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संगीत के नाम से प्रसिद्ध कैराना की सीट से सपा इसे लड़ा सकती है लोकसभा का चुनाव

संगीत के नाम से प्रसिद्ध कैराना की सीट से सपा इसे लड़ा सकती है लोकसभा का चुनाव

संगीत के नाम से प्रसिद्ध कैराना अब राजनैतिक की बजह से सुर्ख़ियों में आ गया है। जिस पर अगर देखा जाये तो समाजवादी पार्टी व राष्ट्रीय लोकदल का काफी मजबूतीकरण है। कैराना लोकसभा चुनाव में सपा अपना प्रत्याशी उतारेगी और राष्ट्रीय लोकदल के हिस्से में नूरपुर लोकसभा सीट आ सकती है।

भाजपा और सपा के बीच अगला चुनावी युद्ध मैदान होगा कैराना

भाजपा और सपा के बीच अगला चुनावी युद्ध कैराना की धरती पर होने की सम्भावना जताई जा रही है। जिस पर अगर दावेदारियों की बात की जाये तो प्रो. सुधीर पंवार, किरणपाल सिंह कश्यप और एमएलसी वीरेंद्र सिंह गुर्जर का नाम सामने आ रहा है। जिसमे सबसे ज्यादा मजबूती पर प्रो. सुधीर पंवार को माना जा रहा है। कैराना लोकसभा सीट पर 17 लाख वोटर हैं जिनमें तीन लाख मुस्लिम, चार लाख बैकवर्ड (जाट, गुर्जर, सैनी, कश्यप, प्रजापति और अन्य शामिल) और क़रीब 1.5 लाख वोट जाटव दलितों के हैं, जो बसपा का पारंपरिक वोटबैंक माना जाता है।

किराना घराना ने देश को दिए एक बढ़कर एक उस्ताद

उत्तर प्रदेश विधानसभा में राज्यसभा चुनावों की लड़ाई में बसपा के जबड़े से जीत छीनने वाला मरहम कुछ काम ज़रूर आया, लेकिन दो अहम लोकसभा सीट पर हार पचाना आसान नहीं।  राज्यसभा चुनावों में भाजपा ने ‘चालाकी’ कर भले बाज़ी जीत ली हो, लेकिन सपा के साथ गठबंधन से ज़ाहिर है, उत्तर प्रदेश के दो चुनावो के बाद अब 2019 के लोकसभा चुनाव लड़ने की मारक तरकीब दे दी है। पांच साल पहले ये इलाका सुर्खियों में था और वजह थी साम्प्रदायिक दंगे। हालांकि, इसका एक पक्ष और भी है जिसके बारे में शायद ज़्यादा लोगों को जानकारी न हो।  किराना घराना ने एक से एक बढ़कर उस्ताद इस देश को दिए हैं, घराने के संस्थापक भाइयों अब्दुल करीम ख़ान-अब्दुल वाहिद ख़ान के अलावा, सवाई गंधर्व, भीमसेन जोशी, हीराबाई बरोडकर, गंगूबाई हंगल से लेकर प्रभा अत्रे जैसे बड़े नाम हैं।

संगीत से ज़्यादा अब राजनीति की वजह से होती हैं कैराना की चर्चा

लेकिन संगीत से ज़्यादा अब कैराना की चर्चा राजनीति की वजह से होती है। उत्तर प्रदेश की ये सीट समूचे प्रदेश की हवा का अंदाज़ा देने का दमख़म रखती है। कम से कम पिछले दो चुनावों का चलन यही बताता है। भाजपा ने साल 2014 में 80 में से 73 लोकसभा सीटें जीतकर धमाका कर दिया था। हुकुम सिंह को 5.65 लाख वोट मिले थे जबकि सपा और बसपा के उम्मीदवारों को 3.29 लाख और 1.60 लाख वोट मिले थे। अगर सपा-बसपा के वोट जोड़ लिए जाएं तो भी भाजपा आगे है। लेकिन 2014 और 2018 की कहानी अलग भी हो सकती है।

 भाजपा पर भारी पड़ेगा सपा-बसपा की गठबंधन
रिपोर्ट-  संजीत सिंह सनी

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