उत्तर प्रदेश की राजधनी लखनऊ का अमरूद अब अरुणाचल प्रदेश पहुंच गया है। अब अरुणांचल प्रदेश के लोग लखनऊआ अमरूद का स्वाद चख पाएंगे।खासियत यह है कि करीब साढ़े पांच हजार फुट पर जहां अमरूद नहीं होते थे, वहां पर बिना खाद-पानी के इतने अच्छे अमरूद हो रहे हैं। ईटा नगर के पास एक साल पहले लगाए गए पौधों पर अब फल आने लगे हैं। इनका गूदा और छिलका दोनों लाल रंग का है। ये अमरुद ज्यादा सुर्ख और स्वादिष्ट हो गया है।

सीआईएसएच के निदेशक डॉ. एस राजन ने बताया कि वहां अधिकतम तापमान 35 डिग्री सेल्सियस तक जाता है और सर्दियों में पाला नहीं पड़ता। इस वजह से ज्यादा खाद, पानी और कीटनाशकों की भी जरूरत नहीं पड़ी। जैविक उत्पाद की श्रेणी में आने के कारण इसके दाम भी ज्यादा मिलने की उम्मीद है। हाल ही में डॉ. राजन और उनकी टीम ने अरुणाचल प्रदेश जाकर देखा तो किसान काफी खुश थे। हालांकि चार किस्में यहां से गई थीं लेकिन उन्होंने ललित अमरूद ज्यादा मुफीद लगा। आश्चर्यजनक यह है कि अमरूद का छिलका और गूदा दोनों लाल हैं।

लखनऊ स्थित केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान (सीआईएसएच) की विकसित अमरूद की किस्म ‘ललित’ की खासियत यह है कि वह अंदर से लाल होता है लेकिन छिलका केसरिया पीला होता है। वहीं इलाहाबादी सुखा अमरूद का छिलका लाल होता है लेकिन अंदर से सफेद होता है। वहीं अरुणाचल प्रदेश में पहले सामान्य तौर पर अमरूद नहीं होता था। वहां की कुछ स्थानीय किस्में थीं लेकिन वह बहुत खराब थीं। पिछले साल ईटानगर के पास यचुली के किसान लीखा माज ने यहां सीआईएसएच से संपर्क किया। यहां से वह अमरूद की चार किस्में ललित, श्वेता, धवल और सरदार ले गए। उन्होंने एक एनजीओ बनाकर किसानों को ये अमरूद बनाने के लिए प्रेरित किया।

कई किसान जुड़ गए तो उन्होंने 1 लाख पौधे वहां लगवाए। सीआईएसएच के निदेशक डॉ. एस राजन बताते हैं कि तापमान में अंतर होने के कारण वहां पत्ते भी लाल और बैंगनी हो गए। किसानों को लगा कि कोई बीमारी लग गई है। उसके बाद उन्हें बताया गया कि ज्यादा ऊंचाई पर रंग में बदलाव आ सकता है। कम तापमान के कारण मिट्टी में फास्फोरस का संतुलन बिगड़ जाता है। इससे पत्तियों का रंग बदल जाता है। तकनीक का इस्तेमाल करते हुए किसानों को वॉट्सऐप और मोबाइल से समय-समय पर प्रशिक्षित किया गया। बीच-बीच में कुछ विशेषज्ञ भी वहां गए।

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