मैला ढोने वाली सैकड़ों महिलाओं ने रविवार सुबह विधान सभा का घेराव कर दिया। महिलाओं का कहना था कि आखिर हमें कब मैला ढोने से मुक्ति मिलेगी। महिलाओं ने कहा कि एक तरफ जहां पूरे देश में “स्वच्छ भारत मिशन का डंका बज रहा है, वही बुंदेलखंड में सैकड़ों दलित महिलाएं आज भी हाथ से मानव मल (मैला) उठाकर अपने पेट की भूख को शांत करने को मजबूर हैं। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि शासन और प्रशासन पूरी तरह मौन बनकर बैठा है। इससे ज्यादा शर्म की बात और क्या होगी। विधानसभा का घेराव करने की सूचना मिलते ही पुलिस प्रशासन में हड़कंप मच गया। जब तक पुलिस मौके पर पहुंची उससे पहले ही महिला कांस्टेबल शिवकुमारी ने सभी को गांधी प्रतिमा पर भेज दिया। यहां सभी प्रदर्शनकारियों ने मुख्यमंत्री को सम्बोधित मांगपत्र जिला प्रशासन के अधिकारी को सौंपा।

मैला उठाकर अपने और परिवार की मिटाती हैं भूख

  • बुंदेलखंड दलित अधिकार मंच के संयोजक कुलदीप कुमार बौद्ध ने बताया कि बैसे तो मैला प्रथा बंद करने को लेकर पूरे देश में “हाथ से मैला उठाने वाले कर्मियों के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वासन अधिनियम 2013” लागू है, लेकिन बुंदेलखंड जिले की सैकड़ों वाल्मीकि महिलायें अपने अपने गांव में सुबह उठकर मानव मल (मैला) उठाती हैं।
  • बाद में शाम को उनके घर से रोटी मांगने जाती है और उसी को खाकर अपने बच्चो व स्वयं के पेट की भूख को शांत करती हैं।
  • आखिर इन महिलाओं को कब मैला ढ़ोने से मुक्ति मिलेगी? ये बड़ा सवाल है।
  • बुंदेलखंड दलित अधिकार मंच के नेतृत्व में विधानसभा लखनऊ के सामने महिलाओं ने सुबह 11:00 बजे घेराव किया।
  • महिलाएं अपने सिर पर अपनी डलिया हाथ में झाड़ू के साथ प्रदर्शन कर रहीं थीं।
  • पुलिस और प्रशासन के अधिकारियों के समझाने के बाद महिलाएं पैदल मार्च करते हुए गांधी प्रतिमा पहुंची।
  • इस दौरान मुख्यमार्ग पर भयंकर जाम लग गया।

बची जिंदगी आराम से काटने की गुहार

  • आक्रोशित महिलाओं का कहना था कि हमारी पूरी जिन्दगी ये मैला ढोते-ढोते निकली जा रही है, इसे बंद करा दो और हमें जीने का कोई और सहारा दे दो ताकि अपनी बची हुई जिंदगी आराम से काट सकें।
  • प्रदर्शनकारी महिलाओं का कहना था कि सुबह तड़के कई घरों में जाकर मैला साफ करते हैं तब जाकर हमें शाम को उसी घर से रोटी मिलती है।
  • कभी शादी विवाह में कुछ पैसे व कपड़े मिल जाते हैं, उसी से अपना गुजर बसर करते हैं।
  • उत्तर प्रदेश के 70 फीसदी गांवों और 20 फीसदी शहरों में मैला ढोने की यह प्रथा जारी है पर संज्ञेय अपराध को लेकर सूबे के किसी भी थाने में कोई भी मुकदमा दर्ज नहीं हुआ है।
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