लोकतंत्र में चुने हुए नेता खुद को सर्वेसर्वा मान बैठते हैं. लेकिन इसी बीच वो भूल जाते हैं कि वो कोई विधायक या सांसद भी अगर बनते हैं तो जनता के द्वारा बनते हैं. जनता और नेता के बीच संपर्क स्थापित करने का काम पार्टी का कार्यकर्ता करता है. लेकिन ये अक्सर देखा जाता है कि पार्टी के कर्मठ और निष्ठावान कार्यकर्ता को पार्टी के नेताओं द्वारा ही जलील किया जाता है. ऐसे में कार्यकर्ता खुद को ठगा हुआ महसूस करते हैं. जिस पार्टी और जिस नेता के लिए वो दिन रात एक करते काम करते हैं, वही नेता उन्हें जलील करने में कोई कसर नही छोड़ते हैं.

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लेकिन इसी बीच बागपत में ऐसा मामला सामने आया जब गाली दिए जाने के विरोध में कार्यकर्ता ने विधायक को सरेआम पीट दिया.

  • मामला ये है कि रालोद के एक विधायक ने पार्टी मीटिंग के दौरान एक कार्यकर्ता को गाली दे दी.
  • विधायक वीरपाल राठी के इस बर्ताव से कार्यकर्ता गुस्से में लाल हो गया.
  • मीटिंग के दौरान ही उसने विधायक पर लात-घूसे बरसा दिए.
  • वहां मौजूद लोगों ने बीच-बचाव करने की कोशिश की और दोनों लोगों को अलग किया.
  • लेकिन ‘अब पछताए क्या होत जब चिड़िया चुग गई खेत’

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इस घटना के बाद एक बात स्पष्ट होती दिख रही है कि नेताओं को अपने व्यव्हार में बदलाव लाना होगा. उन्हें पार्टी के कार्यकर्ताओं की कदर करना सीखना होगा. पार्टी के लिए एक कार्यकर्ता और विधायक दोनों एक सदस्य होते हैं. ये समानता का भाव पार्टी में बना रहे ताकि कार्यकर्ता खुद को ठगा हुआ ना महसूस करें. कोई भी संवैधानिक पद ये इजाजत नही देता कि पार्टी के कार्यकर्ताओं के साथ बुरा व्यवहार किया जाए. पार्टी हित के लिए विधायक और कार्यकर्ता के बीच संवाद बेहतर बना रहे, तभी कार्यकर्ता अपने नेता के लिए निष्ठा के साथ काम करता रहेगा.

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