यूपी के शक्तिशाली राजनीतिक घराने में महाभारत शुरू हो चुकी है। वर्चस्व की इस जंग में कोई हार नही मानना चाहता है। कोई भी अपने वार को जाया होते देखना नही चाहता है। ये सियासत की जंग अब आमने-सामने की जंग में तब्दील हो चुकी है।

अखिलेश ने दिखाई अपनी ताकत:

बकरीद के मौके पर मंत्रियों और मुख्य सचिव की कुर्बानी से शुरू हुआ ये सिलसिला थमता नजर नही आ रहा है। एक तरफ जहाँ मुलायम सिंह यादव के फरमान के बाद शिवपाल को प्रदेश अध्यक्ष की कमान दे दी गयी वहीं इसका जवाब मुलायम-पुत्र और मुख्यमंत्री अखिलेश ने अपने ही अंदाज में दिया। मुख्य सचिव को बाहर का रास्ता दिखाने वाले अखिलेश ने अपने चाचा को भी नही बख्शा। शिवपाल के पास पीडब्लयूडी, सिंचाई और सहकारिता समेत 9 मन्त्रालय थे। लेकिन अखिलेश ने 7 मंत्रालयों को वापस लेकर अपना इरादा जाहिर कर दिया।

शतरंज की इस बाजी में में प्यादों से नहीं अब वजीर का मुकाबला वजीर से सीधे हो चला है। समाजवाद अब विचारों से निकलकर सडकों पर वर्चस्व की जंग लग रहा है।

शिवपाल अब कैबिनेट में शक्ति विहीन होने के बाद इस्तीफे का मन बना चुके हैं। इसकी सूचना वो मुलायम को भी दे चुके हैं। गौरतलब है कि अखिलेश को प्रदेश अध्यक्ष की कमान देने के बाद शिवपाल नाराज थे। तब उन्हें प्रभारी बनाकर संतुलन कायम करने की कोशिश की गयी थी। लेकिन अब अखिलेश ने भी चाचा की शक्तियां दोगुनी होने पर संतुलन बनाये रखने के लिए अपने पिताजी का फार्मूला चाचा के खिलाफ ही इस्तेमाल कर दिया।

परिवार में आखिर क्यों पड़ी दरार:

लेकिन इस महाभारत की नींव कैसे पड़ी? ये रातों-रात तो नहीं हुआ कि मुलायम परिवार का हर स्तम्भ अपनी ताकत का एहसास कराने की कोशिश करने लगा। 5 ऐसे बड़े मौके आये जब मुलायम परिवार के सदस्यों में अनबन सार्वजनिक हुई।

अमर सिंह की वापसी: 

अमर सिंह के पार्टी में वापस आने के बाद मुलायम परिवार सहित समाजवादी पार्टी में भी इस कदम का विरोध हुआ था। लेकिन इस मामले में सपा सुप्रीमो के सामने आने की हिम्मत केवल आजम खान ही जुटा सके थे, जो कि उनके परिवार के सदस्य नही हैं।

बलराम यादव की बर्खास्तगी: 

बलराम यादव को बर्खास्त किये जाने के बाद अखिलेश और मुलायम आमने-सामने आये और अंत में पिता की बात मानने के लिए अखिलेश को अपना आदेश वापस लेने के लिए मजबूर होना पड़ा।

मुख़्तार की पार्टी से विलय पर घमासान : 

सपा और कौमी एकता दल के विलय को लेकर शिवपाल और अखिलेश की तकरार सामने आयी। बाहुबली मुख़्तार अंसारी की पार्टी के विलय की खबरों ने अखिलेश को बेचैन कर दिया। जबकि इस विलय को लेकर पहल शिवपाल ने ही शुरू की थी। अखिलेश ने इसी विलय की पहल में भूमिका निभाने के लिए बलराम को बाहर किया था। अब अखिलेश के जिद की बारी थी। पार्टी की बैठक में अखिलेश ने दो टूक कह दिया कि मुख़्तार के साथ आने से सरकार की छवि खराब होगी। ये विलय नही होगा। उस वक्त अखिलेश की बातों से असहमत होने की हिम्मत किसी ने नहीं जुताई।

लेकिन ये बात शिवपाल यादव के लिए भूलने वाली नही थी। सबसे ज्यादा किरकिरी उन्हीं की हुई थी। विलय की पहल करने वाले शिवपाल नाराज हो गए। बाजार में उनके इस्तीफे की खबरें भी आ गईं। राम गोपाल यादव के जन्मदिन पर शिवपाल का अन्य परिवार के सदस्यों से दूरी बनाए रखना भी इसी का असर था। फिर मुलायम के दखल के बाद ये मामला थमने लगा।

खनन मंत्री की बर्खास्तगी:

अवैध खनन मामले में खनन मंत्री गायत्री प्रजापति और पंचायती राज मंत्री राज किशोर सिंह नप गए। शिवपाल उसी वक्त मुलायम से मिलकर इस मुद्दे पर बात करने दिल्ली पहुँच गए। शाम होते-होते मुलायम ने भी इसकी पूर्व सूचना से इंकार कर दिया। उन्होंने कहा कि अखिलेश ने इसकी कोई जानकारी नही दी थी। उन्हें मीडिया के माध्यम से इन ख़बरों का पता चला।

मुख्य सचिव का बर्खास्त होना: 

इस घटना के अगले दिन एक कुर्बानी का पर्व बकरीद मनाया जा रहा था। उसी दिन अखिलेश ने मुख्य सचिव दीपक सिंघल को बर्खास्त कर अपनी शक्तियों से परिचित करा दिया। हालाँकि इसके पीछे सिंघल का दिल्ली में एक दावत में भाग लेना बताया जा रहा है। ये दावत अमर सिंह की थी। जिसमें अखिलेश ने जाने से मना कर दिया था। सिंघल भी मुलायम की शरण में पहुँच गए थे।

शिवपाल यादव ने मंत्रियों की बर्खास्तगी को CM के कार्यक्षेत्र में होना बताया। लेकिन अब इसी कार्यक्षेत्र की जद में उनका मंत्रालय भी आया। 9 अहम मंत्रालयों के मालिक शिवपाल के पास अब जल संसाधन और परती भूमि विकास के अलावा समाज कल्याण का अतिरिक्त प्रभार शेष रह गया। जिसके बाद शिवपाल ने अब इस्तीफा देने की पेशकश कर दी है।

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