यूंं तो भारत में बच्‍चों को पढ़ाने और उन्‍हे आगे बढ़ाने की बाते सभी सरकारे अपने विज्ञापनों में करती हुई दिखाई देती है लेकिन क्‍या सच में सरकारी स्‍कूलों में पढ़ने वाले बच्‍चों को ऐसी शिक्षा मिल पाती है जिसकी बदौलत वो अपने सपनों का सच बनाने के काबिल बन सकते है।

अगर उत्‍तर प्रदेश के परिषदीय यानी सरकारी प्राइमरी स्‍कूलों की बात करे तो यहां कई स्‍कूलों की पढ़ाई भगवान भरोसे है। इन स्‍कूलों में जिन अध्‍याप‍कों को ऊपर बच्‍चों को पढ़ाने की जिम्‍मदारी है उनके ऊपर इतने सरकारी काम थोप दिये जाते है जिसकी वजह से इन अध्‍यापको का अधिकतर समय इन्‍ही कामों को पूरा करने में निकल जाता है। प्राइमरी स्‍कूलों के इन अध्‍यापको से आजकल मतदाता सूची के पुनर्रीक्षण करने का काम लिया जा रहा है। इसके अलावा इन शिक्षको को आजकल मतगणना, बाल गणना से लेकर समाजवादी पेंशन की फंडिग के साथ पोषण मिशन तक के काम में लगा दिया गया है।

असल में बात ये है कि यूपी में विधान सभा और नगर निकाय चुनाव होने हैं और ऐसे में सरकार के सामने मतदाता सूची की जांच करने और ठीक कर लेने की चुनौती है। इसको लेकर वर्तमान समय में पूरे उत्तर प्रदेश में जोर-शोर से मतदाता पुनर्रीक्षण का काम चल रहा है और इस काम में सभी जिलों में अध्यापकों को भी लगा दिया गया है। ऐसी हालत में अध्यापकों का एक बड़ा हिस्सा वोटर लिस्ट के पुनर्रीक्षण के काम में लग गया है। जाहिर सी बात है की इसके चलते बच्चो की पढ़ाई बाधित होगी। हरेक स्कूल का आलम है कि‍ वहां पर नाम मात्र के अध्यापक बचे हैं जो बच्चों को किसी तरह से पढ़ाने का कोरम पूरा कर रहे हैं।

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