आज उच्च शिक्षा में शोध कार्य महज प्रमोशन या नौकरी पाने का एक रास्ता बनकर रह गया है। जबकि शोध का पहला उद्देश्य स्वयं को जानना और आखिरी उद्देश्य विश्व का कल्याण करना होता है। शोध का अर्थ अनुभूति करना है और विद्यार्थियों के अंदर अनुभूति को प्रेरित करने का काम कुशल शिक्षक ही कर सकता है। ये विचार कॉलेज के प्राचार्य प्रो.एसडी शर्मा ने सभी के सामने रखे।

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अब शोध कम और अर्थपरकता है ज्यादा

  • जय नारायण पीजी कॉलेज में ‘भारतीय शिक्षा में अनुसंधान’ विषय पर सेमिनार का आयोजन किया गया।
  • इस मौके पर अध्यक्षता डॉ. मनोहर लोहिया विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो मनोज दीक्षित ने की।
  • उन्होंने शिक्षकों एवं छात्र-छा़त्राओं से कहा कि शोधार्थी में अब शोध कम और अर्थपरकता ज्यादा हो गयी है।
  • उन्होंने जीसस इन इंडिया और भारतीय डिस्कवरीज जैसी पुस्तकों का जिक्र करते हुए कहा कि ये पुस्तकें शोध की सर्वोच्च पुस्तकें है।
  • यदि आपको सीखना है कि वास्तविक शोध कैसे होता है तो इन पुस्तकों को जरुर पढना चाहिए।
  • इस मौके पर मौजूद प्रो.एसडी शर्मा ने कहा कि उच्च शिक्षा की सामाजिक जिम्मेदारी आज सबसे ज्यादा है।

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  • इसलिए गुणवत्तापरक शोध पर अब पहले से ज्यादा गंभीरता से काम करने का वक्त आ गया है।
  • उन्होंने कहा कि परिश्रम एवं अध्ययन का समावेश हुए बिना शोध में सुधार संभव नहीं है।
  • कामता प्रसाद सुंदर लाल साकेत महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य डॉ एचबी सिंह भी इस मौके पर मौजूद रहे।
  • उन्होंने कहा कि आज इस सेमिनार में उन्होंने जाना की ज्ञान देने की नहीं बल्कि प्राप्त करने की चीज है।
  • उन्होंने कुलपति प्रो मनोज दीक्षित और मुकुल कानिटकर सहित अन्य अतिथियों के प्रति आभार व्यक्त किया।
  • इस अवसर पर भारतीय शिक्षण मंडल के महेंद्र सिंह, अंगद सिंह सहित अन्य पदाधिकारी मौजूद रहे।

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