देश के प्रधानमंत्री लालकिले के प्राचीर से पूरे देश में बिजली पहुँचाने का वादा करते हैं. उर्जा मंत्री पियूष गोयल देश के कोने-कोने में बिजली पहुँचाने के दावे करते हैं. इसके अलावा यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने पांच साल तक 24 घंटे बिजली देने की बात लगभग सभी चुनावी सभाओं में की थी. अखिलेश यादव ‘काम बोलता है’ के नारे लगाते रहे लेकिन राजधानी से महज 50 किलो मीटर दूर जाकर ही इस काम ने दम तोड़ दिया. जी हाँ, मोहनलाल गंज इलाके में एक ऐसा गाँव है जहाँ लोग रात में मिट्टी तेल के लैंप के सहारे अपनी जिंदगी के अँधेरे को दूर करने की कोशिश 10 सालों से कर रहे हैं.

कभी था अम्बेडकर गाँव, आज बिजली की जोह रहा बाट:

बिजली विभाग के अफसर अपने वातानुकूलित कमरों में बैठकर पूरे देश को सब्जबाग दिखाते हैं. पर इन रंगीन सपनों की वास्तविकता जाननी है तो आपको उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से महज 25 किलोमीटर दूर स्थित अंबेडकर गांव डोभिया गांव जाना होगा. जहां आजादी के 69 साल बाद भी बिजली नहीं आई. इस इलाके में 14 साल पहले विद्युतीकरण तब हुआ था जब मायावती सरकार सत्ता में आई और इस गाँव को अम्बेडकर गाँव का दर्जा भी दिया गया था लेकिन उसी शासनकाल में बिजली का सपना दिखाकर फिर उसे छीन लिया गया और उसके बाद से आजतक ये गाँव बिजली के लिए तरस रहा है. इस गांव के लोग अब बिजली की आस छोड़ तार पर कपड़े सुखाने लगे हैं.

इस अंबेडकर गांव में बच्चे आज भी लैंप के रोशनी में पढ़ते हैं और गर्मी से बचाव के लिए हाथ पंखा ही इनके लिए सबसे आधुनिक उपकरण है. टीवी, रेफ्रिजरेटर और अन्य संसाधनों की तो बात करना ही बेमानी है.

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सरकारी तंत्रों की अनदेखी का शिकार डोभिया गाँव:

Uttarpradesh.org की टीम जब इस गांव में पहुंची तो गलियों में सन्नाटा बिखरा हुआ था। एक मकान के सामने पेड़ के नीचे कुछ महिलाएं हाथ का पंखा लेकर गर्मी से बचाव की असफल कोशिश कर रहीं थीं। पूरे गांव को कमोबेश वैसा ही हाल था, जिनके हाथ में पंखा नहीं था वे गमछे से ही काम चला रहे थे। सड़कें बेहाल और गाँव में पसरा सन्नाटा ये बता रहा था कि आज की आधुनिकता इस गाँव के लिए दिवास्वप्न से ज्यादा कुछ नहीं है.

बेरोजगारी और अशिक्षा भी गाँव की बदहाली का कारण:

जब उनसे गांव में बिजली न होने की बात शुरू की गई तो उन्होंने Uttarpradesh.org की टीम को घेर लिया। सभी का एक ही सवाल था, हमारे गांव में बिजली कब आएगी? लखनऊ के मोहनलालगंज कस्बे से महज कुछ ही दूर स्थित इस गावं में बिजली नहीं होने के कारण लोग पलायन को मजबूर हैं। करीब 400 की आबादी वाले इस गाँव के अधिकांश लोगों का मजूदरी करने का काम करते हैं, गाँव में अशिक्षा भी एक चिंता जनक विषय और इस अशिक्षा के कारण पैदा हुई बेरोजगारी ने युवाओं की कमर तोड़ने का काम किया है. गाँव की गन्दी नालियां ये बताने के लिए काफी हैं कि स्वच्छ भारत अभियान को इनतक आने में लम्बा सफ़र तय करना होगा.

मायावती शासन में पहली बार गाँव में एक दिन जले थे बिजली के बल्ब:

जब इस गाँव के लोगों से बात की गई तब उनका कहना था कि, ‘मायावती के शासन में बिजली के खम्भे और तार पहली बार गाँव में लगाये गए और दो दिन बिजली भी आई लेकिन उसके बाद बिजली विभाग वाले ही तार लेकर चले गए और बचे-खुचे तार चोरी हो गए.

गाँव के लोगों का कहना है कि वर्तमान भाजपा सांसद कौशल किशोर के यहाँ गाँव के लोग बिजली की समस्या लेकर कई बार गए लेकिन कुछ फायदा नहीं हुआ. वहीँ पूर्व MLA चन्द्र के यहाँ जाने के बाद भी इस समस्या की सुध नहीं ली गई. बिजली विभाग के अधिकारी किसी की बात सुनने को तैयार नहीं है.

योगी सरकार से लगाये बैठे हैं बिजली आने की उम्मीद:

डोभिया गाँव के लोगों के कुछ लोगों ने बताया कि अब सत्ता बदली है तो उन्हें भी अपने गाँव की बदहाली दूर होने की उम्मीद जगी है. इसी गाँव के एक नागरिक ने बताया कि अब नई सरकार से उम्मीद करते हैं कि वो हमारी समस्याएं सुनेंगे और बिजली उपलब्ध कराएँगे.

इस गाँव की महिलाओं ने भी बिजली ना होने का दर्द बयां किया और कहा कि घर के आस-पास खेत होने के कारण सांप-बिच्छु को लेकर डर बना रहता है और रात के वक्त छोटे-छोटे बच्चों को लेकर विशेष चिंता रहती है. मिट्टी के तेल के लैंप घर के हर कोने में रखना मुश्किल है. मिट्टी के तेल ख़त्म हो जाने के बाद मोमबत्ती के सहारे की काम चलता है. होली के एक दिन पहले in गाँव की गलियों में सोलर पैनल लगाये गए हैं लेकिन बिजली की बात पर अभी भी पूरा सरकारी अमला ख़ामोशी पाले बैठा है.

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