, बसपा और कांग्रेस ने मिलकर भाजपा से ये प्रतिष्ठित सीटें झटक लीं। विपक्ष के लिए तब दो सीटें अहम नहीं थीं, लेकिन इस जीत ने विपक्ष को भाजपा से लड़ने का फॉर्मूला दिया। यानी भाजपा को हराना है तो सारा विपक्ष एक हो जाए। एक-दूसरे के धुर विरोधी दल एक साथ खड़े हो गए। इस फॉर्मूले पर ही आम चुनावों के लिए गठबंधन की बिसात बिछने लगी।

शिवसेना ने अलग चुनाव लड़ने का लिया फैसला

एक तरफ जहां विपक्ष एकजुट हुआ वहीं एनडीए के दो अहम घटक टीडीपी और रालोसपा उसे छोड़कर चले गए। सबसे पुराने घटक शिवसेना ने अलग चुनाव लड़ने का फैसला कर लिया।

 

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