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पुलिस बैरकों की बदहालियत के चलते भगवान भरोसे है ख़ाकी

shabby Police barracks make constables unsecured

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आम जनता की सुरक्षा करने वाले जर्जर इमारतों में आसरा बनाये बैठे हैं. रोज भारी बारिश के चलते जमींदोज हो रहे मकानों और इमारतों के बीच राजधानी लखनऊ स्थित पुलिस लाइन का बैरक भी है जिसकी हालत अमीनाबाद और पुराने लखनऊ की जर्जर इमारतों से कम नहीं हैं. आलम ये है कि 400 से ज्यादा सिपाही इन बदहाल बैरकों में बारिश के टपकते पानी, टूटी छतों, खराब शौचालयों और बैरकों के बाहर भरे गंदे पानी के साथ गुजर बसर करने को मजबूर हैं. 

प्रदेश भर में जर्जर ईमारतों की बदहालियत की खबरे लगातार बनी हुई हैं. बारिश के चलते इन इमारतों के गिरने की सम्भावना हमेशा बनी रहती हैं. सिर्फ राजधानी लखनऊ में ही एक हफ्ते में कई इमारते धराशायी हो चुकी हैं. जिसके बाद नगर निगम, पुलिस प्रशासन में मामले की गंभीरता का संज्ञान लेते हुए शहर भर की 150 से अधिक जर्जर इमारतों को चिन्हित किया हैं.

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पुलिस लाइन में 20 साल से बनी बैरकों की हालत खराब  

सरकार, प्रशासन, पुलिस सबका ध्यान चौकन्ना तो है मगर खुद के घर की दीवार पानी से टपक रही उसकी परवाह नहीं। आम जनता की सुरक्षा करने वाले खुद ही ऐसी बदहाल बैरक में रह रहे हैं. लखनऊ की पुलिस लाइन में तकरीबन 20 सालों से ज्यादा की बनी आरक्षी बैरक की हालत गणेशगंज और अमीनाबाद की उन इमारतों से कम नहीं जो बारिश के कारण जमींदोज हो गयी हैं.

400 से ज्यादा सिपाहियों का आसरा:

पुलिस लाइन में बनी इस बैरकों में तकरीबन 400 से ज्यादा सिपाहियों ने अपना आसरा बना रखा हैं. बैरकों की हालत से साफ़ है कि ये आसरा भले ही हमारी सुरक्षा में लगे पुलिस कर्मियों के सर के ऊपर छत दे रहा हो लेकिन जान का जोखिम भी उन्हें इस आसरे के साथ मुफ्त मे मिल गया हैं.

वो पुलिस कर्मी जो हर मौसम में, हर मौके पर अपनी जान जोख़िम में डाल कर नौकरी करते हैं, खुद अपने आसरे में सुरक्षित नहीं हैं. सबसे ज्यादा भयावर समस्या का सामने उन्हें भी बरसात मे हीं करना पड़ रहा है. बावजूद इसके प्रशासन के किसी भी अधिकारी का ध्यान कभी भी इन बैरकों की तरफ नहीं गया.

बहुमंजिला बिल्डिंग बनाने के लिए हो चुका है प्रस्तावित:

बता दें कि बैरक को तकरीबन 5 साल पहले कंडम घोषित कर दिया गया था. जहाँ पर बहुमंजिला बैरिक स्थल बनाने का प्रस्ताव पास हुआ था मगर अभी तक न ही कोई काम शुरू किया गया और न ही जो बैरिक पहले से बनी हैं, उन्हें रहने योग्य बनाया जा सका. यहीं कारण है कि इन बैरीकों की हालत बेहद खराब हैं.

माना जाता है कि जब कोई बैरक कंडम घोषित कर दी जाती है तो उसमें रहने की अनुमति नहीं होती है, इसके बावजूद 400 से ज्यादा सिपाही इन बदहाल बैरकों में रहने को मजबूर हैं. इसका कारण नए भवनों के निर्माण में देरी है.

बैरक की टूटी छत:

बैरकों की दिवारों और छत की खस्ता हालत ऐसी है कि बारिश में कमरों में पानी टपकता रहता हैं. नाम न छापने की शर्त पर एक सिपाही ने बताया कि जब भी बारिश होती है तो बाहर का पानी तो अंदर आता ही है, छत से भी पानी बराबर चारपाई पर आ कर गिरता रहता है।

उसने बताया कि किस तरह बारिश के पानी से बचने के लिए मच्छरदानी के ऊपर सिपाही पन्नी डाल कर सोते हैं. तब जा कर पानी से बचाव हो पाता है। वहीं इतनी खराब हालत के बाद भी न तो कोई अधिकारी संज्ञान लेता है और ना ही सरकार.

शौचालयों की हालत तो बद से बदतर:

बैरिक में रहने वाले 400 से ज्यादा लोगों के लिए जो शौचालय हैं उनकी हालत तो कमरों से भी ज्यादा खराब है. सिपाहियों के मुताबिक वहां पर पानी तो सिर्फ एक टोंटी में आता है बाकी किसी भी बाथरूम में पानी नहीं आता है.

वहीं कोई भी सफाई कर्मचारी समय से नहीं आता जिसके कारण सिपाही खुद शौचालयों को बारी बारी साफ करते हैं।

बारिश होते ही गाय भी बना लेती हैं अपना आसरा

वहीं बैरक के बाहर भरे पानी की निकासी का भी कोई रास्ता नहीं है. लिहाजा इस वजह से वहां पर डेंगू मच्छरों ने भी अपना घर बना लिया है। इसके बावजूद किसी भी प्रकार की कोई दवा का छिड़काव भी वहां नहीं करवाया जाता है।

वहीं जब बारिश होती है तो खुद को बरसात के पानी से बचाने के लिए गाय और अन्य पालतू पशु भी सिपाहियों के साथ इन्ही बदहाल बैरकों को अपना ठिकाना बनाने को मजबूर होते हैं.

इन सब के बाद अब सवाल ये उठता है कि सिपाही ऐसी बदहालियत में जीने को मजबूर हैं लेकिन प्रशासन या कोई अधिकारी उनकी सुरक्षा पर ध्यान क्यों नहीं देता?

एक ओर भारी बारिश के चलते कई नए पुराने मकान धराशाई हो रहे हैं, इसको लेकर प्रशासन ने जर्जर इमारतों को चिन्हित कर लिया है तो क्या पुलिस बैरकों के निरीक्षण की जरूरत प्रशासन को महसूस नहीं हुई?

इसी बारिश के चलते इन बैरिकों जिसमें बारिश होते ही पानी अंदर आने लगता है, अगर कोई हादसा होता है तो ज़िम्मेदार कौन होगा?

लखनऊ: 150 से ज्यादा इमारतों की हालत बदहाल, हो सकता है बड़ा हादसा

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