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सीएम साहब, मरणासन्न की हालत में है यूपी के तालाब

अमेठी: यह हमारे पूर्वजों की परंपरा है, इसी के मुताबिक कार्यक्रम करेंगे, किंतु यह क्या हम परंपराओं को जानते हुए भी नजर अंदाज कर रहे हैं। यही वजह है कि गर्मी के दिनों में दूसरों की प्यास बुझाने वाले तालाब आज खुद प्यासे हैं। जिन्हें देखने के बाद वे लोग भी आगे नहीं बढ़ रहे हैं जो समाज में बैठने के बाद यह भी कहने से भी कोई गुरेज नहीं करते कि फला तालाब हमारे बाबा दादा अथवा पूर्वजों ने खुदवाया था। लेकिन सवाल उठता है कि उड़ता है कि पूर्वजों द्वारा कराए गए इस नेक कार्य को और आगे ले जाने के लिए यह लोग प्रधान ग्रामीण अथवा सरकारी तंत्र की तन्द्रा क्यों भंग करना उचित नहीं समझ में हैं। यदि ये लोग भी तालाबों के संरक्षण के लिए आगे आ जाएं तो निश्चित ही मरणासन्न हाल में पहुंच रहे तालाबों को नया जीवन मिल जाएगा।

बिन पानी सब सून-

इसका सीधा लाभ प्यासे पशु पक्षियों के साथ हम सब को भी होगा। पहले के लोग जलाशय बनवाते थे। कुएं तालाब आदि की व्यवस्था करना अपना सौभाग्य समझते थे। यही नहीं राजा-रंक सभी गर्मी के दिनों में घरों बगीचों तक में पशु पक्षियों के लिए भी पानी की व्यवस्था करते थे। लेकिन अब ऐसा करने वाले अपवाद में ही है क्योंकि अपने पूर्वजों के इस प्रेरित करने वाले कार्यों का गुणगान करने वाले हम सब जलाशयों के पास जाना उचित नहीं समझते हैं। मौजूदा समय में जलाशयों की संख्या प्रति वर्ष बढ़ने की बजाय कम होती जा रही है, जबकि आबादी बढ़ती जा रही है। पेड़ों की कटाई और और बचे जलाशयों में अधिकांश पर अतिक्रमण के कारण हालात बद से बदतर होते जा रहे है।

फाइलों से बाहर से नहीं निकल सके आदेश-

पूर्वजों के दिनों में 12 महीनों लबालब भरे रहने वाले तालाब अब पशु-पक्षियों तक प्यास को नहीं बुझा पा रहें हैं, क्योंकि तालाब खुद प्यासे हो चुके हैं। बे पानी हो चुके इन तालाबों को लेकर प्रशासन भी गंभीर नहीं है। हां ये जरूर है कि स्थानीय स्तर से इसे लेकर सिर्फ निर्देश बाजी तक ही गंभीरता दिखाई जा रही है जो इस बार कुछ ज्यादा ही दिख रही है। ऐसा इसलिए कहा जाता है कि गत वित्तीय वर्ष में तालाबों को पानी से लबालब करने के लिए जोर दिया गया। सिंचाई और ग्राम पंचायत से कार्य करवाए गए मनरेगा के तहत इस के लिए बजट भी खर्च किया। नहर नलकूप आदि से लेकर तलाबों तक पक्की नालियां बनवाई गई, ताकि छोटे बड़े सभी तलाबों में पानी भरवा जा सके। योजनाओं के तहत धन खर्च किए जाने के बाद ऐसा लगा कि इसका लाभ आगे भी गर्मी में मिलेगा और पशुपक्षियों तक को राहत मिल जाएगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ है कई स्थानो पर विद्युत अथवा यांत्रिकी के कारण नलकूप सूखे पड़े हैं, जबकि अधिकाँश छोटी बड़ी नहरे सूख गई है। जिसके कारण इन तालाबो तक पानी नहीं पहुंचाया जा सका है ।

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