सपा में घमासान अब इस कदर बढ़ चुका है कि सुलह की तमाम कोशिशें अभी तक विफल साबित हुई हैं. हर झगड़े के बाद एक ही नाम सामने उभर कर आता है और उसी एक व्यक्ति को पूरे घटनाक्रम के लिए जिम्मेवार ठहराया जाता है. हाल के घटनाक्रम पर नजर डालें तो सबकी जुबान पर वही एक नाम रहता है जिसे पहले तक ‘बाहरी’ कहकर पुकारा जाता रहा.

अमर रहे हमेशा निशाने पर:

अमर सिंह की दोबारा पार्टी में वापसी के बाद ही एक गुट के निशाने पर अमर सिंह आ गए थे. पार्टी में शामिल होने के बाद राज्यसभा सांसद के रूप में जब अमर सिंह चुने गए, अमर सिंह उस वक्त आज़म खान के निशाने पर आये थे. अमर सिंह के राज्यसभा सांसद चुने जाने से आज़म खान बेहद खफा थे. लेकिन उस वक्त मुलायम सिंह यादव के फैसले के आगे सभी को झुकना पड़ा.

एक बार फिर सपा प्रमुख का अमर-प्रेम सामने आया जब अमर सिंह को सपा का राष्ट्रीय महासचिव घोषित कर दिया गया. अब ये बात आज़म खान और रामगोपाल को फूटी आँखों भी नहीं सुहा रही थी कि जिस अमर सिंह को ये लोग पार्टी में देखना नहीं चाहते थे उस अमर सिंह को सपा प्रमुख ने राष्ट्रीय स्तर की जिम्मेदारी सौंप दी.

दीपक सिंघल और गायत्री प्रजापति के निकाले जाने के बाद रामगोपाल के लेटर बम ने सपा में मुश्किलें बढ़ा दी थी और नतीजा ये हुआ कि शिवपाल यादव ने रामगोपाल को पार्टी से ही निकाल दिया. रामगोपाल ने फिर वही ‘बाहरी’ का राग अलापा और अमर सिंह को पूरे मामले में जिम्मेदार बताया. चूँकि अमर सिंह और शिवपाल यादव बहुत करीबी मित्र हैं और इसलिए रामगोपाल यादव ने शिवपाल के इस फैसले के पीछे अमर सिंह का दिमाग बताया. जबकि शिवपाल यादव ने रामगोपाल को अनुशासनहीनता के आरोप में 6 साल के लिए बाहर किया था.

टिकट बंटवारे को लेकर भिड़े शिवपाल-अखिलेश:

अब जबकि टिकट बंटवारे को लेकर विवाद बढ़ा और शिवपाल यादव ने अखिलेश के करीबियों का पत्ता काट दिया तो जवाब में अखिलेश ने 403 उम्मीदवारों की सूची मुलायम सिंह यादव को सौंप दी. उधर शिवपाल ने भी 175 उम्मीदवारों को टिकट पहले ही दिए जाने की बात कह दी थी. अब गेंद मुलायम सिंह यादव के पाले में थी और उन्होंने 325 उम्मीदवारों की सूची जारी कर दी. जिसमें अखिलेश के करीबी मंत्रियों का टिकट सपा प्रमुख ने काट दिया. अखिलेश यादव ने इसे शिवपाल यादव की मनमानी तो रामगोपाल और आज़म सिंह ने इसे अमर सिंह की साजिश बताया. अमर सिंह पर ये आरोप लगा कि वो सपा प्रमुख को भड़काने का काम कर रहे हैं. शिवपाल यादव के साथ मिलकर अमर सिंह पर पार्टी के खिलाफ साजिश करने का आरोप भी लगा.

लेकिन जब बात टिकटों के बंटवारे की है तो इसमें अमर सिंह की कोई खास भूमिका नहीं दिखाई दे रही है. मुख़्तार अंसारी के पार्टी के विलय को लेकर ही शिवपाल और अखिलेश के बीच दूरियां बढ़ने लगी थीं और अब जबकि टिकट बंटवारे पर अखिलेश भी अपना हक़ जता रहे हैं तब पूरे मामले में केवल अमर सिंह का हाथ होना अतिश्योक्ति से कम नही है.

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