राजधानी लखनऊ में केमिकल और पानी मिलाकर खून का काला कारोबार करने वाले गिरोह का भंडाफोड़ करते हुए एसटीएफ ने गुरुवार देर रात 7 लोगों को दबोच लिया। एसटीएफ ने देर रात मड़ियाव स्थित मेडिसिन एंड ब्लड बैंक हॉस्पिटल और बीएनके हॉस्पिटल में छापा मारा। उनके पास से 8 यूनिट खून बरामद हुआ है। इसकी जांच की जा रही है। देर रात तक एसटीएफ ब्लड बैंक के दस्तावेज और कर्मचारियों का ब्यौरा खंगाल रही थी।

गिरफ्तार किए गए आरोपी।

[penci_blockquote style=”style-1″ align=”none” author=””]एसटीएफ ने 15 दिन रैकी के बाद मारा छापा[/penci_blockquote]
एसटीएफ की छापेमारी काफी गोपनीय रही। उसने स्थानीय पुलिस को भी इसकी सूचना नहीं दी थी। गिरोह का सरगना नसीम है। उसकी निशानदेही पर देर रात तक फैजुल्लागंज और कैंट में दबिश जारी थी। गिरोह के शातिरों के घर से खून बनाने में इस्तेमाल होने वाले उपकरण की बरामद हुए हैं। एसटीएफ के मुताबिक, मड़ियाव में काला कारोबार लंबे समय से चल रहा था। एसटीएफ ने करीब 15 दिनों तक ब्लड बैंक की करने और सबूत जुटाने के बाद कार्यवाही की। छापेमारी में देर रात तक जारी रही।

बरामद हुए ब्लड पैकेट्स।

[penci_blockquote style=”style-1″ align=”none” author=””]बिना में मेडिकल डिग्री के इंटर पास युवक कर रहे थे गोरखधंधा[/penci_blockquote]
एसटीएफ के अधिकारियों के मुताबिक, केमिकल और पानी मिलाकर 2 यूनिट 3 यूनिट खून बनाया जा रहा था। यहां बिना में मेडिकल डिग्री के कर्मचारी काम करते थे। ब्लड बैंक में किसी डॉक्टर की तैनाती भी नहीं है। दबोचे गए सभी युवक इंटर तक पढ़े हैं। एक यूनिट खून के लिए 3500 रुपये वसूलते थे। यह गिरोह मजदूरों, रिक्शा चालकों से 1000-1200 रुपए में खरीदा था। फिर उसमें केमिकल व पानी मिला था। अपनी पहचान गुप्त रखने के लिए गिरोह के लोग फर्जी पते पर मोबाइल सिम खरीदते थे।

यहीं से चल रहा था रक्त का अवैध कारोबार।

नसीम ने कहा कि मैं पैसा बचाने के लिए ब्लड का एचआईवी, हेपिटाइटिस बी, हेपिटाइटिस सी, वायरस, वीडीआरएल व मलेरियल पैरासाइट कोई टेस्ट नहीं करता था। मुझे पता है कि ऐसा न करने से जिस मरीज को रक्त दिया जाता है उसे गंभीर बीमारियां हो सकती हैं लेकिन मैं ऐसा करता हूं। नसीम के अनुसार, वह अपने घर में ही नशे के आदी प्रोफेशनल ब्लड डोनर को कुछ पैसे का लालच देकर ब्लड निकाल लेता था और फिर उसमें सलाइन वाटर मिलाकर एक यूनिट से दो यूनिट खून बनाकर इसे पैक्ड रेड ब्लड सेल (पीआरबीसी) बताकर बेचता था।

उसने बताया कि पीआरबीसी यूनिट में ब्लड की मात्रा कम होती है। जिससे आसानी से दो यूनिट खून तैयार हो जाता है। तैयार ब्लड को काले कारोबार से जुड़े अन्य लोग हॉस्पिटल में मरीजों के तीमारदारों को झांसे में लेकर उनसे ब्लड बैंक से बिना बदले कम पैसे में खून दिलाने का भरोसा दिलाकर सलाइन वाटर मिला हुआ रक्त प्रति यूनिट 2000 रुपये से 3000 में बेच देता हूं। इस पूरे मामले का मुख्य आरोपी मोहम्मद नसीम पुत्र स्वर्गीय जाकिर अली, थाना हसनगंज, सीतापुर रोड, लखनऊ का रहने वाला है। नसीम अपने घर से अवैध ब्लड बैंक चलाता था।

इसके अलावा राशिद अली उर्फ आतिफ पुत्र स्वर्गीय शौकत अली, वजीर बाग जरही पुराना लखनऊ। इसका काम अवैध ब्लड डोनर को लाना और बनाए गए खून को बेचना होता था। राघवेंद्र प्रताप सिंह पुत्र राम देव वर्मा, ग्राम हरई थाना देवा तहसील नवाबगंज, बाराबंकी। जो कि ब्लड बैंक का टेक्नीशियन है का काम ब्लड की व्यवस्था करना था। वहीं, पंकज कुमार त्रिपाठी पुत्र पारस नाथ त्रिपाठी शीतल पुरवा पोस्ट हुजूरपुर बहराइच। ब्लड बैंक में लैब अटेंडेंट है जो कि प्रोफेशनल ब्लड डोनर से रक्त लेकर नसीम को देता था। हनी निगम पुत्र स्वर्गीय अमरेश कुमार निगम, निशातगंज लखनऊ का रहने वाला है जो कि ब्लड बैंक के जाली स्टीकर व अन्य पेपर प्रिंट तैयार करता था। ये ब्लड निकालना और ब्लड डोनर का इंतजाम भी करता था।

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