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रियल हीरो है दिव्यांग और हौसले हैं बुलंद

रियल हीरो है दिव्यांग पर हौसले हैं बुलन्द

रियल हीरो है दिव्यांग पर हौसले हैं बुलन्द

प्रधानमंत्री मोदी ने भले ही विकलांगजन के लिये एक नया शब्द दिव्यांगजन का नाम दिया हो पर अभी भी दिव्यांग समाज से अपने को कटा हुआ तो पाते हैं, बहुत सी ऐसी सरकारी सुविधायें जो कि दिव्यांगों के लिये चलायी जाती हैं वो भी उन तक नहीं पहुँच पाती हैं. इसकी वजह सरकार की दिव्यांगजनों के प्रति उपेक्षा भी कहीं न कहीं जिम्मेदार है.

दिव्यांग कल्याण अधिकारी की नियुक्ति नहीं हैं

उदाहरण के तौर पर जनपद गाजीपुर को लिया जा सकता है जहाँ दिव्यांग कल्याण अधिकारी की नियुक्ति नहीं है, और इस विभाग का कार्य पिछड़ा वर्ग अधिकारी देखते हैं. ये स्थिति तब है जब दिव्यांग विभाग के मंत्री ओमप्रकाश राजभर गाजीपुर से ही हैं. पर समाज में कुछ ऐसे लोग भी हैं जो दिव्यांगजनों की मदद की हर संभव कोशिश करते हैं और उनको उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करते रहते हैं. जनपद गाजीपुर के करन यादव जो कि खुद एक दिव्यांग हैं वो दिव्यांगों की मदद को लिये दिन रात तैयार रहते हैं और उनके साथ अधिक से अधिक समय व्यतीत करते हैं और उनको उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने में लगे रहते हैं.

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करन यादव जो कि खुद एक दिव्यांग हैं

हम बात कर रहे हैं जनपद गाजीपुर के करन यादव की जो कि खुद एक दिव्यांग हैं और इनका एक पैर पोलियोग्रस्त है. करन खुद एक दिव्यांग हैं और दिव्यांगों के दर्द को अच्छी तरह से समझते हैं और उनकी समस्याओं से वाकिफ हैं. करन दिव्यांगजनों की मदद के लिये हमेशा आगे रहते हैं और गाँव-गाँव जाकर दिव्यांगों और उनके परिवार वालों को दिव्यांगों को सरकार और अन्य स्वयंसेवी संस्थाओं से मिलने वाली मदद की जानकारी देते हैँ. साथ ही जहाँ भी दिव्यांगों का स्कूल चलते हैं वहां जाकर उनको किताब, कॉपी और अन्य आवश्यकता की चीजें भी बांटते हैं.

विदेश में नही लगा मन

आज भी करन दिव्यांग बच्चों के एक ऐसे ही स्कूल में पहुँचे थे और उन्होंने दिव्यांग बच्चों में कॉपी,पेन और टॉफिया बांटीं. यही नहीं वो दिव्यांगों को पढ़ाते भी हैं. एक और आश्चर्यजनकचीज जो करन की महत्वाकांक्षा को दर्शाती है. करन छात्र-छत्राओं को योगा की ट्रेनिंग भी देते हैं और उनका दावा है कि योगा में कोई उनको चैलेंज नहीं कर सकता. करन बताते हैं कि पहले वो लंदन में जॉब में थे पर वहाँ की नौकरी उनको रास नहीं आयी और कहीं न कहीं दिव्यांजनों के लिये कुछ करने की उनकी इच्छा ने उनको स्वदेश आने के लिये विवश किया.

करन हजारों दिव्यांगों का सहारा बन चुके हैं

यहाँ आकर उन्होंने पहले तो अपने आपको इस काबिल बनाया कि वो दिव्यांगजनों  के लिये कुछ कर सकें. उन्होंने आरटीआई में नौकरी ज्वाइन की. इसके बाद दिव्यांगजनों के लिये कुछ करने की उनकी इच्छा ने अमली जाम पहनाना शुरू किया और करन दिव्यांगों की मदद में जुट गये. जैसे ही करन को किसी ऐसे दिव्यांग का पता चलता है जिसे सुविधाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा हो वो वहाँ पहुँचते हैं और पहले तो उसे उसके बारे में बताते हैं और फिर स्वयं उसे सम्बंधित विभाग तक ले जाते हैं और उसे योजनाओं का लाभ दिलाने में उसकी मदद करते हैं. करन हजारों दिव्यांगों का सहारा बन चुके हैं और यदि कहा जाय कि ऐसे ही लोग समाज के रियल हीरो हैं तो हैरानी नहीं होगी.

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