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अयोध्या विवाद में दो बार आ चुका राम मंदिर के पक्ष में कोर्ट का फैसला

फैजाबाद जिले के अयोध्या का नाम आते ही भगवान राम का नाम आना स्वाभाविक सा है. आखिर वो हिंदुओं के इष्ट भगवान राम चंद्र की जन्मभूमि हैं. ये बात जग जाहिर है, बावजूद इसके आज भी लोग इसे साबित करने में लगे हैं और यही दो समुदायों में संघर्ष का स्वरूप बन गया है.

हिंदू और मुस्लिम समुदाय में सालों से संघर्ष:

अयोध्या में जिस भूमि को हिंदू अपनी आस्था से जोड़ते हैं, उसी भूमि को लेकर मुस्लिम समाज की अपनी भी अलग आस्था है. उनके लिए वो भूमि उनके प्रार्थना करने का स्थान यानी मस्जिद है.

इस कारण दोनों समुदाय एक भूमि के टुकडें के लिए सालों से कानूनी प्रक्रिया के जरिये अपने अपने विश्वास और आस्था को सिद्ध करने में लगे हैं.

हिंदुओं की मान्यता है कि श्री राम का जन्म अयोध्या में हुआ था और उनके जन्मस्थान पर एक भव्य मन्दिर विराजमान था जिसे मुगल आक्रमण कारी बाबर ने तोड़कर वहाँ एक मसजिद बना दी।

[penci_blockquote style=”style-1″ align=”none” author=””]पहली बार 1853 में हुआ विवाद[/penci_blockquote]

1986 में हिंदुओं के पक्ष में पहला फैसला:

इसके बाद साल 1986 में आया एक एतिहासिक फैसला. जिला न्यायाधीश के एम पाण्डेय ने इस केस की सुनावाई के बाद विवादित स्थल को हिंदुओं की पूजा के लिए खोलने का आदेश दिया।

[penci_blockquote style=”style-3″ align=”none” author=”” font_weight=”bold” font_style=”italic”]जैसा की UttarPradesh.Org की टीम ने तात्कालिक जस्टिस के एम पाण्डेय के बेटे का Exclusive साक्षात्कार लेकर उस सुनवाई के दौरान की कई अहम बाते और दिलचस्प किस्सों से अपने पाठकों को पहले ही अवगत करवा दिया हैं.[/penci_blockquote]

अब हम बताते हैं कि इस फैसले का जो असर हुआ वो अयोध्या विवाद में हमेशा के लिये काला अध्याय और न मिट पाने वाला इतिहास बन गया.

जस्टिस पांडेय ने दिया था राम मंदिर खुलवाने का फैसला, सुनवाई में हुआ था कुछ खास

बाबरी मस्जिद विध्वस्त

हिंदुओं के पक्ष में दूसरा फैसला:

[penci_blockquote style=”style-1″ align=”none” author=””]2010 में न्यायालय का ऐतिहासिक फैसला[/penci_blockquote]

विवादित भूमि को राम जन्म स्थली साबित करते हैं हाईकोर्ट के ये तर्क..!!!

2010 के हाई कोर्ट का ये फैसला भले ही दोनों समुदायों की आस्था को एक साथ लेकर चलने वाला हो लेकिन हिंदू और मुस्लिम दोनों ही पक्षों ने इस निर्णय को मानने से इनकार कर दिया और इसके विपरीत सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।

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