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सिद्धार्थनगर: सरकारी योजनाओं की ज़मीनी हकीक़त

न दशा बदली, न दिशा

न दशा बदली, न दिशा

आजादी के 71 साल बीत जाने के बाद भी आज भी उतर प्रदेश में तमाम गांव ऐसे भी है जिसकी न तो दशा बदली और न ही  दिशा बदली| आख़िरकार जहॉ देश के मुखिया शौच मुक्त भारत का सपना देख रहे हैं, करोड़ो रुपया प्रचार और चौपाल के माध्यम से खर्च करके जनता तक सरकारी  जन कल्याण योजना को हर घर तक पहुचाने की बात कर रहे है, वही उनके मातहत है कि सरकार की मंशा पर पानी फेरने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे है। ग्रामीणों के लिए सरकार के पास योजनाओ का खजाना है लेकिन हकीकत में इस खजाने से जिसको लाभ मिलना चाहिए वही इससे महरूम है।

गांवों का हाल:

सिद्धार्थनगर के बांसी विकासखण्ड के ग्राम पंचायत चेतिया के टोला राजडी़ह को देखकर ऐसा लगता है कि यह गांव आज भी कितना पिछड़ा है जहॉ बिजली,प्रधान मंत्री आवास , पेय जल व्यवस्था,जल निकासी के नाली जैसे ऐसी तमाम समस्या है जो इस गांव के लोगो को सरकार से मुहैया नहीं कराया जा सका है। इस गांव के लोग  आज भी किसी तरह अपना जीवनयापन कर रहे हैं| अगर सरकारी लाभ की बात करे तो इस गांव के लोगो को शौच के लिए बाहर सड़क या खेतो में जाना पड़ता है| न तो इस गांव में नाली बनी है और न ही शौचालय है| इस टोले में लगभग 30 घर है|

सरकार के दावे:

सरकार के अफसर विकास का दावा करते नही थक रहे लेकिन हकीकत कुछ और ही देखने को मिल रही है। एक तरफ जहाँ सिद्धार्थ नगर को 2अक्टूबर तक ओ0डी0एफ0 घोषित करने की तैयारी की जा रही है वही उनके मातहत अधिकारी उनकी मंशा पर पानी फेर रहे है|

बांसी विकासखण्ड  के ग्राम पंचायत चेतिया के 15 घर का टोला पण्डाडीह में कुछ आवास न होने पर लोग दूसरों के घर में रहने को मजबूर है| और गांव के सूरज ने बताया कि कुछ लोग घर न होने के कारण इस गांव से पलायन करके भीख मांग कर अपना जीवन यापन कर रहे है, कभी कभी आते है तो दूसरों के घर सहारा लेते है और फिर चले जाते है| अगर इन्हें सरकारी आवास का लाभ मिलता तो यह गांव से नही जाते।

हर गाँव का है यही हाल:

दूसरी तरफ इसी टोले से सटा चौथीडीह है| इस गांव में लगभग 20 घर है| सरकारी योजनाओं का लाभ इस गांव तक अभी भी नही पहुच पाया है| इस गांव में अभीतक एक भी शौचालय का निर्माण हो पाया है और न ही नाली|  कई घर तो घास भुस के बने है|

इसी गांव की रेशमा ने बताया की घर में शौचालय न होने से बहु बेटियों को खुले मैदान में जाना पड़ता है और घर लौटने तक भय बना रहता है। विकास के नाम पर इस गांव में सिर्फ बिजली की आपूर्ति है।

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