उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ बच्चों को शिक्षा की ओर प्रेरित करने के उद्देश्य से एक बार फिर “स्कूल चलो अभियान” की शुरुआत करने जा रहें हैं. यह अभियान पूरे राज्य में 2 अप्रैल से 30 अप्रैल तक चलाया जायेगा.

2 अप्रैल से शुरू होगा अभियान:

स्कूल चलो अभियान को सफल बनाने के लिए प्रदेश के सभी सांसदों, विधायकों, महापौरों तथा अन्य शासी निकाय प्रमुखों को पत्र लिखकर उनसे पूर्ण सहयोग देने का अनुरोध किया है। मुख्यमंत्री ने अपने पत्र में कहा कि अभी भी बहुत बच्चों का नामांकन स्कूलों में नही हो सका है. जिससे बच्चें निशुल्क शिक्षा का लाभ नही ले पा रहे है. ऐसे बच्चों को स्कूलों में प्रवेश दिलवा कर शिक्षा की और अग्रसर करना है. प्रदेश सरकार आगामी 2 अप्रैल से 30 अप्रैल के बीच राज्य में ‘स्कूल चलो अभियान’ संचालित करेगी।

तीन माह में ही फट गये सरकार के दिए स्कूली जूते और बैग:

इसी कड़ी में पिछले साल अक्टूबर में उन्होंने सरकारी प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्कूलों के बच्चों को मुफ्त स्कूली जूते मोज़े, बैग और स्वेटर बांटने की घोषणा की थी. जिसके बाद प्रदेश के 1.54 करोड़ बच्चों को स्वेटर, मोज़े- जूते और स्कूली बैग बांटे गये थे.

कहा जाये तो भाजपा सरकार ने चुनाव से पहले अपने मेनोफेस्टो में बच्चों की शिक्षा को लेकर किये अपने वादों को पूरा कर दिया है पर किस हद तक और कितनी गुणवत्ता के साथ इसका आंकलन करना भी जरुरी है.

बता दे कि दिवाली के ख़ास अवसर पर 266 करोड़ की लागत में बंटे स्कूली जूते और मोज़े होली तक नही चल पाए. बच्चों को जूते तो मिले पर स्कूल के एक सत्र तक जूते पहनने लायक नही है. उन्ही फटे जूतों को बाँध कर पहन कर बच्चों ने सर्दी बिता दी और अब इतनी गर्मी में भी वह कैसे योगी सरकार के दिए तोफे को संजोकर काम चला रहे हैं, ये तो कोई उन नौनिहालों से ही पूछे.

इसी तरह छात्रों को स्कूली बैग भी बांटे गये. प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्कूलों के बच्चो के लिए बैग का बजट निर्धारित हुआ 219 करोड़ का. बैग भी मिले. बच्चों के चेहरों पर मुस्कान भी आई. पर जब एक महीने में ही बैगों की सिलाई उधड़ने लगी तब सरकारी व्यवस्था की भी पोल खुलने लगी.

ठंड के बाद बांटे स्वेटर:

यहीं हाल स्वेटर का भी है. बेहद कड़ाके की ठंड में बच्चों को पता चलता है के मुख्यमंत्री जी ने स्वेटर बांटने का एलान किया है. वे आस लगाये ठिठुरते हुए स्कूल जाते है के शायद आज उन्हें स्वेटर मिलेगा और ठंड से कुछ राहत. पर बच्चों की ये आस खत्म हो जाती है और ठंड भी पर स्वेटर नही मिलते. उस दौरान विपक्ष के काफी हंगामे के बाद स्वेटर तो बंटे पर ठंड खत्म होने के बाद.

बता दें  परिषदीय स्कूलों के नौनिहालों को सर्दी से निजात दिलाने को प्रदेश सरकार ने स्वेटर बांटने का आदेश दिए थे. यह स्वेटर प्रधानाध्यापक और विद्यालय प्रबंधन समिति की देखरेख में खरीदकर बांटे जाने थे. विभागीय अधिकारियों ने विद्यालय प्रबंध समिति को नजरअंदाज कर दिया और कुछ सत्ताधारी नेताओं से सांठगांठ करके अपनी मर्जी से स्वेटर मंगवा लिए. जिसे शिक्षकों के माध्यम से जबरन बच्चों को बटवाये गये थे. लाखों रुपए का गोलमाल कर परिषदीय विद्यालय के नौनिहालों को जो स्वेटर वितरण किए गए वह किसी भी तरह से वैधानिक नहीं थे. स्वेटर वितरण से खफा सांसद ने विभाग के खिलाफ जांच के लिए मुख्यमंत्री व जिलाधिकारी को पत्र लिखकर कार्रवाई के लिए भी कहा था.

सांसद मुकेश राजपूत स्वेटर वितरण को लेकर काफी खफा थे. उन्होंने कहा कि जो इस स्वेटर वितरण की घोटाले में दोषी है उसको किसी भी कीमत पर छोड़ा नहीं जाएगा. गलत करने वाले पर कार्रवाई होगी. शिक्षक किसी के दबाव में आकर गलत तरीके से स्वेटर वितरण ना करें.

स्वेटर बाटने के लिए किसी को नहीं दिया गया था ठेका:

बीएसए अनिल कुमार ने बताया था कि सर्दी के मौसम में स्वेटर बांटने थे इसलिए कोई दबाव नहीं बनाया गया और न ही किसी से जबरदस्ती की गयी थी. किसी के माध्यम से स्वेटर बांटने को नहीं भेजा गया और न हीं किसी को ठेका दिया गया.

 

बहरहाल, इतनी खराब गुणवत्ता के सामान का छात्र कब तक और कैसे फायदा ले सकते है. सरकार ने तो बच्चों के लिए स्कूल चलो अभियान बना कर उनको बेकार जूते और बैग दे कर अपनी जिम्मेदारी निभा दी. उसके बाद भी गरीब बच्चों के स्कूल ना जा पाने की वजह क्या है, यह कैसे तय की जाएँ. क्यूंकि एक छात्र की मूलभूत जरूरत की चीज़े तो उनको मिल कर भी नही मिली.

बहरहाल मुख्यमंत्री योगी का स्कूल चलो अभियान गरीब बच्चों को मुख्यधारा में जोड़ने के लिए तत्पर है और इसके लिए सरकार कई तरीको से प्रयास कर रही है पर अगर सच में खानापूर्ति ना करके मुख्यमंत्री जी सच में बच्चों की शिक्षा के प्रति गंभीर है तो उन्हें गरीब बच्चों की इन जरूरतों पर ध्यान देना होगा और इतनी बड़ी हुई गलती को जल्दी से जल्दी सुधारना होगा.

 

2 महीने में ही फट गये 266 करोड़ के जूते, नंगे पैर आने को मजबूर बच्चे

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