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शहीद दिवस 2018: भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को भावभीनी श्रद्धांजलि

Shaheed Diwas 2018

Shaheed Diwas 2018

पूरा देश आज 23 मार्च को अमर बलिदानी भारत के तीन सपूतों- भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु को भावभीनी श्रद्धांजलि दे रहा है। भारत के इतिहास में ये दिन शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन स्कूल कॉलेजों में शहीदों की याद में कई कार्यक्रम भी आयोजित कर शहीदों के बारे में बताया जाता है। भारतीय इतिहास के लिए ये दिन काला दिन माना जाता है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ट्वीट कर श्रद्धांजलि देते हुए लिखा है कि “अभिजात देशभक्त भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के बलिदान दिवस पर भावभीनी श्रद्धांजलि। यह राष्ट्र सदैव आप अमर बलिदानियों का ऋणी रहेगा।”

बता दें कि देश के आजाद होने से पहले 23 मार्च, 1931 को अंग्रेजी हुकूमत ने अमर शहीद भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी पर लटका दिया था। इन वीर सपूतों ने देश के लिए लड़ते हुए अपने प्राणों को हंसते-हंसते न्यौछावर कर दिया था। यह दिन ना सिर्फ देश के प्रति सम्मान और हिंदुस्तानी होने वा गौरव का अनुभव कराता है, बल्कि वीर सपूतों के बलिदान को भावभीनी श्रृद्धांजलि देता है। तीनों क्रांतिकारियों की इस शहादत को आज पूरा देश याद कर रहा है। लोग सोशल मीडिया पर इन क्रांतिकारियों से जुड़े किस्‍से, इनके बयानों को शेयर कर रहे हैं।

शहीद भगतसिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को हुआ था और 23 मार्च 1931 को शाम 7.23 पर भगत सिंह, सुखदेव तथा राजगुरु को फांसी दे दी गई।

शहीद सुखदेव का जन्म 15 मई, 1907 को पंजाब को लायलपुर पाकिस्तान में हुआ। भगतसिंह और सुखदेव के परिवार लायलपुर में पास-पास ही रहने से इन दोनों वीरों में गहरी दोस्ती थी, साथ ही दोनों लाहौर नेशनल कॉलेज के छात्र थे। सांडर्स हत्याकांड में इन्होंने भगतसिंह तथा राजगुरु का साथ दिया था।

शहीद राजगुरु 24 अगस्त, 1908 को पुणे जिले के खेड़ा में राजगुरु का जन्म हुआ। शिवाजी की छापामार शैली के प्रशंसक राजगुरु लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के विचारों से भी प्रभावित थे।

पुलिस की बर्बर पिटाई से लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए राजगुरु ने 19 दिसंबर, 1928 को भगत सिंह के साथ मिलकर लाहौर में अंग्रेज सहायक पुलिस अधीक्षक जेपी सांडर्स को गोली मार दी थी और खुद ही गिरफ्तार हो गए थे।

भगतसिंह चाहते थे कि इसमें कोई खून-खराबा न हो तथा अंग्रेजों तक उनकी आवाज पहुंचे। निर्धारित योजना के अनुसार भगतसिंह तथा बटुकेश्वर दत्त ने 8 अप्रैल 1929 को केंद्रीय असेम्बली में एक खाली स्थान पर बम फेंका था। इसके बाद उन्होंने स्वयं गिरफ्तारी देकर अपना संदेश दुनिया के सामने रखा। उनकी गिरफ्तारी के बाद उन पर एक ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जेपी साण्डर्स की हत्या में भी शामिल होने के कारण देशद्रोह और हत्या का मुकदमा चला।

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