आज हम आपको एक ऐसे शक्स की कहानी बताने जा रहे है। जिसकों सुनकर आप के भी जेहन में कई तरह क सवाल खड़े होंगे।  दस साल पहले जान की परवाह न करते हुए जिले का एक युवक यमुना नदी में कुद कर दो बच्चों की जान बचायी। इसकी बहादुरी को देश के राष्ट्रपति ने गणतंत्र दिवस पर वीरता पुरस्कार दिया। आज वही युवा इलाके में जूता बनाने को मजबूर है। पुरस्कार देने के बाद शहशाह से जिले के आलाअधिकारी तमाम वादे किये लेकिन सब हवाहवाई हो गये। लेकिन अब सत्ता में केंद्र और राज्य में बीजेपी की सरकार आय़ी तो युवा के चेहरे पर रौनक आ रही है। युवा अपनी पढ़ाई शुरु करने और एक घर के लिए मांग कर रहा है।

2007 में मिला था वीरता पुरस्कार

आगरा शहर के यमुना ब्रिज की दलित बस्ती मोतीमहल मे रेलवे ब्रिज के नीचे

एक छोटी झोपड़ी मे राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार प्राप्त करने वाला शहंशाह अपने परिवार के साथ रहता है।

दो सितंबर 2007 मे शहंशाह अपनी वीरता की वजह से सुर्खियो मे आया था।

महज 11 साल की उम्र मे उसने यमुना मे डूबते हुए दो बच्चों को अपनी जान पर खेलकर बचाया था।

उसकी इस वीरता के लिए वर्ष 2009 मे गणतंत्र दिवस पर तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा

पाटिल ने उसे वीरता पुरस्कार से सम्मानित किया था।

2013 के बाद बंद हो गया है सरकारी मदद मिलना

इतना ही नही यूपीए चेयरमैन सोनिया गांधी, तत्कालीन रक्षामंत्री एके एंटनी, दिल्ली की

तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित समेत कई हस्तियो ने उसकी पीठ थपथपाई थी।

पुरस्कार मिलने के कुछ महीने बाद सरकारी खर्च पर उसकी पढ़ाई का इंतजाम तो हो

गया और 2013 मे इंटर भी पास कर लिया। इसके बाद उनको सरकारी मदद मिलना बंद हो गई।

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शहंशाह ने आगे पढ़ने के लिए लखनऊ से लेकर दिल्ली तक भागदौड़ की,

तो उससे कागजी कार्रवाई पूरी करा ली गई। वर्ष 2014 मे अधिकारियो ने

नई सरकार बनने की बात कहकर पल्ला झाड़ लिया। पढ़ लिखकर कुछ बनने

का सपना संजोए शहंशाह को घर के खराब हालातो के कारण मजबूरन जूते की फैक्ट्री मे काम करना पड़ा।

शहंशाह की मौसी बेबी को बेटे द्वारा किए गए कार्य पर बहुत नाज है

लेकिन सरकारों की बेरुखी के चलते शहंशाह मजदूरी कर रहा है

12वीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद पढ़ाई के लिए ना पैसा मिला और न ही रहने के लिए कोई मकान….

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जिलाअधिकारी ने मकान देने का किया था वादा

जिस समय शहंशाह को वीरता पुरस्कार मिला था

उस समय आगरा के डीएम ने मकान देने का वायदा किया था.

इसके लिए उन्होने 2010 मे साढे़ सात हजार रुपये कर्ज लेकर नगर निगम मे ड्राफ्ट जमा किया।

अब तक वो 24 हजार रुपये जमा कर चुके है, लेकिन मकान नही मिला।

शहंशाह सरकारी दफ्तरों के अबतक सैकड़ों चक्कर काट चुका है,

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लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो सकी और मिला तो दिलासे के नाम पर धोखा

जिसके चलते शहंशाह आज जूते का काम करने वाला मजदूर बन गया है

और पूरे महीने काम करके शहंशाह दो से तीन हजार रूपये ही कमा पाता है

जिससे परिवार का ठीक से भरण-पोषण भी नहीं होता है…..

 

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