गोरखपुर स्थित बाबा राघव दास (बीआरडी) मेडिकल कॉलेज (purvanchal ke gandhi) में हुईं बीमार बच्चों की मौतों ने सभी को दहला दिया। मगर क्या जानते हैं कि आखिर यह बाबा राघव दस आखिर थे कौन? आपको जानकर आश्चर्य होगा कि जिनके नाम पर उस मेडिकल कॉलेज का नाम रखा गया है। उन्हें पूर्वांचल का गांधी कहा जाता था।

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आइये जानते हैं बाबा राघव दास के जीवन के कुछ रोचक तथ्य…

  • महाराष्ट्र के पुणे में 12 दिसंबर, 1896 को जन्मे बाबा राघवदास जीवन भर समाज के दबे-कुचले और असहाय लोगों की मदद करते रहे।
  • पुणे के मशहूर कारोबारी शेशप्पा ने बेटे राघवदास को हर सुख-सुविधा दी लेकिन जीवन की एक घटना से उनका झुकाव समाज सेवा की ओर हो गया।

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  • समय के साथ ही उनका जीवन लोगों की सेवा में इतना रम गया कि वे सदैव ही दिन-हीन लोगों की मदद करने के लिए तत्पर रहने लगे।
  • उनकी लगन को देखते हुए उस समय में बड़ी संख्या में लोग बाबा राघव दास के सेवाकार्य में जुटने लगे।
  • धीरे-धीरे उनकी ख्याति बढ़ने लगी।
  • राघवदास युवा अवस्था की दहलीज पर पहुंचे थे कि प्लेग जैसी महामारी की चपेट में आकर पूरा परिवार काल के गाल में समा गया।

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  • इस हृदय विदारक घटना ने उनको भीतर तक झकझोर दिया।
  • साल 1913 में महज 17 साल की आयु में राघवदास गुरु की तलाश में उत्तर प्रदेश आ गए।
  • यहां प्रयाग, काशी आदि तीर्थों डीके भ्रमण करते रहे।
  • एक समय के बाद वे विचरण करते हुए गाजीपुर पहुंचे, यहां उनकी भेंट मौनीबाबा नामक एक संत से हुई।

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  • मौनीबाबा ने (purvanchal ke gandhi) राघवजी को हिन्दी सिखाई।
  • गाजीपुर में कुछ समय बिताने के बाद राघवदास देवरिया के बरहज पहुंचे और वहां संत योगीराज अनन्त महाप्रभु के शिष्य बन गए।
  • साल 1921 में महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित होकर बाबा राघवदास स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गए।
  • वे जनसभाएं कर लोगों को जागरूक करने के अलावा समाज में जनहित के कार्य में जुटे रहे।
  • वे दलित और गंदी बस्ती में जाते और लोगों को स्वच्छता के प्रति प्रेरित करते।

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  • इस बीच वे बीमार लोगों का उपचार करवाते, उनकी सेवा करते।
  • उनके तीमारदारों को स्वस्थ रहने के लिए जागरूक किया करते।
  • आजाद भारत में बाबा राघवदास एक बार विधायक भी बने।
  • साल 1958 में इस (purvanchal ke gandhi) महापुरुष का देहांत हो गया।
  • बाबा राघवदास ने जीवन भर दीन-हीन लोगों की मदद करते रहे।
  • इसीलिए उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि देने के लिए गोरखपुर में उन्हीं के नाम पर सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल बनाया गया।
  • इतना ही (purvanchal ke gandhi) नहीं भारतीय डाक विभाग ने उनके नाम से एक डाक टिकट भी जारी किया।

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